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    Chaiti Chhath Puja: व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य देव को दिया अर्घ्य, घाटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

    Updated: Thu, 03 Apr 2025 03:40 PM (IST)

    चैती छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान का आज तीसरा दिन है। आज व्रतियों ने अस्ताचलगामी भगवान सूर्य देव को नदी घाटों पर अर्घ्य किया। शुक्रवार की सुबह व्रती उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगे। इसके साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास खत्म हो जाएगा। साल में छह महीने के अंतराल पर कार्तिक व चैत्र मास में छठ पर्व मनाया जाता है।

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    व्रतियों ने डूबते सूर्य देव को दिया अर्घ्य

    जागरण संवाददाता, छपरा। चैती छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल षष्ठी यानी गुरुवार की संध्या पहर में अस्ताचलगामी भगवान भास्कर की पूजा संपन्न हो गई। व्रती महिला-पुरुष ने स्नान कर पीला व लाल वस्त्र धारण कर पूरी पवित्रता के साथ हाथों में बांस के सूप में ऋतुफल ठेकुआ, ईख, नारियल, केला रखकर डूबते हुए सूर्य को नदी घाटों पर अर्घ्य किया।

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    व्रतियों ने दिया भगवान सूर्य देव को अर्घ्य

    ग्रामीण अंचलों में कुछ जगहों पर पोखर और तालाब में जाकर व्रतियों ने भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया। व्रती व उनके स्वजन अस्ताचलगामी सूर्य की पूजा-अर्चना करने के बाद आंगन एवं छत पर मिट्टी की कोशी की छठी के रूप में पूजा की।

    अब शुक्रवार की सुबह व्रती उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगे। इसके साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास खत्म हो जाएगा और वे पारण करेंगे।

    6 महीने के अंतराल में मनाया जाता है छठ का त्योहार

    साल में छह महीने के अंतराल पर कार्तिक व चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर होने वाले छठ पर्व का सामाजिक व धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व है।

    भविष्य पुराण के अनुसार छठ पर्व लौकिक व परलौकिक दोनों ही जीवन को सुख देने वाला है। कहते हैं कि इस पर्व से मृत्यु के बाद भी सूर्य लोक में स्थान प्राप्त होता है और वहां जीवात्मा को सुख की प्राप्ति होती है।

    कृषि से जुड़ा है लोक आस्था का महापर्व छठ

    लोक आस्था का पर्व छठ कृषि से जुड़ा है। कार्तिक व चैत्र मास में यह पर्व तब मनाया जाता है जब नई फसलें कट कर किसानों के घर आ जाती है। अनाज से घर भरने को किसान सूर्य देव की कृपा मानते हैं। अन्न-धन से जब घर भर जाता हैं तो किसान परिवार सूर्य भगवान व उनकी बहन छठी मैया का आभार प्रकट करने को छठ पर्व मनाते हैं।

    छठी मैया ब्रह्मा की मानस पुत्री और षष्ठी तिथि की स्वामिनी हैं। भगवान सूर्य की बहन होने के नाते षष्ठी तिथि को छठी मैया के साथ सूर्य देव की भी पूजा-अर्चना की जाती है।

    मर्यादा पुरुषोत्मम श्रीराम व पांडवों ने भी किया था षष्ठी व्रत

    ऐसी मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भी छठ का व्रत रखा करते थे। सूर्य देव उनके कुल देवता थे। श्रीराम शुक्ल षष्ठी तिथि को माता सीता के साथ अस्त होते और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर यह व्रत किया करते थे। वहीं पांडवों ने भी इंद्रप्रस्थ में द्रौपदी के साथ भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर षष्ठी व्रत किया था।

    सतयुग में ही आरंभ हो चुका था छठ पर्व

    पंडित अनित शुक्ल ने बताया कि ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार छठ पर्व का आरंभ सतयुग में हो चुका था। उस समय पृथ्वी पर स्वयंभू मनु के पुत्र प्रियव्रत का राज था। लंबे इंतजार के बाद उनके घर संतान का जन्म हुआ, लेकिन देवयोग से वह संतान मृत पैदा हुआ था।

    प्रियव्रत दुखी मन से उस संतान का अंतिम संस्कार करने जा रहे थे। तभी दिव्य आभा के साथ षष्ठी देवी का प्रकाट्य हुआ। उन्होंने प्रियव्रत के संतान को नवजीवन प्रदान किया और साथ ही छठ व्रत करने को कहा। फिर राजा ने अपनी प्रजा के साथ सूर्य षष्ठी व्रत को किया।

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