किन्नर समाज की बदली तस्वीर... भीख नहीं, मेहनत से आत्मनिर्भरता की नई राह
सारण के मेहिया चौक पर किन्नर समुदाय द्वारा संचालित 'बाबा होटल' चर्चा का विषय है। सोनाली पटेल और उनकी टीम इसे चला रही हैं, जो कभी ट्रेनों और दुकानों पर ...और पढ़ें

मेहिया फोरलेन पर ‘बाबा होटल’ बन रहा आत्मनिर्भरता का प्रतीक
बिपिन कुमार मिश्रा, मढ़ौरा (सारण)। समाज में लंबे समय तक किन्नर समुदाय की पहचान ट्रेनों में वसूली, मांगलिक अवसरों पर बधाई देने या सड़कों पर भीख मांगने तक सीमित रही है। लेकिन अब यह तस्वीर धीरे-धीरे बदल रही है। किन्नर समाज भी सम्मानजनक रोज़गार अपनाकर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। पुलिस सेवा सहित कई क्षेत्रों में उनकी भागीदारी बढ़ रही है। इसी सकारात्मक बदलाव की एक प्रेरणादायक मिसाल छपरा के मेहिया चौक पर देखने को मिल रही है, जहां किन्नर समाज द्वारा संचालित 'बाबा होटल' लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
मेहिया फोरलेन मार्ग पर शुरू किया गया बाबा होटल न सिर्फ राहगीरों की भूख मिटा रहा है, बल्कि समाज की सोच को भी नई दिशा दे रहा है। इस होटल का संचालन सोनाली पटेल कर रही हैं।
उनके साथ रिया, खुशी, प्रियंका और काजल कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। होटल में 24 घंटे शुद्ध और सादा भोजन, चाय व नाश्ता उपलब्ध कराया जाता है। सभी सदस्य दो शिफ्ट में काम करते हुए पूरी मेहनत और अनुशासन के साथ व्यवसाय को आगे बढ़ा रही हैं।
होटल संचालिका सोनाली पटेल और उनकी सहयोगी रिया बताती हैं कि वे वर्षों तक पारंपरिक तरीकों से जीवन यापन करती रहीं। कभी ट्रकों से दस–बीस रुपये मांगना पड़ता था, तो कभी ट्रेनों और दुकानों पर हाथ फैलाना मजबूरी बन गई थी।
पैसे तो मिल जाते थे, लेकिन आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती थी। कई बार लोग ताने देते हुए पूछते थे कि जवान होकर भीख क्यों मांगती हो, कोई काम क्यों नहीं करतीं। यही सवाल धीरे-धीरे उनके भीतर बदलाव की चिंगारी बन गया।
इसके बाद किन्नर साथियों के बीच स्वरोजगार को लेकर चर्चा हुई। सभी ने तय किया कि अब सम्मान के साथ जीने के लिए रास्ता बदलना होगा। पारंपरिक वेशभूषा में रहते हुए ही एक ईमानदार और मेहनत वाला व्यवसाय शुरू करने का फैसला लिया गया।
ट्रकों और यात्रियों की अधिक आवाजाही को देखते हुए मेहिया फोरलेन मार्ग को चुना गया और करीब एक माह पहले बाबा होटल की शुरुआत हुई। सीमित संसाधनों से शुरू हुआ यह प्रयास अब उनकी आजीविका का मजबूत आधार बनता जा रहा है।
स्थानीय लोगों और राहगीरों का कहना है कि किन्नर समाज की यह पहल पूरे समाज के लिए प्रेरणादायक है।
बाबा होटल सिर्फ एक भोजनालय नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, स्वावलंबन और बदली हुई सामाजिक सोच का प्रतीक बन गया है। यह पहल बताती है कि अगर अवसर और सहयोग मिले, तो किन्नर समाज भी सम्मान के साथ समाज की मुख्यधारा में अपनी मजबूत पहचान बना सकता है।

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