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कोरोना योद्धा बीडीओ रागिनी साहू के जज्बे को सलाम, पति की मौत के बाद भी ड्यूटी से डिगी नहीं

सीतामढ़ी। मन में अजीब सी कशमकश थी। एक तरफ पति की मौत का सदमा तो दूसरी तरफ कोरोना के ि

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 12:15 AM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 12:15 AM (IST)
कोरोना योद्धा बीडीओ रागिनी साहू के जज्बे को सलाम, पति की मौत के बाद भी ड्यूटी से डिगी नहीं
कोरोना योद्धा बीडीओ रागिनी साहू के जज्बे को सलाम, पति की मौत के बाद भी ड्यूटी से डिगी नहीं

सीतामढ़ी। मन में अजीब सी कशमकश थी। एक तरफ पति की मौत का सदमा तो दूसरी तरफ कोरोना के खिलाफ छिड़ी जंग में ड्यूटी सामने थी। इस विपरीत हालात में सामान्य आदमी का हौसला जरूर डगमगा सकता था। मगर पुपरी बीडीओ रागिनी साहू ने अपने हौसले और जज्बे से काम लेकर मिसाल पेश किया। पुपरी बीडीओ रागिनी साहू उन लोगों के लिए मिसाल हैं, किसी हादसे में अपनों को खोने के बाद उससे उबरने में जिन्हें वर्षों लग जाते हैं।

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इस महिला पदाधिकारी के प्रोफेसर पति की पिछले साल कोरोना काल में सड़क हादसे में मौत हो गई। पति के दाह-संस्कार के साथ ही वह अपने कर्तत्वय पथ पर फिर से चल पड़ीं। उनकी इस जज्बे को जिलाधिकारी अभिलाषा कुमारी शर्मा समेत पूरा जिला प्रशासन सलाम करता है। उनकी बहादुरी की चर्चा करते हुए डीपीआरओ परिमल कुमार बताते हैं कि इस महिला पदाधिकारी ने कोरोना योद्धा बनकर विपदा से लड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विगत एक वर्ष के दौरान रोना विपदा से लड़ने में उल्लेखनीय भूमिका निभाईं। इन दिनों गांव-गली में घूम-घूमकर लोगों को मास्क पहनने और शारीरिक दूरी कायम रखने के साथ संक्रमण से बचाव के उपायों को लेकर जागरूक करती रहती हैं। कोरोना प्रभावित इलाकों में पहुंचकर कंटेनमेंट जोन बनाती हैं। मास्क नहीं पहनने वालों को गुलाब का फूल भेंटकर उनको शपथ दिलाती हैं कि आगे से बिना मास्क के घर से नहीं निकलेंगे तथा मास्क पहनने वालों को फूलों की माला पहनाकर स्वागत करती हैं।

अवकाश पर नहीं जा मैदान-ए-जंग में डटीं रहीं

पिछले साल होली के समय जब वह घर गईं तो 9 मार्च को उनके पति की मौत हादसे में हो गई। तब उनका पूरा काम खत्म भी नहीं हुआ कि कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन हो गया। इस विपरीत परिस्थिति में बच्चे मना करने लगे। बावजूद प्रखंड के लोगों की सेहत की चिता सालने लगी। पति के गम से ज्यादा इस महामारी में लोगों की उन्हें जरूरत व तकलीफ महसूस होने लगी। लिहाजा उन्होंने इरादा बदला और पति के काम के 14 वें दिन ही कर्तव्य पथ पर लौट गई। भावुक होकर कहती है कि उस विपत्ती की घड़ी में परिवार व कर्तव्य पथ के बीच की उलझन सुलझाना आसान नहीं था, लेकिन अब कोई कशमकश नहीं।

निष्ठा के साथ कर्तव्य का कर रही निर्वहन

बतौर बीडीओ रागनी न सिर्फ प्रतिदिन कार्यालय पहुंचकर रूटीन कार्य करती है। बल्कि आपदा-विपदा की घड़ी में आगे बढ़कर लोगों की उलझने व समस्याओं का निदान करती है। खासकर कोरोना के समय हॉट स्पॉट एरिया में जाती रही क्वारंटाइन सेंटर पर भी नजर रखी। इस दौरान परिवार से दूरी बनाए रखी। परिवार के लोगों को उनकी चिता रहती थी। बावजूद कंटेंमेंट जोन में जाकर लोगों को उपलब्ध सुविधाओं को मुहैया कराना, बाहर से आने वालों को रहने की व्यवस्था, आम लोगों के बीच जाकर उन्हें संक्रमण से बचने के लिए जागरूक करना, हिदायत देना, पीएचसी से लेकर अन्य स्थानों पर व्यवस्था का हाल जानना, मास्क और वाहन चेकिग करना जैसे लीक से हटकर कार्यो को अंजाम तक पहुंचाती रहीं। दीगर यह कि वह दिन ही नही रात के किसी समय भी वह कर्तव्य निर्वहन में पीछे नही रहती है। महामारी के दौरान डेरा पर भी उन्होंने अपने कार्य को वरीयता दी। ड्यूटी खत्म होने के बाद डेरा पर रहकर भी कार्य किया। ड्यूटी के आगे बच्चों को नहीं दे पा रही मां का प्यार : समस्तीपुर जिले के सिधिया प्रखंड की रहने वाली बीडीओ रागनी के पति सीताराम साह एक प्रोफेसर थे। उन्हें दो संतान हैं। बड़ी लड़की अभिलाषा कुमारी (24) दिल्ली में रहती है। जबकि एक पुत्र हर्षवर्धन (17) नीट की तैयारी कर रहा है। शांत स्वभाव की रागनी को कर्तव्य को ईमानदारी और निष्ठा के साथ निर्वहन करने में सकून मिलता है। उन्हें ईश्वर पर भरोसा है और इसी विश्वास के कारण छुट्टी के दिनों में भी बच्चों के साथ दो पल गुजारने के सिवाए विभागीय और पब्लिक से जुड़े कार्यो को निष्पादन करती है। बताती है कि वैसे तो घर जाने का कम मौका मिल पाता है लेकिन शारदीय छठ पर्व में ना चाहते हुए भी घर जाती हैं।


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