'उदयन पर्व' को में सम्मिलित होंगे इतिहासकार व जनप्रतिनिधि
विश्व विख्यात महान दार्शनिक उदयनाचार्य की जन्मस्थली करियन गांव में आगामी 23 एवं 24 मई को उदयन सेवा संस्थान के तत्वाधान में 'उदयन पर्व' का समारोहपूर्वक आयोजन किया जाएगा।
समस्तीपुर। विश्व विख्यात महान दार्शनिक उदयनाचार्य की जन्मस्थली करियन गांव में आगामी 23 एवं 24 मई को उदयन सेवा संस्थान के तत्वाधान में 'उदयन पर्व' का समारोहपूर्वक आयोजन किया जाएगा। उक्त जानकारी आयोजन समिति के सचिव मोहनानंद पाठक ने दी। कहा कि कार्यक्रम में सूबे के पर्यटन मंत्री के अलावे कई अन्य मंत्री एवं जनप्रतिनिधियों ने भी शिरकत करने पर सहमति जतायी है। इस मौके पर विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ, कवि सम्मेलन के अलावे विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम भी आयोजित होंगे। इस आयोजन में दर्जनों विद्वान, प्रसिद्ध कवि एवं इतिहासकार द्वारा उदयनाचार्य के व्यक्तित्व एवं कृतित्व, मिथिला की गौरव गाथा पर परिचर्चा में भाग लेंगे। दो दिवसीय इस कार्यक्रम की रात्रि बेला में सांस्कृतिक कार्यक्रम, बच्चों एवं छात्र-छात्राओं के लिए प्रतियोगिता आदि का भी आयोजन किया जाना है। आयोजन समिति के अध्यक्ष मिथिलेश झा, उपाध्यक्ष नवीन कुमार चौधरी, कोषाध्यक्ष विपिन कमार झा आदि ने संयुक्त रूप से कहा कि कार्यक्रम में उत्कृष्ट प्रदर्शन करनेवाले छात्र-छात्राओं को उदयन सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित किया जाएगा। आयोजन समिति द्वारा कार्यक्रम की सफलता को लेकर योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है।
दसवीं और ग्यारहवीं सदी में अवतरित हुए थे उदयनाचार्य
उदयनाचार्य मिथिला के निवासी थे। उनका जन्म वर्तमान समस्तीपुर (बिहार) के करियन ग्राम में हुआ था। उदयनाचार्य की जीवनी के बारे में भविष्य पुराण में जो जानकारी मिलती है, उसके अनुसार एक बौद्ध पंडित मिथिला में आए तथा उन्होंने राजा को संदेश दिया- “आप वेदशास्त्र पढ़कर भ्रम में फंस गए हो। अब मेरे शास्त्र को पढ़कर बौद्ध मार्ग के अनुयायी बन जाइए। अगर आप के देश में कोई वेदशास्त्र का विद्वान हैं तो उसे मेरे साथ शास्त्र चर्चा करने के लिए भेज दीजिए। राजा ने उदयनाचार्य को कई पंडितों के साथ भेज दिया। बहुत दिनों
तक चर्चा चली, लेकिन जब कोई निर्णय नहीं हो सका। तब बौद्ध पंडित ने उदयनाचार्य को एक और निमंत्रण दिया। एक शिलाखंड को उन्होंने पानी बना दिया और फिर उस पानी को दुबारा से शिलाखंड बनाने की चुनौती उदयनाचार्य को दी। उदयनाचार्य ने चुनौती मान ली तथा पानी से फिर से शिलाखंड भी बना दिया। उसके बाद उदयनाचार्य ने भी एक बात का प्रस्ताव रखा। दो बड़े तालवृक्षों पर चढ़कर दोनों कूद पड़ेंगे, जो ¨जदा रहेगा वह जीतेगा। बौद्ध पंडित ने मान लिया। दोनों पेड़ से कूद पड़े। उदयनाचार्य 'वेद प्रमाण है' ऐसा कहकर कूद पड़े और बौद्ध पंडित 'वेद अप्रमाण है' ऐसा कहकर कूदे। बौद्ध पंडित मर गए और उदयनाचार्य जीवित रहे। राजा ने वेदशास्त्र का प्रामाण्य नतमस्तक होकर स्वीकार कर लिया तथा उदयनाचार्य को अपना राजगुरु बना लिया। उदयनाचार्य के काल के बारे में विद्वानों के जो अनुमान हैं, वे उदयनाचार्य के काल को दसवीं सदी के चरम पाद और ग्याहरवीं सदी के उत्तरार्ध के दरम्यान स्थापित करते हैं।
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