मोहर्रम पर विशेष : यजीद ने कर्बला में मोर्चा जीता है, जंग नहीं
सिवान। शुरू में पैगंबर-ए- इस्लाम हजरत मोहम्मद (सल) के दुश्मनों की संख्या काफी थी लेकिन धीरे-
सिवान। शुरू में पैगंबर-ए- इस्लाम हजरत मोहम्मद (सल) के दुश्मनों की संख्या काफी थी लेकिन धीरे-धीरे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई। यह देख दुश्मन खामोश होने लगे। उनके वफात (देहावसान) के बाद दामाद हजरत अली(रजी) चौथे खलीफा बनाए गए। एक बार फिर दुश्मनों ने सिर उठाना शुरू कर दिया। जब हजरत अली मस्जिद में नमाज अदा कर रहे थे, इसी दौरान दुश्मनों ने उन्हें धोखे से शहीद कर दिया। दुश्मन पूरे परिवार को खत्म करना चाहते थे। घर पर हमला कर दिया, जिसमें हजरत अली की पत्नी और पैगंबर हजरत मोहम्मद की बेटी फातिमा जख्मी हो गईं। बाद में वे भी इस दुनिया से चल बसीं। हजरत मोहम्मद के नवासे और हजरत अली के एक पुत्र इमाम हसन को दुश्मनों ने जहर देकर मार डाला।
इसके बाद उमय्या वंश के अमीर मुआविया के पुत्र यजीद ने जबरन अपने को खलीफा घोषित कर दिया। वह नाम मात्र का मुसलमान था। उसने हजरत इमाम हुसैन को अधीनता स्वीकार करने का आदेश दिया। साथ ही कहा कि वह जो कहें, इस्लाम में शामिल किया जाए और उसके आदेश पर इस्लाम में संशोधन किया जाए। हजरत मोहम्मद के दीन इस्लाम में बदलाव करना चाहता था लेकिन इमाम हुसैन ने उसकी अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया। चार मई 680 इस्वी को इमाम हुसैन मदीना में अपना घर छोड़कर मक्का पहुंचे। वहां यजीद के लिए उन्होंने न किसी से बैय्यत ली और न ही अपने पूर्व के निर्णय में कोई परिवर्तन लाया। कूफा के लोगों को जब मालूम हुआ कि वे मक्का आ चुके हैं तो उन्होंने एक-एक कर 52 पत्र इमाम हुसैन को लिखकर कूफा आने का बुलावा भेजा।
पत्र के जवाब में इमाम हुसैन ने लिखा, आप लोगों की मोहब्बत एवं अकीदत का ख्याल करते हुए फिलहाल भाई मुस्लिम बिन अकील को कूफा भेज रहा हूं। अगर उन्होंने देखा कि कूफा के हालात सामान्य हैं तो मैं भी आऊंगा। हजरत मुस्लिम अपने दो छोटे बेटों मोहम्मद और इब्राहिम को साथ लेकर कूफा पहुंचे। वहा उनका लोगों ने मोहब्बत के साथ स्वागत किया। उन्होंने बैय्यत शुरू की। एक हफ्ता के अंदर 12 हजारों लोगों ने मुस्लिम के हाथों इमाम हुसैन की बैय्यत कबूल की। इधर यजीद को जब यह मालूम हुआ तो उसने कूफा के
गवर्नर को हटाकर सय्याद को गवर्नर नियुक्त कर दिया और मुस्लिम को गिरफ्तार कर खत्म करने तथा हुसैन के आने पर यजीद की बैय्यत तलब करने को कहा। इंकार करने पर उन्हे भी कत्ल करने के आदेश दिए। मुस्लिम को कत्ल कर दिया गया। उधर मुस्लिम का पत्र पाकर इमाम हुसैन अपने परिवार और खानदान के साथ कूफा के लिए रवाना हो गए। वहां पहुंचे तो देखा सब कुछ बदला हुआ था। दुश्मन फौज ने उन्हें घेर लिया और कर्बला ले गई। उस समय दुश्मन फौज प्यासी थी। इमाम हुसैन ने उन्हें पानी पिलाया। यजीद ने इमाम हुसैन पर अधीनता स्वीकार करने के लिए दबाव बनाया लेकिन किसी भी तरह की शर्त मानने से इन्कार कर दिया। दबाव बढ़ाने के लिए फुर्रात नदी और नहरों पर फौज का पहरा बैठा दिया, ताकि हुसैनी लश्कर को पानी नहीं मिल सके। तीन दिन गुजर गए। इमाम के परिजन प्यास से तड़पने लगे। फिर भी हजरत इमाम हुसैन अपने इरादे से नहीं डिगे।
यह देख दुश्मन ने खेमे पर हमला बोल दिया। इमाम हुसैन ने एक रात की मोहलत मांगी। रात में हुसैन ने इबादत की और अल्लाह से
दुआ मांगी कि मेरे परिवार, मेरे बच्चे शहीद हो जाएं लेकिन दीन इस्लाम बचा रहे। 10 अक्टूबर 630 ई मुहर्रम की 10वीं तारीख (यौम ए आशुरह) की सुबह होते ही जंग छिड़ गई। हालांकि इसे जंग कहना उचित नहीं होगा। एक तरफ लाखों हथियारों से लैस फौज और दूसरी तरफ हुसैन के साथ 72 लोग थे। इनमें छह महीने से लेकर 13 वर्ष तक के बच्चे भी शामिल थे। एक-एक कर सभी शहीद होते गए। फिर इमाम हुसैन को भी दुश्मन फौज शहीद कर डाला। इसमें हुसैनी लश्कर हार कर भी जीत गया और यजीदी फौज मोर्चा जीत कर भी हार कबूल कर ली।
'कत्ले हुसैन असल में मरगे यजीद है।
इस्लाम ¨जदा होता है हर कर्बला के बाद।'
¨हदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है भीखपुर का ताजिया
संसू, सिसवन (सिवान) : प्रखंड के भीखपुर गांव में मोहर्रम को लेकर ताजिया बनाने का काम परवान पर है। यहां ताजिया ¨हदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है। अंजुमन-ए-अंबासिया एवं अंजुमन-ए-रिजवीया के तत्वावधान में ताजिया का निर्माण ¨हदू कारीगरों द्वारा किया जाता है। इसके निर्माण में कील एवं कांटी का प्रयोग नहीं होता। सिर्फ बांस एवं खमाची द्वारा किया जाता है। भीखपुर गांव में एशिया का सबसे बडा ताजिया का निर्माण किया जाता है, जिसकी ऊंचाई करीब 80 फीट होती है। भीखपुर गांव में ताजिया निकालने एवं मातम मनाने की परंपरा लगभग 180 वर्ष पुरानी है, मातम मनाने एवं ताजिया को कंधा देने में ¨हदुओं द्वारा भी बढ़-चढ़कर कर हिस्सा लिया जाता है। यहां 80 फीट की दो ताजिया का निर्माण किया जाता है। एक ताजिया ¨हदू का और दूसरा मुस्लिम का है।
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