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    महाभारत व मुगलकाल से शेखपुरा जिला का रहा है संबंध

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 01 Aug 2017 03:05 AM (IST)

    शेखपुरा। शेखपुरा 31 जुलाई 1994 को मुंगेर जिले से अलग होकर अस्तित्व में आया था। तत्कालीन विधायक राजो

    महाभारत व मुगलकाल से शेखपुरा जिला का रहा है संबंध

    शेखपुरा। शेखपुरा 31 जुलाई 1994 को मुंगेर जिले से अलग होकर अस्तित्व में आया था। तत्कालीन विधायक राजो ¨सह के प्रयास से तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इसे जिले का दर्जा दिया था। इसके साथ बरबीघा को अनुमंडल बनाने की भी घोषणा की गई। लेकिन विभिन्न राजनीतिज्ञ कारणों से बरबीघा को अनुमंडल तो नहीं बनाया जा सका। लेकिन 31 जुलाई 1994 को ही बरबीघा के कुछ हिस्से को काटकर शेखोपुरसराय के नाम से अलग प्रखंड अवश्य ही बना दिया गया। इस जिले में मात्र 6 प्रखंड शेखपुरा, बरबीघा, अरियरी, चेवाड़ा, घाट कोसुम्भा एवं शेखोपुरसराय है। जबकि अनुमंडल भी शेखपुरा अबतक सिर्फ शेखपुरा ही है। इस जिले में मात्र दो ही विधानसभा क्षेत्र बरबीघा और शेखपुरा है। जबकि दोनों का लोकसभा क्षेत्र अलग-अलग है ।

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    बरबीघा विधानसभा क्षेत्र नवादा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। जबकि शेखपुरा जमुई लोकसभा क्षेत्र में पड़ता है। जिससे दोनों विधनसभा के अलग-अलग सांसद हैं।

    शेखपुरा जिले के इतिहास के बारे में यह बताया जाता है कि महाभारत काल के समय एक राक्षस हिंडा की पुत्री हिडिम्बा अपने पूर्वी खंड पर अवस्थित पहाड़ी पर रहती थी। जिसके साथ पाण्डु पुत्र भीम ने शादी की और दोनों के बीच एक पुत्र हुआ। जिसका नाम घटोत्कच्छ पड़ा । हिन्दू संस्कृति के अनुसार हिंदुओं का बड़ा भाग भी इसी पहाड़ी तलहटी के पास निवास किया करते थे। जो इस पहाड़ी को गिरिहिण्डा नाम दे दिया। अभी यह पर्वत गिरिहिंडा पर्वत के नाम से प्रसिद्ध है। इस पर्वत पर भगवान शिव शंकर के साथ अन्य कई देवी देवताओं की प्रतिमाएं आज भी बिराजमान है। यह पर्वत आज भी आधुनिक छटाओं को बिखेरते हुए हर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता आ रहा है । शेखपुरा शहर के नामांकन के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां एक महान सुफी संत हजरत मखदुम शाह शोभ शेफ रहमतुल्ला अलेह ने शेखपुरा शहर की स्थापना की थी। शेख साहब पहाड़ों एवं जंगलों के हिस्से को कटवाकर शहर बसाया और खुद भी यहीं बस गए। जिससे इस शहर का नाम शेख साहब के नाम पर शेखपुरा पड़ा। आज भी इस शहर में मुस्लिम आबादी अच्छी खासी हैं और कई गांवों में भी मुस्लिम राजे-महाराजे एवं जमीन्दार थे। उन्हीं में से एक हुसेनाबाद भी था इसी हुसेनाबाद नबाव परिवार से फिल्मी दुनियॉ की मशहूर अभिनेत्री कुमकुम भी आती थी। लेकिन वर्तमान में हुसेनाबाद नवाब के परिजनों की हालत अच्छी नहीं है। बरबीघा-शेखपुरा सड़क पर एक गांव वर्तमान में फरीदपुर नाम से जाना जाता है। इसका भी अपना इतिहास बताया जाता है कि यहां शेरशाह उर्फ फरीद खॉ ने नाम से यह गांव बसाया गया है। बरबीघा प्रखंड के रमजानपुर गांव का भी ऐसा ही इतिहास बताया जाता है। इस गांव के बगल में सामस गांव है। जहां ब्राह्मणों और राजपूतों की अच्छी आबादी है। बताया जाता है कि सामस गांव में मंदिरों की बहुत संख्या थी। जिसे मुगल शासन काल के समय ध्वस्त कर दिया गया और बगल में ही रमजानपुर के नाम से एक गांव बसाया गया । वर्तमान समय में खोदाई के दौरान लगातार सामस गांव के तालाब-पोखरों से हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं निकलती है। जिससे अब सामस गांव विष्णुधाम के नाम से जाना जाता है। अभी करीब तीन महीने पूर्व ही इसी गांव के तालाब खोदाई के दौरान माता लक्ष्मी की भी प्रतिमाएं मिली है। शेखपुरा के बारे में यह भी बताया जाता है कि पल्लव शासन के दौरान शेखपुरा मुख्य प्रशासनिक केन्द्रों में एक था । ऐसा भी माना जाता है कि प्रसिद्ध अफगान शासक शेरशाह सुरी ने यहां के वर्तमान खाण्डपर में पीने और खाना बनाने के लिए पानी की किल्लत को देखते हुए दाल कुंआ के नाम से एक कुएॅ की खुदाई कराई गयी थी । यह कुआं वर्तमान में भी इसी नाम से प्रसद्धि है । इस कुएॅ के पानी से दाल बनाने पर दाल तुरंत गल कर तैयार हो जाते हैं और यह दाल खाने में भी बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं । मुगल काल के दौरान ही शेखपुरा को थाना का दर्जा मिला । ब्रिटिश काल में शेखपुरा को बिग कोटवाली का भी दर्ज प्राप्त हुआ था और आजादी के बाद ब्लौक का दर्जा मिला । 14 अप्रैल 1983 को शेखपुरा को अनुमंडल का भी दर्जा प्राप्त हुआ फिर इस क्षेत्र के कदाबर कांग्रेस विधायक राजो ¨सह के प्रयास से शेखपुरा को 31 जुलाई 1994 को जिला का भी दर्जा प्राप्त हो गया । जिला बनने के बाद शेखपुरा का विकास भी लगातार होता जा रहा है । आज यह जिला अपना 23 वां स्थापना दिवस मना रहा है। जिला बनने के बाद शेखपुरा, बरबीघा, शेखोपुरसराय, चेवाड़ा, अरियरी, एवं घाटकोसुम्भा प्रखंड के लोगों को बहुत राहत मिल रहा है । नहीं तो किसी कार्य के लिए यहां के लोगों को मुंगेर दौड़ना पड़ता था ।