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    Saran Sugar Mill: 1904 में बनी मिल 1997-98 से बंद, 578 एकड़ में फिर लग सकती नई यूनिट

    Updated: Wed, 03 Dec 2025 03:05 PM (IST)

    1904 में स्थापित एक मिल जो 1997-98 से बंद है, उसकी 578 एकड़ भूमि पर एक नई इकाई स्थापित होने की संभावना है। इस मिल ने क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में महत्व ...और पढ़ें

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    बिपिन कुमार मिश्रा, मढ़ौरा (सारण)। एक समय मढ़ौरा की पहचान रही ऐतिहासिक चीनी मिल के फिर से शुरू होने की संभावना ने पूरे इलाके में उम्मीद की लौ जगा दी है। करीब 25 वर्ष से अधिक समय से बंद पड़ी यह मिल अब पुनर्जीवन की राह पर लौट सकती है।

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    इस दिशा में हो रही सक्रियता और अधिकारियों द्वारा दिए गए समय-सीमा संबंधी संकेतों के बाद किसानों और मजदूरों के चेहरे पर नई रोशनी दिखने लगी है। लंबे समय से रोजगार और आर्थिक ठहराव झेल रहा यह इलाका अब विकास की ओर लौटने की उम्मीद कर रहा है।

    ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, बंदी और नुकसान का सिलसिला

    मढ़ौरा चीनी मिल की स्थापना वर्ष 1904 में की गई थी। शुरुआती कई दशक तक यह मिल क्षेत्र की आर्थिक धुरी बनी रही। स्थानीय कृषि, विशेषकर गन्ना उत्पादन, इसी मिल के सहारे फला-फूला. लेकिन समय के साथ मशीनों का आधुनिकीकरण रुका, उत्पादन लागत बढ़ी, लाभ घटा और प्रबंधन में कमियों के कारण वर्ष 1997–98 में मिल के संचालन पर विराम लग गया। इसके बाद से क्षेत्र की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे कमजोर पड़ती चली गई।

    गन्ना उत्पादन घटा, किसान हुए मौसमी खेती के सहारे

    मिल के संचालन के दौर में मढ़ौरा, तरैया, अमनौर, मशरक, मकेर, परसा और पानापुर सहित लगभग सात प्रखंडों के करीब पांच हजार किसान करीब 15 हजार एकड़ जमीन पर गन्ना उगाते थे। मिल के बंद होने के बाद उन्हें मजबूरन मौसमी खेती की ओर रुख करना पड़ा।

    किसानों का कहना है कि गन्ना फसल में स्थिर आय मिलती थी, परंतु मिल बंद होने के बाद खेती पूरी तरह अनिश्चित और बाजार पर निर्भर हो गई। इससे उनकी आर्थिक स्थिति पर गहरा असर पड़ा।

    1500 मजदूर बेरोजगार, हजारों परिवार प्रभावित

    मिल बंद होते ही 1500 से अधिक मजदूर प्रत्यक्ष रूप से बेरोजगार हो गए। परिवहन, व्यापार, ढुलाई, मजदूरी और सप्लाई से जुड़े हजारों अन्य लोगों की आमदनी भी प्रभावित हुई। स्थानीय बाजार की रौनक कम हुई, आर्थिक गतिविधियां थम गईं और क्षेत्र विकास से पिछड़ता चला गया।

    मजदूरों का कहना है कि एक यूनिट बंद होने का असर पूरे कस्बे पर पड़ा, जो आज तक पूरी तरह उबर नहीं पाया।

    578 एकड़ भूमि पर नई फैक्ट्री की संभावना

    मिल परिसर का पुराना ढांचा अब लगभग खत्म हो चुका है। मशीनें और भवन सामग्री तक वर्षों में क्षतिग्रस्त और चोरी हो चुकी है। विशेषज्ञों के अनुसार, मिल को चालू करने के लिए नए सिरे से आधुनिक तकनीक पर आधारित फैक्ट्री स्थापित करना ही होगा। इसमें सबसे बड़ी सहूलियत यह है कि परिसर में 578 एकड़ से अधिक भूमि उपलब्ध है, जो नई यूनिट के लिए पर्याप्त मानी जा रही है।

    क्षेत्र में फिर गूंज सकती है विकास की धुन

    पुनर्संचालन की संभावना से किसानों और मजदूरों में उत्साह है। उनका मानना है कि यदि मिल दोबारा आरंभ हुई, तो गन्ना खेती में नई जान आएगी, युवाओं को रोजगार मिलेगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।

    लोगों ने सरकार से शीघ्र कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि मिल चालू होना केवल उद्योग की शुरुआत नहीं, बल्कि मढ़ौरा की खोई पहचान की वापसी होगी। इलाके को अब उस दिन का इंतजार है, जब फिर से मिल की चिमनी धुएं से भर उठेगी और मढ़ौरा में उद्योग की नई सुबह होगी।