मलखाचक के शूरवीरों ने उड़ा रखी थी ब्रिटिश हुक्मरानों की नींद
छपरा-हाजीपुर एनएच किनारे स्थित सारण का मलखाचक गांव है। गंगा किनारे बसा यह गांव स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष त्याब व बलिदान का साक्षी रहा है।
संजय शर्मा, दिघवारा (सारण) : छपरा-हाजीपुर एनएच किनारे स्थित सारण का मलखाचक गांव है। गंगा तट पर बसा यह गांव स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष, त्याग व बलिदान का साक्षी रहा है। इस धरती पर जन्मे वीर सपूतों व स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की निशानी गांधी कुटीर आज भी गौरवशाली इतिहास का गवाह है।
ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए यहां के आजादी के दिवानों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। 1923 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व जवाहर लाल नेहरू ने आकर यहां की माटी को नमन किया था। क्रांतिकारी योगेंद्र शुक्ल की गिरफ्तारी यहीं से 1933 में हुई। पकड़े जाने के बाद उन्हें काला पानी की सजा दी गई। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बैकुंठ शुक्ल भी यहीं रहते थे, जिन्हें हाजीपुर में गिरफ्तार कर फांसी पर लटका दिया गया था।
ब्रिटिश हुकूमत की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से ही खिलाफत
मलखाचक सारण का वह गांव है, जहां के वीर बांकुरें ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफत प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से अगस्त क्रांति तक करते रहे। 1857 की प्रथम लड़ाई में बाबू वीर कुंवर सिंह की सेना में इस गांव के कई योद्धा शामिल थे। 1857 की लड़ाई में इस गांव के योद्धाओं में एक थे राम गोविद सिंह उर्फ चचवा। कहते हैं कि इनकी अभूतपूर्व वीरता के कुंवर सिंह कायल थे। खुदीराम बोस के बाद मुजफ्फरपुर कारा में जिस प्रथम बिहारी क्रांतिकारी को अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाया वे इसी मलखाचक गांव के रामदेनी सिंह थे। वे सारण में हिसक क्रांति की अगुआई करने वालों में मुख्य थे। रामदेनी बाबू क्रांतिकारी संस्था आजाद दस्ता के संचालक थे। हाजीपुर ट्रेन डकैती के मुख्य अभियुक्त के रूप में अंग्रेजी सल्तनत ने 1930 में फांसी दी थी। आज घर व गांव वालों के पास उनकी एक तस्वीर भी उपलब्ध नहीं है। गांव के लोग आज भी मुजफ्फरपुर कारा प्रशासन से उनकी तस्वीर लेने को प्रयासरत हैं। हिसक क्रांति से शुरू कर अहिसा के पुजारी बने रामविनोद
अपने मलखाचक गांव में गांधी कुटीर की स्थापना करने वाले क्रांतिवीर रामविनोद बाबू प्रारंभ में खुदीराम बोस से प्रभावित थे। उनका उन दिनों छद्म नाम ज्योतिन मुखर्जी था। वे भगत सिंह के दल में काम किया करते थे। 1918 में क्रांतिकारियों की कामाख्या (असोम) में हुई सभा में उन्हें बिहार का इंचार्ज बनाया गया था। आतंकवादी क्रांति के अस्थाई प्रभाव से निराश होकर बाद में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुआई बन गए। 1921 में उन्होंने अपने गांव मलखाचक में गांधी कुटीर की स्थापना की। यहां महिलाओं ने 700 चरखा व 500 करघे पर कार्य किया। इससे 8200 रुपये आय होने लगी थी, जो स्वावलंबी भारत की परिकल्पना को साकार करने लगा था। स्वतंत्र भारत में रामविनोद सिंह सोनपुर विधानसभा क्षेत्र के प्रथम एमएलए बने। उनकी दोनों पुत्रियां 14 वर्षीया शारदा व 11 वर्षीया सरस्वती चूड़िया लेकर लोगों को ललकारते हुए स्वतंत्रता संग्राम में कूदने को आह्वान करतीं थीं। इन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। मलखाचक गांव के दर्जनों शूरवीर थे क्रांति के संवाहक
मलखाचक गांव में स्वतंत्रता आंदोलन के दर्जनों सिपाही थे। इनमें मुख्य लालस सिंह, मुनेश्वर सिंह, लक्ष्मी सिंह, विश्वनाथ सिंह, सुदामा सिंह, देवनारायण सिंह, रामपृत सिंह, रामआशीष सिंह, विश्वनाथ सिंह, केदार सिंह की मां, रामजी सिंह, राजेश्वर सिंह, राजमंगल सिंह, रामानंद सिंह, राजदेव सिंह, श्रीभगवान सिंह, पुकार महतो, चतुर्भुज सिंह, नन्द किशोर सिंह, युगेश्वर सिंह, बेचन सिंह, प्रदीप सिंह, विनय सिंह, त्रिलोकी सिंह आदि थे।
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- खुदीराम बोस के बाद मुजफ्फरपुर कारा में फांसी पर लटकने वाले पहले बिहारी क्रांतिकारी थे मलखाचक के रामदेनी सिंह
- स्वतंत्रता आंदोलन में सूबे के क्रांतिकारियों का अड्डा था रामविनोद बाबू का मलखाचक गांव
- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व जवाहर लाल नेहरू सहित स्वतंत्रता के अनेक पहरूओं ने यहां आकर माटी को किया था नमन
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- 19 अगस्त 1942 को दिघवारा-मलखाचक में अंग्रेज डीआइजी की फायरिग में तीन क्रांतिकारी हो गए थे शहीद
- 22 अगस्त 1942 की तड़के गोरे सैनिकों ने मलखाचक की घेराबंदी कर जला दिया रामविनोद बाबू का मकान
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