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    सरकारी लापरवाही ने छीनी नवजात की सांस... छपरा सदर अस्पताल में 'बेड' की कमी से मौत

    छपरा में बच्चे का जन्म सातवें महीने में हुआ था और उसे बेहतर इलाज के लिए मांझी पीएचसी से सदर अस्पताल रेफर किया गया था। लेकिन जब परिजन बच्चे को लेकर एनआईसीयू वार्ड पहुंचे तो डॉक्टरों ने बेड खाली नहीं होने का हवाला देकर भर्ती करने से इनकार कर दिया।

    By Zakir Ali Edited By: Radha Krishna Updated: Sat, 23 Aug 2025 05:11 PM (IST)
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    सदर अस्पताल में बेड न मिलने से मासूम की मौत

    जागरण संवाददाता, छपरा। छपरा सदर अस्पताल में एक मासूम बच्चे की मौत के बाद परिजनों ने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही का आरोप लगाया है। बच्चे का जन्म सातवें महीने में हुआ था और उसे बेहतर इलाज के लिए मांझी पीएचसी से सदर अस्पताल रेफर किया गया था। लेकिन जब परिजन बच्चे को लेकर एनआईसीयू वार्ड पहुंचे, तो डॉक्टरों ने बेड खाली नहीं होने का हवाला देकर भर्ती करने से इनकार कर दिया।

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    निजी क्लिनिक में इलाज हुआ, लेकिन खर्च बहुत ज्यादा था

    परिजनों ने मजबूरन बच्चे का इलाज निजी क्लिनिक में कराया, लेकिन खर्च इतना ज्यादा था कि गरीब परिवार का हाथ थक गया। जब जेब खाली होने लगी, तो वे फिर सदर अस्पताल पहुंचे, लेकिन वहां भी वही जवाब मिला कि बेड नहीं है। आखिरकार थक-हारकर परिवार वाले बच्चे को घर ले आये, जहां शनिवार को उसकी मौत हो गई।

    शनिवार को अचानक हालत बिगड़ने पर उसे फिर से सदर अस्पताल ले जाया गया। लेकिन इस बार अस्पताल की चौखट पर पहुंचने से पहले ही मासूम जिंदगी की डोर टूट चुकी थी। डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। बेटे की मौत के बाद मां सिंपल का रो-रोकर बुरा हाल है। पिता अंशु और नानी पुष्पा सदमे में हैं। स्वजनों की आंखों से बहते आंसू बता रहे थे कि गरीबों के लिए सरकारी अस्पताल के दरवाजे कितने बंद हैं।

    सरकारी अस्पताल की स्थिति

    छपरा सदर अस्पताल की स्थिति बहुत खराब है। एनआईसीयू वार्ड में मात्र 14 बेड हैं, जबकि दैनिक भर्ती मरीजों की संख्या 20 से अधिक है। संसाधनों की कमी और स्टाफ की कमी के कारण मरीजों को उचित इलाज नहीं मिल पाता है। विशेषज्ञ डॉक्टर और प्रशिक्षित नर्सों की संख्या आधी से भी कम है।

    समस्या क्यों गहराती है?

    जिले के अधिकांश पीएचसी से गंभीर मरीज सीधे सदर अस्पताल रेफर किए जाते हैं, जिससे मरीजों की संख्या क्षमता से दोगुनी हो जाती है। इसके अलावा, पर्याप्त वेंटिलेटर, इनक्यूबेटर और ऑक्सीजन बेड नहीं हैं। सरकारी दावे और वास्तविकता में बड़ा अंतर है।

    सदर अस्पताल की स्थिति

    • कुल बेड क्षमता (एनआईसीयू वार्ड) : मात्र 10
    • दैनिक भर्ती मरीज : 20 से अधिक रेफर
    • कई बार लौटाए जाते हैं मरीज : संसाधनों की कमी का हवाला देकर
    • स्टाफ की कमी : विशेषज्ञ डाक्टर और प्रशिक्षित नर्सों की संख्या आधी से भी कम

        समस्या

    • जिले के अधिकांश पीएचसी से गम्भीर मरीज सीधे सदर अस्पताल रेफर
    • मरीजों की संख्या क्षमता से दोगुनी
    • पर्याप्त वेंटिलेटर, इनक्यूबेटर और आक्सीजन बेड नहीं
    • सरकारी दावे और वास्तविकता में बड़ा अंतर

    अस्पताल प्रबंधक का बयान

    मामले की जानकारी मिली है और जांच कराई जाएगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब बच्चा जिंदा था, तब क्यों भर्ती से इनकार किया गया? क्यों हर बार बेड खाली नहीं है कहकर लौटाया गया? यह वाकई जांच का विषय है।

    राजेश्वर प्रसाद, अस्पताल प्रबंधक

    पीड़ित परिवार के आरोपों की जांच होगी

    एनआईसीयू में फिलहाल 14 बेड उपलब्ध हैं, जिनके सहारे बीमार शिशुओं को भर्ती कर इलाज किया जाता है। उन्होंने कहा कि नए भवन का निर्माण होने के बाद बेड की संख्या भी बढ़ेगी, जिससे ऐसी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।साथ ही कहा कि अगर पीड़ित परिवार आवेदन देता है, तो आरोपों की जांच की जाएगी। उन्होंने कहा कि सदर अस्पताल प्रशासन की पूरी कोशिश होती है कि उपलब्ध संसाधनों के सहारे इलाज के लिए आने वाले सभी मरीजों को उच्च कोटि का इलाज, जांच और दवा मुहैया कराया जाए।

    डॉ. आर एन तिवारी, छपरा सदर अस्पताल के डीएस