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    ये 'जरा हटकर' हैं... विपरीत हालात में भी नहीं रुके बेबी कुमारी के कदम, लगातार कायम रखी हिम्मत

    By Ramesh KumarEdited By: Yogesh Sahu
    Updated: Sun, 15 Oct 2023 07:38 PM (IST)

    बिहार के सिवान जिले की एक फुटबॉलर ने अपनी राष्ट्रीय पहचान बना ली है। प्रदेश को गर्व महसूस कराने वाली इस महिला फुटबॉलर का नाम है बेबी कुमारी। बेबी आर्थिक तंगी के बावजूद आगे बढ़ती रही हैं। वह चाहती थीं कि उनके पिता उन्हें आगे बढ़ते हुए देखें। परंतु चार साल पहले उनका निधन हो गया। आइए जानते हैं बेबी कुमारी की पूरी कहानी।

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    ये 'जरा हटकर' हैं... विपरीत हालात में भी नहीं रुके बेबी कुमारी के कदम, लगातार कायम रखी हिम्मत

    रिजवानुर रहमान, मैरवा (सिवान)। सिवान की बेबी कुमारी ने बतौर महिला फुटबॉलर अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई है, लेकिन उनकी सफलता के मायने 'जरा हटकर' हैं। फुटबॉल के मैदान में जब उनके कदमों ने रफ्तार पकड़ी, उसी वक्त पिता विनोद तुरहा का निधन हो गया।

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    आर्थिक तंगी के उस विपरीत दौर में भी हिम्मत नहीं हारीं। बेबी के संकल्प व मेहनत ने कमाल कर दिया। पहले जिला टीम में जगह बनाई, फिर बिहार टीम का हिस्सा बनीं। बिहार के लिए कई राष्ट्रीय स्तर के मैच खेले और ट्राफी व मेडल हासिल किए।

    बेबी इसी वर्ष चार से 14 सितंबर तक हुए राष्ट्रीय बालिका अंडर-14 चैंपियनशिप में बिहार टीम की प्रबंधक भी बनीं। सफर जारी है। सिवान के मैरवा प्रखंड के कुम्हार टोली की निवासी बेबी ने बताया कि उसके पिता का निधन चार वर्ष पूर्व हो गया।

    बोलीं- मैं चाहती थी कि पिताजी मुझे अपनी आंखों के सामने सफल होते देखें। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। मैं उनका नाम रोशन करने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली।

    उनका लक्ष्य कोच बनकर लड़कियों को आगे बढ़ाने का भी है। वे चाहती हैं कि हर लड़की अपनी प्रतिभा के अनुसार आगे बढ़े।

    मंजिल तक पहुंचने का जबरदस्त जुनून

    बेबी ने मैरवा स्थित रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्ट्स एकेडमी में फुटबॉल का प्रशिक्षण लिया है। उसके मुख्य प्रशिक्षक संजय पाठक का मानना है कि उसमें मंजिल तक पहुंचने का जो जुनून है, वही उसे सफल बना रहा है।

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    आर्थिक तंगी के दौर से गुजरीं, अपनों ने किया किनारा

    पिता को याद कर बेबी भावुक हो जाती हैं। बताती हैं कि उनके निधन के बाद आर्थिक तंगी के दौर में फुटबॉल खेलने के लिए पैसे नहीं थे। वह कठिन समय था। अपनों ने भी किनारा करना शुरू कर दिया था।

    इस दौर में फुटबॉल के राष्ट्रीय खिलाड़ी रहे भाई संदीप ने बहन के लिए मैदान छोड़कर ठेले पर फल बेचना शुरू कर दिया। इससे होने वाली आय से जब घर चलने लगा। बेबी को भी फुटबॉल खेलने के लिए आर्थिक मदद मिली।

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