Saran News: तरैया में 107 साल बाद भी नहीं बदली स्कूल की हालत, टिन के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं बच्चे
बिहार के सारण जिले में शिक्षा व्यवस्था की हालत चिंताजनक है। शीतलपुर में 107 साल पुराना प्राथमिक विद्यालय जर्जर हालत में है जहाँ बच्चे असुरक्षित माहौल में पढ़ने को मजबूर हैं। कक्षाओं की कमी और बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। वहीं बनियापुर के कई स्कूलों में चारदीवारी न होने से बच्चों की सुरक्षा खतरे में है।

राणा प्रताप सिंह, तरैया (सारण)। शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के वर्षों बाद भी बिहार में कई ऐसे स्कूल हैं जहाँ शिक्षा का नहीं, बल्कि भय का माहौल है। इसका एक उदाहरण शीतलपुर बाजार परिसर स्थित प्राथमिक विद्यालय शीतलपुर है, जिसकी स्थापना 107 वर्ष पूर्व हुई थी, लेकिन आज भी इसका भौतिक स्वरूप जीर्ण-शीर्ण और खतरनाक बना हुआ है।
यह विद्यालय आज भी निजी भूमि पर संचालित हो रहा है और शिक्षा विभाग ने भूमि अधिग्रहण की दिशा में अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। विद्यालय में केवल तीन कमरे हैं। एक में प्रधानाध्यापक बैठते हैं, दूसरे में मध्याह्न भोजन बनता है और तीसरे में कक्षा 1 से 5 तक के कुल 149 बच्चे एक साथ पढ़ते हैं। इसका शिक्षा की गुणवत्ता पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। इस विद्यालय की हालत देखकर ऐसा लगता है कि शिक्षा का अधिकार केवल कागजों तक ही सीमित है।
इन लकड़ियों पर पुराने पंखे लटके हुए हैं, जो कभी भी गिर सकते हैं। स्कूल की छत, दीवारें, खिड़कियाँ और शौचालय सभी क्षतिग्रस्त हैं। चारों तरफ खुले और बिखरे बिजली के तार फैले हुए हैं, जिससे बच्चों के साथ-साथ शिक्षक भी हमेशा डरे रहते हैं। स्कूल परिसर में चारदीवारी नहीं है, जिससे बच्चे असुरक्षित रहते हैं। बाहरी दीवारों में गहरी दरारें हैं, जो कभी भी गिर सकती हैं। बरसात के दिनों में स्कूल का फर्श कीचड़ में बदल जाता है, जिससे बच्चों को बैठकर पढ़ाई करने में काफी परेशानी होती है। शौचालय की हालत इतनी दयनीय है कि छात्र उसका इस्तेमाल भी नहीं कर पाते।
प्रशासनिक उदासीनता पर उठे सवाल
स्थानीय अभिभावकों, शिक्षकों और समाजसेवियों का कहना है कि वर्षों से स्कूल की हालत सुधारने की मांग की जा रही है, लेकिन शिक्षा विभाग, प्रखंड कार्यालय और जनप्रतिनिधियों ने अब तक कोई ठोस पहल नहीं की है। एक सदी से भी ज़्यादा समय से अस्तित्व में होने के बाद भी अगर कोई स्कूल न्यूनतम सुरक्षा और बुनियादी सुविधाओं से वंचित है, तो यह न सिर्फ़ प्रशासनिक लापरवाही है, बल्कि शिक्षा के प्रति हमारी सामूहिक असंवेदनशीलता का प्रतीक है।
स्थानीय लोगों की मांग है कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया तुरंत पूरी की जाए, नए भवन को मंजूरी दी जाए और स्कूल को ऐसा स्वरूप दिया जाए जिससे बच्चों को सुरक्षित, सम्मानजनक और प्रेरणादायक वातावरण मिल सके।
चारदीवारी न होने से प्रखंड के तीन स्कूलों के लिए खतरे की घंटी
राजू सिंह, जागरण बनियापुर (सारण): बनियापुर प्रखंड के तीन स्कूलों में चारदीवारी न होने से खतरे की घंटी बज रही है। इनमें प्राथमिक विद्यालय कन्हौली संग्राम, सरैया हल्दी टोला और दाढ़ी बाड़ी शामिल हैं। इनमें सबसे ज़्यादा असुरक्षित एनएच 331 के किनारे स्थित प्राथमिक विद्यालय कन्हौली संग्राम है। यहाँ बारिश होते ही स्कूल का प्रांगण पानी से भर जाता है।
जानकारी के अनुसार, प्रखंड क्षेत्र में सड़क किनारे स्थित इन तीनों स्कूलों में चारदीवारी का अभाव है। हल्दी टोला स्कूल की चारदीवारी पहले ही गिर चुकी है। इस स्कूल के बच्चे इसमें खेलते हुए सड़क पर जाते हैं। इस व्यस्त मार्ग पर आए दिन दुर्घटनाएँ होती रहती हैं और इसका मुख्य कारण सड़क किनारे बाउंड्रीवॉल या सुरक्षा रेलिंग का न होना है। जिस तरह से वाहनों की संख्या बढ़ रही है, उससे पैदल चलने वाले बच्चों की सुरक्षा खतरे में पड़ रही है।
एनएच 331 के किनारे बसे गाँवों, स्कूलों और बाज़ारों में हमेशा चहल-पहल रहती है। लेकिन तेज़ रफ़्तार वाहनों की आवाजाही और सड़क किनारे किसी भी तरह के सुरक्षा इंतजाम न होने के कारण कई जानलेवा दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं। सड़क से सटे खेत, मकान और दुकानें होने के कारण यह इलाका बेहद संवेदनशील हो गया है।
यहाँ न तो कोई फुटपाथ है और न ही कोई बैरियर, जिससे स्कूल के छात्र खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें। ग्रामीणों ने माँग की है कि सुरक्षा की दृष्टि से सड़क किनारे स्कूल की बाउंड्रीवॉल या मज़बूत रेलिंग बनाई जाए, ताकि अनियंत्रित वाहन सीधे दुकानों में न घुस सकें। या फिर स्कूली बच्चे सीधे सड़क किनारे न जा सकें। छोटे बच्चे स्कूल जाते समय तेज़ रफ़्तार ट्रक या बस की चपेट में आने से बाल-बाल बचे हैं।
कन्हौली संग्राम में चारदीवारी की राशि लौटा दी गई
बताया जाता है कि कुछ वर्ष पूर्व इस विद्यालय में चारदीवारी के लिए राशि मिली थी, लेकिन विद्यालय में भूमि विवाद के कारण चारदीवारी का निर्माण नहीं हो सका। इसी कारण पूर्व प्रधानाध्यापक द्वारा चारदीवारी की राशि लौटा दी गई। उसके बाद से आज तक चारदीवारी निर्माण की दिशा में कोई सार्थक पहल नहीं हो सकी। यही स्थिति यह है कि विद्यालय के दो कमरे जर्जर होने के कारण नवनिर्मित दो कमरों में पहली से पांचवीं तक की कक्षाएं संचालित होती हैं। उसमें भी कक्षा तीन तक के छात्र एक ही कमरे में पढ़ने को मजबूर हैं।
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