अन्नप्राशन संस्कार का बड़ा महत्व, आंगनबाड़ी केंद्रों पर इसीलिए जोर
अन्नप्राशन संस्कार का हिदू धर्म में बड़ा महत्व है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर इसीलिए सरकार भी जोर दे रही है। इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी हैं। हिदू धर्म में मनुष्य के पैदा होने से आखिरी सांस तक 16 संस्कार किए जाते हैं। इन सभी का व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्व होता है।

सीतामढ़ी । अन्नप्राशन संस्कार का हिदू धर्म में बड़ा महत्व है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर इसीलिए सरकार भी जोर दे रही है। इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी हैं। हिदू धर्म में मनुष्य के पैदा होने से आखिरी सांस तक 16 संस्कार किए जाते हैं। इन सभी का व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्व होता है। हालांकि, आजकल की भागदौड़ भरी जिदगी में ये सभी संस्कार केवल नाम के रह गए हैं। शहर के प्रतापनगर मोहल्ला में नंदकिशोर सिंह के घर नाती के जन्मोत्सव पर अन्नप्राशन संस्कार पूरे विधि-विधान से किया गया। उनकी पुत्री अमृता उर्फ पम्मी के पुत्र अंश को अन्नप्राशन में खीर, मीठा दलिया, सूजी का हलवा, फल, मिठाई, ड्राई फ्रूट्स आदि बहुत सारे व्यंजनों का स्वाद चखाया गया। ये चीजें सेहत के लिए लाभदायक होती हैं। पेंटिग आर्टिस्ट नेहा रानी ने बताया कि उनके घर अन्नप्राशन संस्कार को लेकर उत्सवी माहौल रहा। हिदू धर्म के सभी संस्कारों के बारे में अधिकतर लोग कम ही जानते हैं। शंकर चौक डुमरा के आचार्य मुकेश मिश्रा बताते हैं कि इन्हीं 16 संस्कारों में से 7वां संस्कार है अन्नप्राशन। उन्होंने बताया कि अन्नप्राशन वह संस्कार है, जब शिशु को पारंपरिक विधियों के साथ पहली बार अनाज खिलाया जाता है। इससे पहले तक शिशु केवल अपनी माता के दूध पर ही निर्भर रहता है। यह संस्कार बेहद महत्वपूर्ण है। अन्नप्राशन संस्कार का महत्व:
अन्नप्राशन संस्कृत के शब्द से बना है जिसका अर्थ अनाज का सेवन करने की शुरुआत है। इस दिन शिशु के माता-पिता पूरे विधि-विधान के साथ बच्चे को अन्न खिलाते हैं। कहा गया है अन्नाशनान्यातृगर्भे मलाशालि शद्धयति जिसका अर्थ होता है माता के माता के गर्भ में रहते हुए जातक में मलिन भोजन के जो दोष आ जाते हैं, उनका नाश हो जाता है। जब बालक 6-7 महीने का हो जाता है और पाचनशक्ति प्रबल होने लगती है तब यह संस्कार किया जाता है।
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