सिवान के मैरवा की सुखनर, झरही व स्याही नदी उपेक्षित
जल संरक्षण और जल संचय को लेकर भले ही सरकार प्रयासरत दिख रही है। आहर पोखर व नदी सहित जलाशयों को पुनर्जीवन देने के लिए हमेशा नई-नई योजनाओं की शुरुआत की ...और पढ़ें

सिवान। जल संरक्षण और जल संचय को लेकर भले ही सरकार प्रयासरत दिख रही है। आहर, पोखर व नदी सहित जलाशयों को पुनर्जीवन देने के लिए हमेशा नई-नई योजनाओं की शुरुआत की जाती हो, लेकिन सच है कि आज भी इस मायने में व्यवस्था संवेदनशील नहीं हो पा रही है। मैरवा प्रखंड मुख्यालय से होकर गुजरने वाली एक नदी अपना अस्तित्व ही खो चुकी है और दो अन्य नदियां भी इसी रास्ते पर चल पड़ी हैं। सुखनर नदी पूरी तरह से सूख चुकी है। इसके वजूद के सिर्फ निशान ही बाकी रह गए हैं। यही नहीं झरही नदी और स्याही नदी भी उपेक्षा का शिकार हो गई हैं। इसमें भर रहे गाद इसे तबाही की तरफ धकेल रहे हैं। गाद से भरती जा रहीं दोनों नदियां जल संकट से जूझते हुए प्रदूषण की जद में आ गईं हैं। आज स्थिति यह बन गई है कि खुद सुखनर, झरही नदी व स्याही के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। जहां कल तक धारा बहती थी, आज इन नदियों के अस्तित्व पर काले बादल मंडराने लगे हैं। ऐसा नहीं कि प्रशासनिक अधिकारियों की नजर इधर नहीं जाती।
बता दें कि प्रत्येक साल प्रतापपुर शुगर मिल का गंदा पानी झरही नदी के पानी को प्रदूषित कर देता है। लेकिन इसपर ना तो स्थानीय प्रशासन द्वारा ही पहल की जाती है और ना ही जनप्रतिनिधियों द्वारा। इसका खमियाजा नदी के जलीय जीव और इसके जल से प्यास बुझाने वाले पक्षियों को जान गंवा कर भुगतना पड़ता है।
गाद भरने के कारण नदियों का मिट रहा अस्तित्व :
स्याही नदी और झरही नदी तट पर छठ घाट बनाए गए हैं। वहां छठ महापर्व के अवसर पर दर्जनों गांव के ग्रामीण एकत्रित हो सूर्य देव की पूजा अर्चना करते हैं। लेकिन अब तक इस जीवनदायिनी नदी के जीर्णोद्धार की कोई योजना ना तो पंचायत स्तर पर और ना ही प्रखंड स्तर पर बनाई जा सकी है। व्यक्तिगत स्वार्थ ने स्थानीय लोगों की आंखों पर पर्दा डाल दिया है। आसपास के लोग अपने घरों व प्रतिष्ठानों से निकलने वाले कूड़े-कचरे को नदी के तट पर फेंक देते हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि नदियों के महत्व को लोग भूलने लगे हैं। उन्हें सामाजिक सरोकार से कोई वास्ता ही नहीं। झरही नदी में गाद भरने के कारण बरसात के समय तटवर्ती कई गांवों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जरूरत इस बात की है की सुखनर जो सूख चुकी है, उसमें अभी भी गाद को हटाकर जिदगी फूंकी जा सकती है। वहीं योजनाबद्ध तरीके से स्याही और झरही नदी के अस्तित्व को बचाया जा सकता है। कृषि प्रधान इस क्षेत्र के किसानों को नदियों से सिचाई का लाभ मिल सकता है। ऐसा कर जल संरक्षण की योजना को मजबूती दी जा सकती है।

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