उदयन डीह को नहीं मिल सका पर्यटन स्थल का दर्जा
समस्तीपुर। रोसड़ा विश्व में नास्तिकता के विरुद्ध ईश्वर को सिद्ध करने वाले महान दार्शनिक उदयनाचार्य की जन्मस्थली करियन गांव में है।
समस्तीपुर। रोसड़ा, विश्व में नास्तिकता के विरुद्ध ईश्वर को सिद्ध करने वाले महान दार्शनिक उदयनाचार्य की जन्मस्थली करियन गांव में है। महान दार्शनिक आचार्य उदयन द्वारा लिखित ग्रंथों पर लगातार शोध हो रहा है। नव्य न्याय के प्रणेता महर्षि उदयानाचार्य की जन्मस्थली को पर्यटक स्थल बनाने की मांग लंबे अरसे से की जा रही है। कई बार सरकार के मंत्रियों एवं अन्य नेताओं ने मंच से इस स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने की दिशा में कदम बढ़ाने का आश्वासन दिया। हर चुनाव में यह मुद्दा जोर-शोर से उठते रहा है। इस बार भी स्थानीय लोगों द्वारा इसे मुद्दा बनाया गया है। वोट मांगने के लिए आने वाले हर प्रत्याशी के समक्ष इसे उठाया जा रहा है। ठोस आश्वासन देने वाले प्रत्याशियों को ही वोट करने की बात कही जा रही है। प्रस्तुत है संवाददाता शंभूनाथ चौधरी की रपट।
--- विश्वभर में प्रसिद्ध दार्शनिक उदयनाचार्य का जन्म करियन में हुआ था। लेकिन, आज भी करियन गांव को वो सम्मान नहीं मिल सका जिसका वो हकदार है। दूसरी जगहों पर उनके नाम पर वाचनालय, पुस्तकालय और विद्यालय की स्थापना हो रही है। लेकिन अपने ही घर में उस महापुरुष की उपेक्षा माननीयों एवं सरकार की इच्छा शक्ति पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। लगातार मांग के बावजूद आज तक समस्तीपुर जिला के शिवाजीनगर प्रखंड के करियन में स्थित उदयन डीह को पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं मिल सका है। यहां की मिट्टी में भी विद्या और ज्ञान का अपार मिश्रण है। इसका प्रमाण है कि क्षेत्र के गरीब से अमीर तक सभी वर्गों के बच्चे इस पावन स्थल की माटी से ही अक्षर आरंभ करते हैं। देश के कई मनीषियों एवं विद्वान अब तक महर्षि की इस माटी का तिलक लगाने करियन गांव पहुंच चुके हैं। कई दशकों से क्षेत्रवासियों द्वारा इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग की जा रही है। माननीयों ने वादे भी किए। आश्वासन भी दिए। लेकिन आज तक वह आश्वासन और वादे पूरे नहीं हुए। भूगर्भ विशेषज्ञों ने कई बार किया है इस क्षेत्र का दौरा
कई बार भूगर्भ विशेषज्ञों द्वारा करियन डीह पहुंचकर अवशेषों तक को इकट्ठा किया गया। 9 वीं सदी के कुछ अवशेष आज भी पीपल पेड़ के नीचे पड़े हैं। लेकिन सरकार की कला संस्कृति विभाग उसके संरक्षण एवं विकास की ओर कदम उठाना मुनासिब नहीं समझती। पिछले वर्ष आयोजित उदयनाचार्य पर्व समारोह में पहुंचे विभागीय मंत्री ने पर्यटन स्थल का दर्जा देने का आश्वासन देते हुए जल्द ही सर्वेक्षण का कार्य प्रारंभ कराने की घोषणा की थी। लेकिन उसके भी एक वर्ष गुजर गए परंतु आज तक संरक्षण का आदेश तक नहीं हो पाया। नव्य न्याय के संस्थापक महर्षि उदयनाचार्य के प्रति सरकार की ऐसी उपेक्षा पर आक्रोश जताते हुए क्षेत्रवासियों ने इस चुनाव में पुन: एक बार इसे चुनावी मुद्दा में शामिल किया है। वोट मांगने के लिए आने वाले सभी प्रत्याशियों के समक्ष इस मुद्दे को को जोर-शोर से उठाया जा रहा है। महापुरुषों की अनदेखी उचित नहीं
सेवानिवृत्त शिक्षक गंगेश पाठक कहते हैं कि जिनका दर्शन और रचनाएं ज्ञान के क्षेत्र में भारत को विश्व पटल पर स्थापित किया हो, वैसे महर्षि की जन्मभूमि को विकास की किरणों से दूर रखना, सरकार की महापुरुषों के प्रति अनदेखी को दर्शाता है। लगातार क्षेत्रवासियों द्वारा इस जगह को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग जारी है। इस लोकसभा चुनाव में क्षेत्र का यह सबसे अहम मुद्दा है। करियन गांव के राम प्रकाश यादव कहते हैं कि महापुरुष के इस डीह को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए लगातार मांग जारी है। शासन-प्रशासन की उदासीनता
जनप्रतिनिधियों से लेकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक से पत्राचार किया जा चुका है। कई बार ग्रामीणों का शिष्टमंडल भी विभागीय मंत्री से मिलकर आग्रह कर चुका है। लेकिन आज तक इस ओर किसी ने ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा। रंजीत राम कहते हैं कि हर चुनाव में और सभा में प्रत्याशियों के साथ-साथ मंत्री और नेताओं द्वारा अब तक कई बार करियन डीह को विकसित करने का आश्वासन दिया जा चुका है। लेकिन आज तक इस ओर कदम नहीं उठाया जाना सरकार की मानसिकता और क्षमता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है। इस चुनाव में भी यह मुद्दा जोर शोर से उभरने लगा है। रुपण पासवान कहते हैं कि महर्षि के डीह पर कई बार भू-गर्भ विशेषज्ञ भी देखे गए। मूर्तियां और अवशेष देखकर उन्होंने यहां खुदाई की आवश्यकता जतायी, लेकिन वर्षो बीतने के बावजूद आज तक खुदाई का काम भी प्रारंभ नहीं हो सका। इसके लिए संबंधित विभाग को दोषी मानते हुए क्षेत्रवासी इस चुनाव में इसे एक महत्वपूर्ण मुद्दा के रूप में रखा है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।