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    सारण का चुनावी अखाड़ा: इस बार दल बदल, ताकत व सुपरस्टार पर दारोमदार

    Updated: Sat, 01 Nov 2025 11:18 AM (IST)

    सारण का चुनावी मैदान इस बार दल-बदल, उम्मीदवारों की ताकत और सुपरस्टार प्रचारकों के कारण दिलचस्प हो गया है। नेताओं के पार्टी बदलने से समीकरण बदल गए हैं। हर उम्मीदवार मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहा है, और सुपरस्टार प्रचारक रैलियों में भीड़ जुटा रहे हैं। देखना यह है कि किसका प्रयास सफल होता है।

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    जाकिर अली, छपरा। सारण जिला इस बार सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोर रहा है। छह नवंबर को पहले चरण में होने वाले मतदान में जिले की 10 सीटों पर चुनावी जंग अपने चरम पर है। दांव-पेच और भितरघात से निपटने के साथ दलों द्वारा अपने आधार वोट बैंक को सहेजने का उपक्रम हो रहा।

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    2020 के चुनाव में जहां महागठबंधन ने सात सीटों पर कब्जा जमाया था, वहीं एनडीए को केवल तीन सीटें मिली थीं। इस बार का मुकाबला केवल दो गठबंधनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दलबदल, पारिवारिक ताकत और व्यक्तिगत वर्चस्व का परीक्षण बन गया है।

    चर्चा सुपस्टार और राजनीतिक रूप से अनुभवी की भी है। सारण की राजनीति में दशकों से प्रभुनाथ सिंह के परिवार का प्रभाव रहा है, इस बार वही परिवार राजनीतिक आस्था बदलकर पूरे समीकरण को बदलने को प्रयास में है।

    कुल मिलाकर सारण का चुनावी अखाड़ा बिहार की राजनीति के बदलते दौर की तस्वीर पेश कर रहा है। यहां नेताओं की निष्ठा, जनता की प्राथमिकता और राजनीति के स्वरूप तीनों की असली परीक्षा होने वाली है।

    बनियापुर में भाई बनाम भावनाओं का मुकाबला

    बनियापुर विधानसभा सीट पर मुकाबला बेहद दिलचस्प है। यहां केदारनाथ सिंह (प्रभुनाथ सिंह के भाई) इस बार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। वह पहले राजद के प्रत्याशी थे और इसी पार्टी से विधायक भी रह चुके हैं। अब वह भाजपा का दामन थामकर पूरे राजनीतिक समीकरण को पलटने की कोशिश में हैं।

    वहीं राजद ने दिवंगत पूर्व विधायक अशोक सिंह की पत्नी चांदनी देवी को मैदान में उतारकर भावनात्मक और जातीय संतुलन साधने की कोशिश की है। इस सीट पर राजपूत और यादव मतदाताओं के ध्रुवीकरण या बिखराव पर परिणाम निर्भर करेगा। दोनों दलों के लिए यह सीट सम्मान की लड़ाई बन चुकी है।

    परसा और छपरा में बदलते समीकरण और ग्लैमर का तड़का 

    परसा का चुनावी भूगोल इस बार परंपरागत राजपूत-यादव समीकरण से बाहर निकलता दिख रहा है। कई सीटों पर दलबदल और नए चेहरों ने जातीय आधार की रेखाओं को धुंधला कर दिया है। छपरा विधानसभा सीट ने तो इस पूरे चुनाव को राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया है।

    राजद ने इस सीट से भोजपुरी सिनेमा के स्टार खेसारी लाल यादव को मैदान में उतारकर बड़ा दांव खेला है। उनका मुकाबला एनडीए की छोटी कुमारी से है। वहीं परसा के राजद विधायक छोटेलाल राय जदयू के प्रत्याशी हैं। उनका मुकाबला राजद की डॉ. करिश्मा राय से है।

    छोटेलाल ने ऐन चुनाव के वक्त निष्ठा बदली और राजद ने पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा राय की पोती डॉ. करिश्मा को टिकट देकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि राजनीति हो या परिवार, मिलाप या खटास स्थायी नहीं होता। डॉ. करिश्मा लालू के बड़े पुत्र तेजप्रताप की पत्नी ऐश्वर्या की चचेरी बहन हैं, जिनसे उनका तलाक का मुकदमा चल रहा है।

    मांझी में रणधीर सिंह की राजनीति की अग्निपरीक्षा

    मांझी विधानसभा सीट इस चुनाव में चर्चा का बड़ा केंद्र बना हुआ है। यहां पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के पुत्र रणधीर सिंह, जो कुछ वर्ष पहले राजद के टिकट पर छपरा से उप चुनाव जीत चुके हैं, अब जदयू के प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं। यह वही सीट है, जो पिछली बार भाकपा-माले के कब्जे में थी।

    यह चुनाव रणधीर सिंह की व्यक्तिगत पकड़ और जदयू संगठन की ताकत दोनों की कसौटी माना जा रहा है। वह लगातार गांव-गांव घूमकर यह संदेश देने में जुटे हैं कि विकास और स्थिरता की राजनीति ही सारण का भविष्य तय करेगी। यहां से जन सुराज पार्टी के वाईबी. गिरी व निर्दलीय राणा प्रताप सिंह भी कड़ी टक्कर दे रहे हैं।