भविष्य संवारने को पलायन को मजबूर बर्मा गांव के लोग
चोरौत प्रखंड मुख्यालय से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित बर्मा गांव है। इसके पूरब में चोरौत मुख्यालय है तो पश्चिम में 17 से 20 किलोमीटर में फैला खेतिहर चौर व पुरान्डिह गांव है ।
सीतामढ़ी। चोरौत प्रखंड मुख्यालय से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित बर्मा गांव है। इसके पूरब में चोरौत मुख्यालय है तो पश्चिम में 17 से 20 किलोमीटर में फैला खेतिहर चौर व पुरान्डिह गांव है । दक्षिण मे मधुवनी जिला है तो उतर में खेतिहर चौर है । तीन किलोमीटर के क्षेत्र में बसा इस गांव के 75 फीसद लोग रोजी-रोजगार के लिए शहरों में रहते हैं । हालांकि गांव में उनका परिवार रहता है, कई घरों में तो सिर्फ महिलाएं ही हैं। खेती से इतर रोजी-रोजगार एवं व्यवसाय में अपना भविष्य संवाराने के उद्देश्य से 60 फीसद लोग पुर्वोत्तर राज्य असम के विभिन्न शहरों मे रहते हैं । बाकी लोग भी व्यवसाय से जुड़े हैं गांव में आयी संपन्नता के पीछे यही वजह है। क्योंकि खेती के भरोसे जिदगी संवारना अब उनके बूते संभव नहीं है। क्योंकि हर साल बरसात के समय रातो नदी का कहर टूटता है। बांध नहीं होने से हर साल खेतों में लगी फसल बर्बाद होती है। जबकि शेष दिनों में सुखाड़ की मार झेलनी पड़ती है क्योंकि सिचाई की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। --खेतों में सिचाई के लिए नहीं है सरकारी सुविधा विकास के इस दौर में भी गांव में किसानों को सिचाई सुविधा उपलब्ध नहीं है। वर्ष 1975 में तत्कालीन विधायक रामचरित्र राय ने सिचाई के लिए लिफ्ट एरिगेशन का निर्माण कराया । लेकिन इससे किसानों को कोई लाभ नहीं मिला । लिफ्ट एरिगेशन चलाने के लिए गांव होकर ही बिजली के खंभे लगाकर प्लॉंट तक बिजली पहुंचाई गई थी । उसी समय से बर्मा गांव में बिजली सुविधा उपलब्ध होने लगी। वर्ष 1998 ग्रामीणों ने जमीन खरीदकर शिव मंदिर की स्थापना की थी। इसके बाद 2017 में ग्रामीणों द्वारा इलाके में भव्य बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। यहां शिवरात्री और सोमवारी में भक्तों की भीड़ लगी रहती है । गांव के पुरब में रामवृक्ष महतो ने राधा कृष्ण मंदिर की स्थापना की। वर्तमान में बंग्ला पर स्थित भुइया बाबा के मंदिर को जीर्णोद्धार के लिए ग्रामीण गणेश पंजियार ने भार उठाया है। बुजुर्ग बताते हैं कि पूर्व के समय में स्व. पराव पंजियार द्वारा गांव के पश्चिम में तालाब का निर्माण कराया था। चोरौत महंत लखन नारायण दास ने पेयजल के लिए बंगला पर तालाब खुदवाया था। बाद में लोग अपने-अपने घर में ही चापाकल लगाने लगे। --मगध से आकर बसे थे पूर्वज: बुजुर्गों के अनुसार, इस गांव के पूर्वज मगध एवं कफेन क्षेत्र से आकर यहां बसे थे। दशकों पहले यहां गरीबी अधिक थी । उनके लिए मजदूरी ही जीविकापार्जन का साधन था। रोजी-रोजगार के लिए धीरे धीरे यहां से लोग गुवाहाटी जाने लगे और अब स्थिति यह है कि यहां के 60 फीसद लोग उधर का रूख कर चुके हैं। इससे उनकी माली हालत भी सुधरी और गांव में संपन्नता भी आई। पचास वर्ष पूर्व ही शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्व.दीपलाल महतो ने अपनी जमीन देकर मध्य विद्यालय का निर्माण कराया था। धीरे-धीरे शिक्षा का विकास होते चला गया । बुजुर्ग धृव महतो बताते हैं कि पहले लोगों के दलान में ही गुरु जी पढ़ाते थे । प्राइमरी तक की पढ़ाई दलान पर ही होती थी । उधर, स्व. मौजे महतो ने अपने जमीन दान देकर प्राथमिक विद्यालय की स्थापना कराई थी । वर्तमान में गांव में लगभग 20 बिटेक , दो डेंटिस्ट और कई लोग व्यवसाय में लगे हैं। यहां 50 फीसद आबादी सूरी समाज के लोगों की है। शेष में अन्य जातियों के लोग हैं । लेकिन गांव की खासियत है कि किसी भी मुद्दे पर ग्रामीण एक साथ बैठकर स्वयं निर्णय ले लेते हैं। पिछले वर्ष गांव के दो युवा को शराब के धंधे में जेल की हवा खानी पड़ी थी । इसे देखकर ग्रामीणों ने पंचायत कर फरमान जारी किया था कि गांव में कोई भी शराब का धंधा करेगा तो उसे गांव से बाहर निकाल दिया जाएगा। इस फैसले का आसपास गांव में चर्चा का विषय बना था।
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