पेड़ ही नहीं, सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक भी है पीलू
सिवान। मुसलमान इसे नबी की सुन्नत कहते हैं। ¨हदू भाई राधाकृष्ण का प्रिय पेड़। सिख धर्म के लोग
सिवान। मुसलमान इसे नबी की सुन्नत कहते हैं। ¨हदू भाई राधाकृष्ण का प्रिय पेड़। सिख धर्म के लोग इसे गुरु गो¨वद ¨सह से जोड़ते हैं। बात कर रहे हैं रेगिस्तानी इलाकों में भयंकर गर्मी में भी हरा-भरा रहने वाले पेड़ पीलू की। सारण प्रमंडल में इसका एकमात्र पेड़ सिवान जिले के दारौंदा प्रखंड के सतजोड़ा गांव में है। गर्मी बढ़ने के साथ ही इसकी हरियाली और गाढ़ी होने लगी है। इस पौधे को करीब दो सौ पूर्व पहले दारौंदा प्रखंड के सतजोड़ा निवासी सैयद मोहम्मद साहब ने मक्का से लाकर यहां लगाया था। रमजान के महीने ने तो इसकी पूछ काफी बढ़ जाती है। क्योंकि इसका ही दूसरा नाम मिसवाक भी है। इसके फल चिड़ियों को बहुत पसंद हैं।
आध्यात्मिक महत्व
पीलू को आध्यात्मिक यानी धार्मिक पौधा भी माना जाता है। कुछ लोग इसे योगीराज श्रीकृष्ण से जोड़ते हैं तो कुछ राधा-रानी से। इसे पांडवों की पसंद का पौधा भी बताते हैं। इसकी टहनियां हवन में भी काम में लाई जाती हैं। संतों के कमंडल के निर्माण में भी इसकी लकड़ी का प्रयोग होता है। गुरु गो¨वद ¨सह से भी इस पेड़ को जोड़ा जाता है।
औषधीय महत्व
पीलू या मिसवाक एक वृक्ष है। इसकी टहनियों की दातून मुस्लिम संस्कृति में बहुत प्रचलित है। मिसवाक की लकड़ी में नमक और खास क़स्मि का रेजिन पाया है, जो दातों में चमक पैदा करता है। मिसवाक करने से जब इसकी एक तह दातों पर जम जाती है तो कीड़े आदि से दांत सुरक्षित रहतें हैं। इसके पत्ते भी खटटे- मीठे होते हैं। इसकी छाल का काढ़ा लीवर संबंधी रोगों में भी फायदेमंद होता है। इसका वनस्पतिक नाम डाइओरपाइरोस कांडीफोलिया है। इसे पटवन भी कहते हैं तथा इसके फल को पक्षी भी बड़े चाव से खाते हैं। इसके फल गर्मी के दिनों में शरीर में पानी की कमी को पूरा करते हैं।
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भारतीय वनस्पतियां औषधि की खान हैं। केवल हमें उनके गुण पता होने चाहिए। जानकारी के अभाव में हम उनका सेवन न कर मंहगी दवाएं करते हैं। पीलू का दातून यदि प्रतिदिन करें तो अंतिम समय तक दांत टूटेंगे ही नहीं। गर्मी में इसके फल बहुत फायदेमंद होते हैं। दुख की बात यह है कि इस जिले में एक मात्र पेड़ है। इसे और लगाने की जरूरत है।
डॉ. केडी रंजन, आयुर्वेदिक चिकित्सक।
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