दो जून की रोटी के लिए करते घोंघा व्यवसाय
गरीबी के कारण पढ़ाई से विमुख बच्चे आज भी अपने घर में भोजन उपलब्ध कराने के लिए घोंघा चुनकर इसका व्यवसाय करते हैं।
समस्तीपुर । गरीबी के कारण पढ़ाई से विमुख बच्चे आज भी अपने घर में भोजन उपलब्ध कराने के लिए घोंघा चुनकर इसका व्यवसाय करते हैं। साथ ही इस धंधे में गरीब परिवार के हजारों लोग शामिल हैं। पटोरी तथा इसके आसपास के क्षेत्र की एक बड़ी आबादी आज भी घोंघा चुनकर अपने भोजन का उपाय करने में सुबह से शाम तक व्यस्त रहती है। आम तौर पर बेकार समझे जाने वाले इस घोंघा के व्यवसाय के कारण ही प्रतिदिन हजारों लोगों को दो जून की रोटी उपलब्ध हो पाती है। वैसे उचित बाजार नहीं मिलने के कारण गरीब परिवार के सदस्य इससे अधिक आर्थिक लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। कुछ दशक पूर्व तक घोघा का व्यवसाय आम के आम गुठली के दाम वाली कहावत चरितार्थ करता था, परन्तु अब इस व्यवसाय से जुड़े लोग इससे दूर होते जा रहे हैं। अहले सुबह से ही छोटे बच्चे एवं घर के अन्य सदस्य मछली पकड़ने वाली जाल लेकर पटोरी एवं उसके आसपास के चैर, ढ़ाब, पोखर, गड्ढ़े एवं वाया नदी के समीप पहुंचते हैं। कीचड़ में कपड़े लेकर छोटे बच्चे उतर जाते हैं और पूरे दिन कीचड़ में सने रहते हैं। साथ ही चैर के गड्ढ़े व नदी में जाल फेकने के बाद उसमें मछलियों के साथ-साथ घोंघा भी फंस जाते हैं, जिसके मांस का उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है। घोंघा के खोल को भी लोग बेच देते हैं। जिसका उपयोग विभिन्न रूपों में कर लिया जाता है।
मोलस्का के अंतर्गत आने वाला यह जन्तु स्वच्छ जल तथा लवण जल दोनों ही स्थानों में पाया जाता है। आम तौर पर समुद्री मोलस्का के खोल का उपयोग सजावट, कैल्सियम युक्त दवाईयां बनाने में किया जाता है। पटोरी में सिर्फ स्वच्छ जलीय मोलस्का के रूप में 'घोंघा' को पकड़ा जाता है। इसे दो भागों में तोड़ा जाता है इसके ऊपरी भाग को मुट्ठी और निचले भाग को पेनी कहा जाता है। मुट्ठी से जुड़े घोंघा का मांस बाजार में 70 से 80 रूपये किलो की दर से बिकता है। जबकि पेनी से जुड़ा मांस सस्ते दर पर बिकता है। उपयोग करने वाले लोग बताते हैं कि हड्डी की मजबूती के लिए घोंघा का काफी मांस काफी लाभदायक होता है।
इसका कवच कैल्सियम कार्बोनेट का बना होता है। मांस निकाले जाने के बाद कवच को सस्ते दर पर बेच दिया जाता है। दो दशक पूर्व तक पटोरी में इस कवच से पान एवं तम्बाकू में खाने वाला चूना तैयार किया जाता था परन्तु उसे गलाने के लगने वाले ईंधन में अधिक खर्च होने के कारण यह व्यवसाय भी प्रभावित हो गया। वर्तमान में कवच को खरीदकर लोग बाहर ले जाते हैं जिसका उपयोग कैल्सियम युक्त दवा बनाने वाली कम्पनियों के द्वारा किया जाता है। कई दशक पूर्व पटोरी में सीप के बटन का कारखाना था। लोग बताते हैं कि उन फैक्ट्रियों में घोंघा व सीप से बटन तैयार किया जाता था। प्लास्टिक के बटन का इजाद हो जाने के बाद पटोरी में बटन की ऐसी फैक्ट्रियां बंद हो गई। आने वाले समय में घोंघा के व्यवसाय भी प्रभावित होता नजर आ रहा है।
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