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    क्या आप जानते हैं- बिहार के श्याम बहादुर को मिला था पहला अशोक चक्र

    By Kajal KumariEdited By:
    Updated: Fri, 10 Aug 2018 11:11 PM (IST)

    सारण जिले के शहीद जवान श्याम बहादुर सिंह देश के एेसे वीर थे जिन्हें सबसे पहले अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था। जानिए शहीद की कहानी उनके पुत्र की जुबानी

    क्या आप जानते हैं- बिहार के श्याम बहादुर को मिला था पहला अशोक चक्र

    सारण [जेएनएन]। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद सारण के लाल थे, ये तो सभी जानते हैं। परन्तु प्रथम अशोक चक्र विजेता भी सारण के ही थे। यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे। छपरा के सदर प्रखंड के धर्मपुरा गांव के प्रथम अशोक चक्र विजेता श्याम बहादुर सिंह की वीरगाथा के बारे में उनके पुत्र रामप्रवेश सिंह बताते हैं कि जब पिता जी शहीद हुए थे तो उस वक्त मेरी उम्र मात्र दो वर्ष की थी। 

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    नायब सूबेदार श्याम बहादुर सिंह देश के पहले ऐसे वीर थे जिन्हें प्रथम अशोक चक्र विजेता होने का गौरव प्राप्त हुआ था। हैरत की बात यह है कि प्रथम अशोक चक्र विजेता का परिवार गांव में ही उपेक्षित है। 

    सुनाई गौरव गाथा

    रामप्रवेश सिंह बताते हैं कि भारत के विभाजन के बाद 1948 में पाकिस्तान से ट्रेन से लाए जा रहे 12 शरणार्थियों की रक्षा करते हुए पिता जी शहीद हुए थे। मातृभूमि और मानवता की रक्षा में कुर्बानी देने वाले सपूतों को सम्मान देने की योजना बनी तो पिता श्याम बहादुर सिंह का नाम ही सर्वप्रथम अशोक चक्र सम्मान के लिए चयनित किया गया।

    उनकी बहादुरी के कायल देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मेरी मां को अपने हाथ से लिखा पत्र दिया था, जिसमें लिखा था, बहन, देश की सेवा में आपके पति की बलिदान के लिए राष्ट्र कृतज्ञ है और हमारी प्रार्थना है कि आपको धीरज और शांति मिले।

    जनवरी 1948 को हुए थे शहीद : वे बताते हैं कि पिता जी 6 जनवरी 1948 को शहीद हुए थे। जबकि मां जोगमाया देवी का निधन 2003 में हुआ। मां बताती थीं कि पिताजी 1947 में छुट्टी बिताकर जब गए तो उसके बाद उनका शव ही घर पहुंचा। उस वक्त फोन की सुविधा भी नहीं थी। 

    गांव में स्थापित नहीं हो सकी प्रतिमा

    उन्हें मलाल है कि पिता जी की प्रतिमा स्थापित कर गांव में शहीद स्मारक निर्माण करने का सुझाव लोगों द्वारा दिया गया। सबके सहयोग से गांव के बीच स्मारक निर्माण का काम शुरू होने लगा, लेकिन कुछ लोगों ने विरोध किया और प्रशासनिक सहयोग नहीं मिलने से स्मारक निर्माण का काम टल गया। जिस वीर सपूत का नाम दिल्ली के इंडिया गेट पर अंकित हो, उसे गांव में सम्मान न मिले यह कैसी विडंबना है। 

    (जैसा कि डोरीगंज प्रतिनिधि श्रीराम तिवारी को शहीद के पुत्र ने बताया )