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    समस्याओं का समाधान देता है संस्कृत का ज्ञान

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    Updated: Wed, 26 Mar 2014 08:51 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, सिवान : अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सामाजिक चिंतक पद्मभूषण डा. बिंदेश्वर पाठक ने कहाकि प्रकृति जन्य व समाज जन्य समस्याओं के समाधान भारत के प्राचीन ज्ञान से सम्भव है लेकिन उस ज्ञान के लिए संस्कृत का सम्यक ज्ञान आवश्यक है। डा.पाठक बुधवार को पं.बैधनाथ पाण्डेय आर्य संस्कृत महाविद्यालय की स्वर्ण जयंती के अवसर पर भारतीय समाज में विधवा जीवन तथा उनकी दशा एवं दिशा विषय पर आयोजित संगोष्ठी का उद्घाटन कर रहे थे। इस अवसर पर अपने सम्बोधन में उन्होंने कहाकि विधवाओं व दलितों के अभिशप्त जीवन का मुख्य कारण भारत के शाश्वत ज्ञान से दूर होना है। जब हम धर्म शास्त्रों के वास्तविक उपदेश व ज्ञान को समझ लेते हैं तब मानव-मानव में भेद की गुंजाइश नहीं रहती। विचार बदलने लगता है और उसी विचार से परिवर्तन व समस्या का स्थायी समाधान सम्भव है। उन्होंने कहाकि कम्प्यूटर व विमान विद्या हमारे प्राचीन ग्रंथों में सूत्र रूप में हैं। हम संस्कृत से दूर हुए तो वे विद्याएं भी हमसे दूर हो गयीं। अपने जीवन के अनुभवों से उदाहरण देते हुए उन्होंने कहाकि टकराव से समस्या का समाधान सम्भव नहीं बल्कि विचार व विनम्र व्यवहार के माध्यम से निर्मित सहयोग के वातावरण में परिवर्तन होता है। उन्होंने कहाकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सुलभ ने वृंदावन की विधवाओं के लिए भोजन, वस्त्र व दवा जैसी सुविधाएं मुहैया कराया लेकिन इसके बाद भी हमें लगा कि उनके लिए कुछ और किया जाना चाहिए। उन्होंने कहाकि विधवा बनने के बाद समाज से अलगाव व मिलने वाला व्यवहार से उन्हें सबसे अधिक पीड़ा मिलती है। समाज से जोड़ने का प्रयास हुआ। उनके साथ होली दिवाली मनाने का वातावरण तैयार किया गया तब उनके चेहरे पर खुशी लौट आयी। इसके बाद स्वरोजगार के माध्यम से उन्हें आर्थिक रूप से सबल बनाने का क्रम चला। जब वे आर्थिक रूप से सबल हो गयीं तब उनके परिजन भी उनसे मिलने आने लगे। उन्होंने कहाकि विधवाओं की समस्या के स्थायी समाधान के लिए व्यावहारिक दृष्टि आवश्यक है। इस अवसर पर कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा के कुलपति डा. देवनारायण झा, काशी के प्रख्यात साहित्यशास्त्रविद् डा. शिवजी उपाध्याय, पूर्व कुलपति डा. उपेन्द्र झा, डा. रामचन्द्र झा ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन आचार्य श्रीपति त्रिपाठी ने किया। वहीं कालेज के प्राचार्य डा. मनोज कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया। इस संगोष्ठी में अमेरिका से भारत के दलितों व विधवाओं की स्थित पर शोध करने वाले अध्येताओं का छह सदस्यीय दल भी उपस्थित था। चार सत्रों में हुई संगोष्ठी में विभिन्न विश्वविद्यालयों के तीस प्रतिभागियों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए।

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    विशेषज्ञों के विचार

    सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. शिवजी उपाध्याय ने कहाकि भारतीय वांगमय सूत्रों के रूप में रची गयी। उसके भाष्यकारों ने उसे विशाल व गहरे समुद्र का रूप दे दिया। ऐसे में ग्रंथों के अनंत भाव प्रकट हो जो हैं। मूलभाव से अंतर की भी सम्भावनाएं होती हैं। भारत का जो ज्ञान है वह आज भी श्रेष्ठ है। उसके वास्तविक स्वरूप को सामने लाना आवश्यक है।

    कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डा.देवनारायण झा ने कहाकि शास्त्र नारी को किसी भी परिस्थिति में हेय दृष्टि से देखने की अनुमति नहीं देता। देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार स्मृतियों में परिवर्तन का आदेश देता है। परिवर्तन हो लेकिन मूल सिद्धांत के साथ हो।

    पूर्व कुलपति डा.रामचन्द्र झा ने कहाकि धर्म को समझने के लिए जिस दृष्टि की आवश्यकता है उसकी कमी दिखती है। युग धर्म का स्मरण करें तो इस समस्या के समाधान के लिए बल मिलता है। हमारे पास श्रेष्ठ ज्ञान है लेकिन उसे व्यवहार में उतारना होगा।

    पूर्व कुलपति डा. उपेन्द्र झा ने कहाकि समस्या के समाधान के लिए जिस आधार भूमि की आवश्यकता है वह वेद शास्त्र से ही मिलेगी। भारतीय विद्या का आधार व्यवहार व अनुभव की धरातल पर उतरा ज्ञान है। उस ज्ञान के प्रमाण शास्त्रों में भरे पड़े है जिन्हें प्रत्यक्ष लाना होगा।

    जेपी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा.चक्रपाणी दत्त द्विवेदी ने कहाकि शास्त्र में वह सब कुछ है जिसके आधार पर समस्याओं को युगानुकूल समाधान सम्भव है। शास्त्र हमें जड़ नहीं बल्कि चेतन बनाता है क्योंकि यह वैज्ञानिक है। यहीं सनातन चिंतन व शास्त्र की विशेषता है।

    डा. अखिलेश्वर तिवारी : विधवाओं का जीवन हीन भावना के कारण बोझ बन जाता है। हमारे योग शास्त्र में इसका निदान बताया गया है। योग के बल पर हीनता की ग्रंथी मिटाकर कुंठा से मुक्ति मिलती है।

    डा. हिमांशु शेखर : ग्रहों का जीवन से गहरा सम्बंध है। ज्योतिष विद्या में वैधव्य के कारणों का विस्तार से वर्णन मिलता है। इसके वैज्ञानिक अध्ययन एवं शोध से इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है।