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    मेहमान पक्षियों पर बहेलियों की काली नजर, चंवरों में कम होने लगी चहचहाहट

    Updated: Fri, 19 Dec 2025 02:35 PM (IST)

    बिहार के सीवान में प्रवासी पक्षियों पर शिकारियों की काली नजर है, जिससे चंवरों में उनकी चहचहाहट कम होने लगी है। शिकारियों के कारण इन पक्षियों की संख्या ...और पढ़ें

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    मेहमान पक्षियों पर बहेलियों की काली नजर

    ललन सिंह नीलमणि, भगवानपुर हाट (सिवान)। भागदौड़ भरी जिंदगी में सुबह की बेला में पक्षियों की चहचहाहट अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है। ग्रामीण इलाकों में खासकर चंवर क्षेत्रों में सर्दी के मौसम में देश-विदेश से आने वाले मेहमान पक्षियों की कलरव से माहौल जीवंत हो जाया करता था, लेकिन अब इन पर बहेलियों की काली नजर पड़ गई है। यही कारण है कि प्रखंड क्षेत्र के चंवरों में मेहमान पक्षियों की आवाज पहले की तुलना में काफी कम सुनाई देने लगी है।

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    स्थानीय लोगों के अनुसार ठंड के मौसम में साइबेरिया, ऑस्ट्रेलिया, जापान, सूडान जैसे देशों से हजारों किलोमीटर की उड़ान भरकर आने वाले पक्षी भगवानपुर हाट प्रखंड के विभिन्न चंवरों में डेरा डालते थे।

    लेकिन बीते कुछ वर्षों से इनकी संख्या में लगातार कमी देखी जा रही है। शिकारियों द्वारा चोरी-छिपे किए जा रहे शिकार से इन पक्षियों में दहशत का माहौल बना हुआ है।

    बहेलिए मांस के लालच में बंदूक से गोलियां चलाकर या फिर जहरीले खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल कर इन पक्षियों का शिकार कर रहे हैं।

    प्रखंड क्षेत्र के बहियारा, मिर्जापुर, हरियामा, बिठुना, जुनेदपुर, हिलसड़ सहित छह से अधिक चंवर मेहमान पक्षियों का प्रमुख ठिकाना माने जाते हैं।

    यहां ये पक्षी कीड़े-मकोड़ों को पकड़कर अपना भोजन करते हैं और चंवरों में जमा पानी से प्यास बुझाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जिस वर्ष इन पक्षियों का आगमन कम होता है, उस वर्ष फसलों पर कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।

    पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम रखने वाले शिक्षक सियाराम प्रसाद का कहना है कि कुछ लोग मांस खाने और बेचने के लालच में मेहमान पक्षियों के प्रति सदियों पुराने संस्कारों को भूल गए हैं।

    शिकारी निर्दयता से इनका शिकार कर बाजार में ऊंचे दामों पर बेचते हैं। बताया जाता है कि साइबेरियन और जांघिल प्रजाति के पक्षियों का मांस अन्य पक्षियों की तुलना में महंगे दाम पर बिकता है, जिससे बहेलियों के हौसले और बढ़ गए हैं।

    कृषि वैज्ञानिक डॉ. जितेंद्र प्रसाद ने बताया कि विदेशी पक्षियों के आगमन से पर्यावरण संतुलित रहता है। ये पक्षी फसलों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खाकर प्राकृतिक नियंत्रण का काम करते हैं।

    उन्होंने बताया कि ये पक्षी साइबेरिया से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक चार से पांच हजार किलोमीटर की दूरी तय कर भारत आते हैं। जिस वर्ष इनका आगमन नहीं होता, उस वर्ष फसल नाशक कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है।

    प्रथम श्रेणी पशु चिकित्सक डॉ. अनुभव आनंद ने बताया कि साइबेरिया जैसे देशों में दिसंबर से फरवरी तक अत्यधिक ठंड पड़ती है, जिससे बचने और भोजन की तलाश में ये पक्षी भारत आते हैं।

    सेवानिवृत्त शिक्षक व पर्यावरण प्रेमी रोशन सिंह ने चिंता जताते हुए कहा कि कभी क्षेत्र के बड़े-बड़े चंवर विदेशी पक्षियों से गुलजार रहते थे, लेकिन शिकार और जलवायु परिवर्तन के कारण अब इनका आना काफी कम हो गया है। इससे पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।