जल प्राकृतिक वातावरण का एक घटक
सिवान। जल प्राकृतिक वातावरण का एक घटक है जो जीवन और वनस्पति को जीवित बनाए रखने में महत्
सिवान। जल प्राकृतिक वातावरण का एक घटक है जो जीवन और वनस्पति को जीवित बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जल ही जीवन है। जल के व्यापक महत्व के कारण इसे जल संसाधन कहा गया है। पृथ्वी की तीन चौथाई भाग पर जल की उपस्थिति है। इसलिए पृथ्वी को 'नीलाग्रह' कहा गया है।
पानी के पहरुए : पृथ्वी पर जल का मूल स्रोत वर्षण है। वर्षण वर्षा और हिमपात के रूप में होता हे। भारत में औसत वार्षिक वर्षा 117 सेमी है। वर्षा का वितरण देश में समान रूप से नहीं है।
पानी के मुख्य पहरुए हैं- समुद्र, वर्षा, हिमनदी, झील, कुएं, जलाशय आदि। इनसे भूमि के अंदर जल रिस-रिसकर प्रवेश करता है। जल के अन्य पहरुए गेसर और झरने नलकूप व हैंडपम्प भी हैं।
वर्षा जल संचयन की दिशा में कोई पहल नहीं :
सिवान बिहार का ऐसा जिला है जहां 85 प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है। फिर भी यहां वर्षा जल संचयन की दिशा में धरातल पर कोई काम नहीं दिखता है। वैसे सरकारी कागज में तो मनरेगा योजना के तहत बहुत से काम हुए हैं जो वर्षा जल संचयन की दिशा में अच्छी पहल है। पर दुख की बात यह है कि उसे अमलीजामा पहनाने में समाज व सरकार रुचि नहीं रखती है। सरकार का धन तो लगता है लेकिन धन के वनिस्पत धरातल पर काम नहीं दिखता। तालाब, कुएं, खाड़ी, नारा आदि जल स्रोतों का जीर्णोद्धार का कार्य मनरेगा योजना से आरंभ हुआ है जो निश्चित तौर पर वर्षा जल संचयन की दिशा में ठोस पहल है। बस जरूरत है इसे इमानदारी पूर्वक सतह पर लाने की।
विशेषज्ञों की राय :
सामाजिक संस्था पंचशील के सचिव केके सिंह ने कहा कि सिवान की जो छोटी-छोटी नदियां हैं उसको साफ कराकर बीच-बीच में पोखर खुदवा दिया जाए तथा भूमिगत जलाशयों में कृत्रिम पुनर्भरण तकनीक को अपना कर वर्षा जल को इकट्ठा किया जाए ताकि गांवों, शहरों, कृषि तथा उद्योगों को पर्याप्त जल मिल सके। इसके लिए वृक्षारोपण जैविक खाद के प्रयोग, वेटलैंड्स का संरक्षण आवश्यक है।
कृषि विशेषज्ञ पुरुषोत्तम तिवारी ने बताया कि भूमिगत जल के पुनर्भरण के लिए कम लागत की कई तकनीकें हैं, जैसे-
-जल के रिसने में सहायक गड्ढों का निर्माण
-खेतों के चारो ओर गहरी नालियां खोदना
- गड्ढों को फिर से भरना और छोटी-छोटी नदिकाओं पर बंधिकाएं बनाना
- छत के पानी को टंकियों अथवा भूमि के नीचे इकट्ठा करना है।
जल संकट से निपटने की ठोस पहल :
- आधुनिक सिंचाई पद्धति का प्रयोग : सामान्य सिंचाई पद्धतियों से धरातल के अंदर की क्षरीयता सतह पर आ जाती है जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। इस समस्या के समाधान के लिए स्प्रिंकलकर एवं डीप सिंचाई पद्धति का प्रयोग किया जाना चाहिए। सिंचाई के जल का उचित समय व मात्रा में उपयोग के बारे में किसानों का मार्ग दर्शन किया जाए।
पौधारोपण : जहां भूमिगत जल स्तर काफी नीचे है, वहां वृक्षारोपण कार्यक्रम को प्राथमिकता प्रदान की जाए।
बांध एवं जलाशयों का निर्माण : नदी के बाढ़ के प्रकोप से बचने के लिए आवश्यक स्थानों पर सिंचाई करने के लिए नदी मार्ग में बांधों एवं जलाशयों का निर्माण किया जाए।
जल शुद्धिकरण संयंत्रों की स्थापना : हर नगर एवं उद्योगों में जल शुद्धिकरण संयंत्रों की स्थापना की जाए ताकि प्रदूषित जल को शुद्ध कर पुन: उपयोग में लाया जा सके।
जल संसाधनों के प्रति जागरूकता : जल संसाधन की समस्या का समाधान तब तक असंभव है जब तक कि लोगों में इसके प्रति जागरूकता न हो। अत: जल संसाधन संरक्षण कार्यक्रम को जनआंदोलन का रूप प्रदान किया जाए।
जल प्रदूषण की रोकथाम : प्रदूषण से जल की रक्षा कर उसका संरक्षण किया जा सकता है।
- जल सम्पदा को वाष्पीकरण तथा रिसने से काफी क्षति होती है। इसके बचाव की उपाय खोजा जाए।
- सिवान शहर में जल का संरक्षण दो प्रकार से कर जल संकट से बचा जा सकता है।
वेट लैंड्स : वेट लैंडस का अर्थ है निम्नतलीय जलजमाव क्षेत्र से जिसके अंतर्गत चंवर, भांगर, मन और ताल आदि क्षेत्र हैं। इनमें वर्षा के जल का संचयन कर जल का संरक्षण किया जा सकता है।
वर्षा जल संग्रह : आज की दौड़ में वर्षा जल मानव जीवन के लिए काफी उपयोगी है तथा वर्तमान एवं भविष्य में जल संकट की स्थिति से निपटने तथा वर्षा जल के बेकार बह जाने को कम करना तथा भूमिगत जल स्तर को ऊंचा उठाना ही वर्षा जल संग्रहण का मुख्य उद्देश्य है। इसके संग्रहण एवं पुन: चक्रण की कई विधियां प्रचलित हैं जिसे प्राचीन एवं आधुनिक विधियों में वर्गीकृत किया जाता है। प्राचीन विधियों के अंतर्गत खदीन, जोहड, गुल, कुल जैसी विधियां शामिल हैं जबकि आधुनिक समय में छत वर्षा जल संग्रहण की तकनीक काफी प्रचलित है। इसके अंतर्गत छत पर संग्रहित वर्षा जल को एक पाइप के सहारे नीचे बने टैंक या संग्रह स्थान तक पहुंचा दिया जाता है, फिर उस पानी का उपयोग किया जाता है जो सिवान में काफी कारगर व संभव है। उपरोक्त विधियों का पालन कर भूजल के नुकसान को रोका जा सकता है, क्योंकि भू जल का अधिक दोहन से जिले के अनेक भू भागों में जलस्तर में काफी गिरावट आई है। केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण ने देश के 231 प्रखंडों को अत्यधिक दोहन वाली श्रेणी में रखा है। 107 प्रखंडों को डार्क जोन वर्ग में रखा गया है। जहां भूजल का 85 प्रतिशत दोहन हो चुका है। समय रहते हम नहीं संभले तो भविष्य में जल के लिए युद्ध निश्चित है।
क्या कहते हैं अधिकारी :
सिवान के उपविकास आयुक्त श्री राजकुमार ने बताया कि जिले में वर्षा के जल संचयन के लिए फिलहाल मनरेगा योजना के तहत तालाबों एवं नालों का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है।
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