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    बंगाल की स्थापत्य कला से प्रभावित है बाबा ईशाननाथ मंदिर

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 06 Aug 2022 12:17 AM (IST)

    बेलसंड (सीतामढ़ी)। बेलसंड अनुमंडल मुख्यालय से लगभग 5 किलोमीटर उत्तर-पूरब कोण पर अवस्थित है बाबा ईशाननाथ मंदिर।

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    बंगाल की स्थापत्य कला से प्रभावित है बाबा ईशाननाथ मंदिर

    बेलसंड (सीतामढ़ी)। बेलसंड अनुमंडल मुख्यालय से लगभग 5 किलोमीटर उत्तर-पूरब कोण पर अवस्थित है बाबा ईशाननाथ मंदिर। यह शिव मंदिर जन-जन के आस्था का केंद्र है। यहां शिवरात्रि, बसंत पंचमी, अनंत चतुर्दशी के अलावा सावन मास में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इसे दमामी मठ के नाम से भी जाना जाता है। यहां सैकडों वर्षों से लोग पूजा करते हैं। मान्यता के अनुसार यह स्वयंभू महादेव हैं जो अपने श्रद्धालुओं को भोग एवं मोक्ष दोनों देते हैं। मंदिर की प्रात:कालीन आरती सामान्य दिनों में सुबह चार बजे एवं संध्या आरती शाम के आठ बजे होती है। 15 एकड़ में फैले मंदिर परिसर में एक पोखर एवं तीन कुएं मंदिर की भव्यता को बयां करते हैं। प्राचीन काल में यह मंदिर बागमती नदी के किनारे अवस्थित था। बाद में नदी ने अपनी धारा परिवर्तित कर ली। लेकिन नासी के रूप में नदी का अस्तित्व विराजमान है। ऐसी मान्यता है कि मिथिला राज्य में पड़े अकाल के समय हलेष्टि यज्ञ के लिए स्थल चयन के दौरान महाराजा जनक ने यहां भी पूजा अर्चना की थी। बाबा ईशाननाथ मंदिर कि बनावट बंगाल की स्थापत्य कला से प्रभावित है। इसका निर्माण सुरखी-चुना से किया गया है जो काफी आकर्षक है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिग भूतल से 12 फीट नीचे है और लगभग दो फीट ऊपर है। यह शिवमंदिर नेपाल में अवस्थित जलेश्वर नाथ, अरेराज में अवस्थित सोमेश्वरनाथ, गिरमिसानी स्थित हलेश्वरनाथ और देकुली में अवस्थित भुवनेश्वरनाथ कि तरह भूतल से एकसमान गहराई में है। इस सभी मंदिरों के गर्भगृह एवं निर्माण शैली काफी हद तक मिलती है। ये सभी मंदिर प्राचीन मिथिला राज के अंतर्गत आते थे। ईशाननाथ मंदिर बरसात के दिनों में जलमग्न हो जाता है। मान्यता के अनुसार जलमग्न होने कि स्थिति के अनुसार इलाके में बरसात एवं सुखाड़ का आकलन किया जाता है। इस तरह के गर्भगृह वाले पांच मंदिर मिथिला में हैं लेकिन सिर्फ ईशाननाथ हीं जलमग्न होते हैं। मंदिर के सामने नंदी के बगल में महंतो की समाधि बनी हुई है। आलेखों के अनुसार इस मंदिर के पहले महंत दुंद गिरी थे। शिष्य परंपरा के अनुसार वर्तमान में उनकी 26 वीं पीढ़ी मंदिर कि देखरेख करती है। इसके पूर्व का इतिहास उपलब्ध नहीं है। मंदिर प्रांगण में दो विशाल घंटा एक दूसरे के ऊपर लगा हुआ है। ऊपर लगे घंटा पर उत्कीर्ण अभिलेख के अनुसार इस घंटा को नेपाल स्थित जलेश्वर स्थान के महंत प्रीति गिरी ने कार्तिक पूर्णिमा विक्रम संवत 1192 में लगवाया था। ईशाननाथ मंदिर तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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