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    महाराजा सहलेश की जन्मस्थली में उत्सव का माहौल

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 18 Apr 2019 01:15 AM (IST)

    सुरसंड ़में पड़ोसी देश नेपाल के सिरहा जिले का सत्ययुग। यह स्थान मिथिलांचल समेत नेपाल के हजारों गांवों में ग्राम देवता और कुल देवता के रूप में पूजे जाने ...और पढ़ें

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    महाराजा सहलेश की जन्मस्थली में उत्सव का माहौल

    सीतामढ़ी। सुरसंड ़में पड़ोसी देश नेपाल के सिरहा जिले का सत्ययुग। यह स्थान मिथिलांचल समेत नेपाल के हजारों गांवों में ग्राम देवता और कुल देवता के रूप में पूजे जाने वचाले राजा सहलेश की स्थली है। सिरहा के ससत्ययुग गांव में हर साल विशाल मेला लगता है। यहां पड़ोसी देश नेपाल के विभिन्न इलाकों के अलावा सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, सारण, सिवान, पूर्वी व पश्चिमी चम्पारण, समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी खगड़िया, सुपौल, बेगूसराय, पूर्णिया और के इलाकों से श्रद्धालु पहुंचते है। यहां सैकड़ों साल पुराना वृक्ष, सरोबर व राजा सहलेश का मंदिर है। बताया जाता है कि यहां राजा सहलेश महिसौथा से मालिकदह गांव स्थित जंगल में पहुंचते थे। यहां 15 एकड़ भू-भाग में फैले तालाब में प्रति दिन स्नान कर पीपल के पेड़ वस्त्र सुखाते थे। साथ ही पुरैन के पत्ता पर झीझड़ी खेलकर अपने गांव समहिसौथा लौटते थे। नेपाल के सर्लाही पहुंचकर पूजा करते थे। राजा सहलेश के फुलवारी में मालिन का काम तीन बहनें रेशम, कुशमा व दौना करती थी। इस स्थान पर हारम के पेड़ से सतुआनी से एक दिन पूर्व डाली के आधी टहनी पर माला जैसा फूल खिलता है। वैसे फूल खिलते आज तक कोई नही देखा है। ग्रामीणों का कहना है कि राजा सहलेश महाराज के फुलवारी स्थित गहबर के पीछे जमीन के नीचे से अपने-आप पानी निकलता रहता है, जबकि यहां पानी आने का कोई स्त्रोत नही है। फुलवारी में विभिन्न प्रकार के चिड़ियों की आवाज आज भी गूंजती रहती है। पहले इस फुलबारी में शेर, चीता, हाथी और भालू जैसे जानवर रहते थे, हालांकि अब ये जानवर नहीं दिखते है। सहलेश फुलवारी के पुजारी चंदन कुमार सिंह व मालिकदह के पुजारी रामछबीला यादव बताते है कि यहां प्रत्येक वर्ष सतुआनी पर बड़ी धूमधाम से पूजा अर्चना की जाती है। यहां मत्था टेकने से हर मुराद पूरी होती है।

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