दिलीप साहब का भोजपुरी फिल्मों से भी रहा कनेक्शन, विलेन अवधेश मिश्र को जब लिफ्ट में मिल गए ट्रैजेडी किग
सीतामढ़ी । अपने हरफनमौला अंदाज के लिए ट्रेजडी किग के नाम से मशहूर एक महान कलाकार दिलीप कुमार के निधन से सारा आलम शोक में डूबा है।

सीतामढ़ी । अपने हरफनमौला अंदाज के लिए ट्रेजडी किग के नाम से मशहूर एक महान कलाकार दिलीप कुमार के निधन से सारा आलम शोक में डूबा है। उनके देहांत की खबर मिलने के बाद से कई सेलेब्स उनसे जुड़ी यादें शेयर कर रहे हैं। उनमें से एक हैं भोजपुरी फिल्मों के मशहूर अभिनेता अवधेश मिश्रा, जिन्होंने विलेन के किरदार को हीरो के मेन लीड रोल के समानान्तर लाकर खड़ा कर दिया और यह साबित किया कि विलेन की बदौलत भी फिल्में हिट हो सकती हैं। उन्होंने बताया कि बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि दिलीप साहब का भोजपुरी फिल्मों से भी खास कनेक्शन रहा है। अभिनेता रवि किशन को लेकर उन्होंने आखिरी समय में एक फिल्म प्रोड्यूस की थी, जिस फिल्म का नाम था-'अब त बनजा सजनवा हमार' (2006), उस वक्त तक हम उनके घर जाया करते थे। तब सेट पर दिलीप साहब के साथ उनकी पत्नी सायरा बानो से भी मुलाकात हुई थी। 1992 में एक लिफ्ट में दिलीप साहब से इक्तेफाकन हुई मुलाकात
जब मैं दिल्ली में थिएटर करता था 1992 में, तब एक बार अचानक से लिफ्ट में उनसे मुलाकात हो गई। मैं और मेरी पत्नी रागनी उन्हें देखते ही रह गए। यकीन ही नहीं हो रहा था कि दिलीप साहब हमारे सामने हैं। उनसे बात की मैंने, तो उन्होंने अपना हाथ पीठ पर दुलार से फेरते हुए आशीर्वाद दिया। सायरा बानो के प्रोड्क्सन में उन्होंने अपनी ही फिल्म 'गोपी' का रिमेक रविकिशन को लेकर बनाई थी। उस दरम्यान दिलीप साहब से मुलाकातें होती रहती थीं। वे एक अदभुत और बेहद जिदादिल इंसान थे। आखिरी समय में उनसे मिलने उनके घर पर गया था अस्पताल नहीं जा पाया था] जिसका मलाल रहेगा। अब तो हीरो की प्रथा ही खत्म हो गई है खासकर के हिदी सिनेमा में, कैरेक्टर्स हो गए हैं। सब्जेक्ट ओरिएंटेड फिल्में हो गई हैं। तभी आज नवाजुद्दीन सिद्दिकी होते हैं, कभी पंकज त्रिपाठी अपने बूते फिल्म चला देते हैं। अमिताभ-शाहरूख से लेकर स्ट्रगलर्स में भी दिलीप साहब की छाप
दिलीप साहब के बारे में कुछ कहना मतलब सूरज को दीया दिखाने जैसा है। न वैसा कोई अभिनेता न उनके पहले था न अभी है। मैलोड्रामैटिक पीरियड में रियलिस्टिक एप्रोच को लेकर के स्ट्रालाइज एक्टिग को लेकर कोई आया तो वह दिलीप साहब थे। उस समय मेलो ड्रामा चलता था। आज का अभिनय तो उस समय था ही नहीं, अल्फाज ही बड़े थिएट्रिकल होते थे। तब से फिल्म इंडस्ट्री रियलिस्टिक जोन में जाने लग गई। ऐसा कोई हिदुस्तान में अभिनेता पैदा नहीं हुआ जो अभियन करे और उसमें दिलीप साहब की छाप दिखाई न पड़े। चाहे आप अमिताभ बच्चन हों, शाहरूख खान हों या कोई स्ट्रगलर्स जो आज भी आते हैं चाहे वो कितना भी रियलिस्टिक एप्रोच का अभिनय करे, कितना भी आर्टिस्टिक अभिनय करे लेकिन, दिलीप साहब की छवि उसमें दिख ही जाएगी। चूंकि रियलिज्म और उस तरह के अभिनय का एप्रोच सर्वप्रथम उन्होंने ही किया और मिल का पत्थर साबित कर दिया कि यहीं अंत हो सकता है। 'जुगनू' और 'बाबुल' बनकर तैयार, 'अजनबी' की शूटिग जारी अवधेश मिश्रा की निजी जिदगी की बात करें तो उनका सफर बेहद संघर्षपूर्ण रहा है और कई जगह से रिजेक्ट होने के बाद आखिरकार उन्हें 2005 में पहला ब्रेक मिला- 'दूल्हा अइसन चाहीं' से। 52 वर्ष के अवधेश का जन्म 19 जुलाई, 1969 को सीतामढ़ी के सुतिहारा में हुआ था। अवधेश को एक बेटा-बेटी है, सपरिवार मुंबई शिफ्ट हैं। बड़ी बेटी साक्षी मिश्रा 25 साल की है और उससे छोटा सलोना मिश्रा। वह चार भाई एक बहन हैं। तीसरे नंबर पर वह हैं। सबसे बड़े शिवेंद्र मिश्रा पटना में बिजनेस संभालते हैं। दूसरे सुशील मिश्रा गांव में ही हैं। चौथा ब्रजेश मिश्रा मेडिकल कंपनी में पटना में बड़़े ओहदे पर हैं। इकलौती बड़ी बहन है, जो सीतामढ़ी शहर में रेलवे स्टेशन के पास रहती हैं। बाबूजी नहीं रहे। मां का नाम जानकी देवी और बाबू जी का नाम रामरेखा मिश्र है। अभी उत्तराखंड में कर रहे इमोशनल हॉरर फिल्म 'अजनबी' की शूटिग चल रही। जल्द ही 'जुगनू' और 'बाबुल' फिल्म देखने को मिलेगी जो बनकर तैयार है।
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