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    लालू के गढ़ छपरा में कमल की चुनौती: गठबंधन की रणनीति क्या होगी?

    Updated: Thu, 09 Oct 2025 12:57 PM (IST)

    छपरा, जो कभी लालू प्रसाद यादव का गढ़ था, अब भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता के कारण गठबंधन के लिए एक अग्निपरीक्षा बन गया है। भाजपा ने यहाँ अपनी पैठ मजबूत कर ली है, जिससे राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं। आगामी चुनावों में गठबंधन की सफलता भाजपा की चुनौती का सामना करने की क्षमता पर निर्भर करेगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुकाबला कड़ा होगा।

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    कांग्रेस-राजद के परंपरागत किले में भाजपा ने लगाई सेंध

    अमृतेश, छपरा(सारण)। सारण जिले की छपरा विधानसभा सीट 1957 से ही कांग्रेस और बाद में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रभाव में रही है। पहली बार यह सीट 1957 में कांग्रेस के प्रत्याशी प्रभुनाथ सिंह ने जीतकर अपने नाम की थी। इसके बाद लंबे समय तक कांग्रेस ने इस क्षेत्र में राजनैतिक दबदबा बनाए रखा। तब से लेकर कई दशकों तक छपरा कांग्रेस और उसके बाद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का परंपरागत गढ़ बना रहा।

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    इस क्षेत्र में लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक पकड़ और समर्थक नेताओं का प्रभाव लंबे समय तक अडिग रहा। हालांकि, बीते दशक में भाजपा के उभार ने इस परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया। 2005 में एनडीए गठबंधन से जदयू प्रत्याशी राम प्रवेश राय ने राजद प्रत्याशी को हराकर यह सीट जीत ली और गठबंधन के दशकों पुराने किले में सेंध लगा दी। इसके बाद 2010 में भाजपा के जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने जीत दर्ज की। वर्ष 2015 से भाजपा के डा.सीएन गुप्ता विधायक है।

     

     

     

     

    अब सवाल यही है-क्या महागठबंधन (राजद-कांग्रेस) अपनी खोई हुई परंपरागत सीट को फिर से हासिल कर पाएगा या भाजपा इस गढ़ को स्थायी बना लेगी। आगामी विधानसभा चुनाव में छपरा एक बार फिर सियासत का फोकस प्वाइंट बनने जा रहा है, जहां जंग केवल उम्मीदवारों की नहीं, बल्कि विरासत बनाम विकास के एजेंडे की होगी।

     

     




    प्रभुनाथ सिंह ने रखी कांग्रेस के दबदबे की नींव

    छपरा विधानसभा का गठन स्वतंत्रता के बाद हुए पहले आम चुनाव के बाद हुआ। 1957 में कांग्रेस प्रत्याशी प्रभुनाथ सिंह ने पहली बार जीत हासिल की और कांग्रेस के लिए इस क्षेत्र में एक सशक्त आधार तैयार किया। 60 और 70 के दशक तक कांग्रेस ने इस सीट पर अपना एकछत्र वर्चस्व बनाए रखा। उस दौर में यहां से सुन्दरी देवी और जनक यादव जैसे नेताओं ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की।

     





    जनता पार्टी व फिर लालू युग का आगाज़

    1977 के चुनाव में जनता पार्टी की लहर ने कांग्रेस को मात दी और मिथिलेश कुमार सिंह ने जीत हासिल कर नई राजनीतिक हवा का रुख बदल दिया। 1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव के उदय के साथ छपरा एक बार फिर राजनीतिक केंद्र में आया। उदित राय ने इस क्षेत्र में राजद के समर्थन से तीन बार जीत दर्ज की और छपरा को ‘लालू का गढ़’ कहा जाने लगा। राजद के प्रभुत्व का दौर लगभग दो दशक तक कायम रहा।


    भाजपा की सेंध व बदलता समीकरण

    2010 में भाजपा के जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने छपरा सीट जीतकर लंबे समय बाद एक नया राजनीतिक अध्याय लिखा। इसके बाद 2020 में डा. सीएन गुप्ता की जीत ने भाजपा की जड़ें और गहरी कर दीं। भाजपा को शहरी मतदाताओं और सवर्ण वर्ग का बड़ा समर्थन मिला, वहीं राजद अब भी यादव-मुस्लिम समीकरण पर भरोसा कर रहा है।दोनों खेमों ने संगठनात्मक स्तर पर कमर कस ली है।

     

    महिला प्रतिनिधित्व व नई रणनीति

    छपरा से सुंदरी देवी के बाद से अब तक कोई महिला विधायक नहीं बनी है, हालांकि इस सीट से चुनाव लड़कर महिला राजनीति की दस्तक दी थी। इस बात के चुनाव में एनडीए महागठबंधन दोनों में महिला प्रत्याशी टिकट की प्रवल दावेदार है।


    जातीय संतुलन बनेगा निर्णायक


    छपरा की राजनीति में वैश्य यादव, राजपूत, मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। राजद का वोट बैंक पारंपरिक रूप से यादव-मुस्लिम पर केंद्रित है, जबकि भाजपा को सवर्ण और शहरी मतदाताओं का बड़ा समर्थन प्राप्त है। इस बार गठबंधन अपनी एकजुट ताकत से भाजपा को कड़ी टक्कर देने की तैयारी में है।



    नज़रें चुनावी तालमेल पर


    छपरा विधानसभा सीट का इतिहास और पिछले चुनावों के आंकड़े दर्शाते हैं कि यहां का मतदाता परंपरागत पार्टी के साथ-साथ उम्मीदवार के व्यक्तिगत प्रभाव को भी महत्व देता है। कांग्रेस-राजद गठबंधन और भाजपा के बीच इस बार होने वाली टक्कर क्षेत्रीय राजनीति के लिए नए मानक स्थापित कर सकती है। छपरा विधानसभा सीट की लड़ाई केवल सीट जीतने तक सीमित नहीं है। यह चुनाव क्षेत्र की राजनीतिक दिशा, विकास की प्राथमिकताएं और मतदाताओं के रुझानों का भी आईना है। यह देखना रोचक होगा कि क्या कांग्रेस-राजद गठबंधन अपने परंपरागत गढ़ को भाजपा से वापस ले पाता है या भाजपा अपनी पकड़ मजबूत करती है।अब देखना यह है कि छपरा का मतदाता इतिहास को दोहराएगा या नया अध्याय लिखेगा।

     


    छपरा विधानसभा के अब तक के विजेता (1957–2020)

     

    • वर्ष-विजेता- विधायक- पार्टी
    • 1957-प्रभुनाथ सिंह-कांग्रेस
    • 1962-सुन्दरी देवी-कांग्रेस
    • 1967-यूपीएन सिंह-जनसंघ
    • 1969-जनक यादव-प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
    • 1972-जनक यादव-कांग्रेस
    • 1977-मिथिलेश कुमार सिंह-जनता पार्टी
    • 1980-जनक यादव-जनता पार्टी (सेक्युलर)
    • 1985-जनक यादव-निर्दलीय
    • 1990-उदित राय-निर्दलीय
    • 1995-उदित राय-जनता दल
    • 2000-उदित राय-राजद
    • 2005(फरवरी)-राम प्रवेश राय-जदयू
    • 2005(अक्टूबर)-राम प्रवेश राय-जदयू
    • 2010-जनार्दन सिंह सिग्रीवाल-भाजपा
    • 2014 (उपचुनाव)-रंधीर कुमार सिंह-राजद
    • 2015-डा.सीएन गुप्ता-भाजपा
    • 2020-डा. सीएन गुप्ता-भाजपा