हजारों मील उड़कर आए मेहमानों का खूनी स्वागत! सिवान के चंवरों में गूंज रही गोलियों की आवाज
सिवान के भगवानपुर हाट क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों का शिकार हो रहा है, जिससे उनकी सुरक्षा खतरे में है। साइबेरिया, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों से आ ...और पढ़ें

सिवान के चंवरों में गूंज रही गोलियों की आवाज
ललन सिंह नीलमणि, भगवानपुर हाट(सिवान)। विश्व के कई देशों से उड़ान भरकर आने वाले मेहमान पक्षियों का कलरव प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न चंवर में सुनाई देता है। इनके कलरव की आवाज को सदा सदा के लिए बंद करने एवं इनका शिकार कर इनके मांस को खाने तथा बेचने के उद्देश से शिकारी अपनी बंदूक से गोलियां चलाकर कर रहे है।
वैसे इन मेहमान पक्षियों का शिकार शिकारी चोरी छिपे करते है। शिकारियों के कारण विदेशों क्रमशः साइबेरिया, आस्ट्रेलिया, जापान, सूडान आदि से आए पक्षियों में दहशत का माहौल बना है।
फसलों को कीट से बचाते हैं
प्रखंड क्षेत्र के बाहियारा, मिर्जापुर, हरियामा, बिठुना, जुनेदपुर, हिलसड़ आदि चंवर में इन मेहमान पक्षियों का बसेरा होता है। जहां ये चंवर में कीड़े पकड़ कर अपना भोजन करते है तथा इन चंवरो में जमा पानी पीकर अपना प्यास बुझाते हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि जिस वर्ष मेहमान पक्षियों का आगमन नहीं होता। उस वर्ष फसलों पर कीट का सर्वाधिक प्रकोप होता है। जिससे फसल प्रभावित होते है। पशु पक्षियों के प्रति प्रेम रखने वाले शिक्षक सियाराम प्रसाद बताते है कि शिकारी मांस खाने के लिए मेहमानों के प्रति होने वाले संस्कार को भूल गए है और अपनी निर्दयता का परिचय देते हुए मेहमान पक्षियों का शिकार कर बेचते है।
वहीं कुछ शिकारी चंवर में जहरीली खाद्य पदार्थों के जरिए इन पक्षियों का शिकार करते है। सूत्र के अनुसार चंवर में मछली , रोटी आदि में जहर मिलाकर रख देते है। खाने के लालच में पक्षी उसे खाते हो मूर्छित हो गिर पड़ते है। घात लगा कर बैठे शिकारी तत्काल उसे उठाकर उसके गर्दन को काट देते है तथा गर्दन काट उसके अंदर का जहर निकाल कर फेंक देते है ।
मेहमान पक्षी विभिन्न रंग-बिरंगे
मेहमान पक्षी विभिन्न रंग-बिरंगे होते है । इनमे साइबेरियन , जांघिल प्रमुख है । इन पक्षियों को शिकार कर शिकारी महंगे दर पर बेचते है । बताया जाता है कि इनका मांस अन्य पक्षियों के अपेक्षा काफी अच्छा होता है ।
कहते है कृषि वैज्ञानिक
कृषि वैज्ञानिक डॉ जितेंद्र प्रसाद ने बताया कि विदेशी पक्षियों के आगमन से पर्यावरण को संतुलन मिलता है। फसलों एवं पर्यावरण को दूषित करने वाले कीड़े को ये पक्षी अपना भोजन बनाते है । जिससे हमे लाभ मिलता है।
उन्होंने बताया कि विदेशी पक्षियों द्वारा लगभग चार से पांच हजार किलो मीटर दूरी तय कर यहां आते है । इनके हमारे यहां आने के लिए साइबेरिया से आस्ट्रेलिया , अफगानिस्तान , भूटान , नेपाल के रास्ते है ।
उन्होंने बताया कि कलांतर में ये एक सौ के करीब आते थे। धीरे धीरे इनकी संख्या तीन से चार सौ हो गई है। जिस वर्ष नहीं आते उस वर्ष फसल नाशक कीट का अधिक प्रभाव बढ़ जाता है । जिससे फसलों को नुकसान होता है ।
कहते हैं पशु चिकित्सक
प्रथम श्रेणी पशु चिकित्सक डॉ अनुभव आनंद ने बताया कि साइबेरिया जैसे देशों में दिसंबर से फरवरी तक काफी काफी ठंड पड़ता है । जिससे बचने के लिए मेहमान पक्षी हजारों किलोमीटर दूरी तय कर यहां आते है। अपने भोजन के तलाश में । उन्होंने बताया कि इन मेहमान पक्षियों के आने से भारत में पर्यावरण को लाभ मिलता है ।

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