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    बड़ा दिलचस्प है सीओ गली का किस्सा, जमींदारी से शुरू हुई और अंचलाधिकारी के जाने के बाद भी मशहूर

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 05 Dec 2020 01:34 AM (IST)

    सीतामढ़ी। जानकी जन्मभूमि के लिए प्रसिद्ध सीतामढ़ी शहर में गली-मोहल्ले के किस्से भी कम दिलचस्प नह ...और पढ़ें

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    बड़ा दिलचस्प है सीओ गली का किस्सा, जमींदारी से शुरू हुई और अंचलाधिकारी के जाने के बाद भी मशहूर

    सीतामढ़ी। जानकी जन्मभूमि के लिए प्रसिद्ध सीतामढ़ी शहर में गली-मोहल्ले के किस्से भी कम दिलचस्प नहीं हैं। सीओ गली भी उनमें एक है। शायद ही कोई इस गली के नाम से वाकिफ न हो। डाक की चिट्ठियां हो या ऑनलाइन डिलिवरी से मंगाया हुआ कोई सामान, सब इसी गली के नाम से अपने पते-ठिकाने पर पहुंचती है। बच्चों का जन्म प्रमाणपत्र बनाना हो, शादी-ब्याह के लिए स्थान का जिक्र हो या थाना-कचहरी में केस-मुकदमा सब इसी नाम से होता है। यूं कह लीजिए बच्चा-बच्चा की जुबान पर यह गली मशहूर है। स्थानीय बड़े-बुजुर्ग भी बड़े चाव से इस गली के किस्से सुनाते हैं। इसी गली में जन्मे वयोवृद्ध अधिवक्ता कृष्ण किशोर सिंह गली का इतिहास बताते हैं। उनके मुताबिक इस गली की जमीन एक जमाने में बड़े जमींदारों के अधीन हुआ करती थी। 1954 में जमींदारी प्रथा समाप्त हुई तो राजकाज देखने के लिए सरकार की ओर से दो साल बाद यानी 1956 से अंचलाधिकारी बैठने लगे। अंचलाधिकारी का कार्यालय होने के चलते इस गली को सीओ गली के रूप में प्रसिद्धि मिली। डुमरा ब्लॉक में अंचलाधिकारी का कार्यालय शिफ्ट हो जाने बाद भी यह गली सीओ गली के नाम से ही मशहूर रह गई। इस प्रकार 1956 से यानी 64 वर्षों से इसी नाम से जानी जाती है।

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    नानपुर व बुद्धनगरा दो मशहूर स्टेट की जमींदारी थी यहां

    81 साल के कृष्ण किशोर सिंह के अनुसार, सीतामढ़ी जिला 11 दिसंबर, 1972 को मुजफ्फरपुर से अलग होकर बना था। उसके पहले अनुमंडल हुआ करता था। तब इसी गली में अंचलाधीश का बड़ा दफ्तर हुआ करता था। उससे पहले इस गली में अनुमंडल के नारायणपुर व बुद्धनगरा दो स्टेट की जमीन हुआ करती थी। जिस जमीन पर तत्कालीन सीओ का ऑफिस हुआ करता था वह नानपुर स्टेट की थी। उस स्टेट के मैनेजर बिजली सिंह के पिता हुआ करते थे। 1954 में जमींदारी प्रथा समाप्त करने का कानून बना। 1956 में जमींदारी उन्मूलन हो गया और उसी समय अंचलाधिकारियों की पदस्थापना हो गई। तब यहां सीओ का ऑफिस बन गया और अंचालधिकारी बैठने लगे। फिर बिजली सिंह के पिता और सरकार में मुकदमा चलने लगा। चूंकि, जमींदारी प्रथा समाप्त हुई तो सारी जमीन स्टेट की हो गई थी। नानपुर स्टेट के मैनेजर इस जमीन पर अपना दावा ठोकते थे। तकरीबन 16 कट्ठा कुल जमीन का रकबा वाली इस भूमि पर स्वामित्व को लेकर बहुत दिनों तक कोर्ट में मुकदमा चला। बाद में स्टेट और बिजली सिंह के बीच एक समझौता हुआ कि आप एक हिस्से की जमीन अपने अधीन रख लीजिए और शेष जमीन सरकार को दे दीजिए। वैसा ही हुआ। सीओ ऑफिस डुमरा ब्लॉक में हुआ शिफ्ट और पावर सब स्टेशन से रोशन हुई गली 2019 में सीओ ऑफिस डुमरा चला गया। और उसी जमीन पर पावर सब-स्टेशन का निर्माण हो गया। अंचल गली जवाहर चौक सीतामढ़ी कहलाने लगा। नगर परिषद के वार्ड-24 में यह गली मेहसौल रोड में जवाहर चौक बलनारायण पथ से पानी टंकी रेलवे क्वार्टर तक है। अखिल भारतीय आध्यात्मिक उत्थान मंडल के प्रचारक विश्वदेव सहाय जी ने बताया कि इसी गली के नाम से कोई चिट्ठी-पतरी आती है या कोई कार्यक्रम-आयोजन वगैरह होता है। इस गली में श्रम विभाग का ऑफिस भी हाल तक चलता रहा है। वैदही वल्लभ निकुंज रामजानकी मंदिर के आचार्य पं. सुमन झा का कहना है कि इसी गली में उनका जन्म हुआ है। बचपन से ही सीओ गली के नाम से हम लोग इस इलाके को जाना करते हैं। स्थानीय रतन झा का कहना है कि यह गली इसी नाम से मशहूर है। हालांकि, इन बुद्धिजीवियों को इस बात का भी बड़ा मलाल है कि अब यह गली भी लूचे-लफंगों के चलते बदनाम होने लगी है, पुलिस की गाड़ियां गुंडों-बदमाश की टोह में फर्राटा भरने लगी है। हाल के वर्षों में कई आपराधिक घटनाओं ने इस गली की साख पर बट्टा लगाया है।