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    घटती जोत में बढ़ेगी किसानों की आमदनी, आलू–मक्का की खेती से कम लागत में ज्यादा मुनाफा

    By Purnendu Kumar Edited By: Ajit kumar
    Updated: Sun, 21 Dec 2025 04:17 PM (IST)

    कृषि विज्ञान केन्द्र बिरौली में प्रसार कार्यकर्ताओं के लिए क्षमता विकास प्रशिक्षण आयोजित किया गया। जिसका उद्देश्य कृषि में विविधीकरण और कम लागत में अध ...और पढ़ें

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    अंतरवर्ती खेती को लाभकारी मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया गया। फाइल फोटो

    संवाद सहयोगी, पूसा (समस्तीपुर)। Farmers Income Growth: बढ़ती जनसंख्या और घटती कृषि जोत के बीच किसानों की आय बढ़ाने को लेकर कृषि विज्ञान केंद्र, बिरौली में एक प्रभावी मॉडल प्रस्तुत किया गया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के अधीन संचालित केंद्र में शनिवार को प्रसार कार्यकर्ताओं के लिए एक दिवसीय क्षमता विकास प्रशिक्षण आयोजित किया गया।

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    इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य कृषि विविधीकरण को बढ़ावा देना और किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा दिलाने की रणनीति से अवगत कराना था। कार्यक्रम में आलू एवं मक्का की अंतरवर्ती खेती को लाभकारी मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिसमें डॉ. रेड्डी फाउंडेशन के प्रसार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

    कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्र के वरीय वैज्ञानिक सह प्रधान डॉ. आर.के. तिवारी ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में अंतरवर्ती खेती समय की सबसे बड़ी जरूरत है। उन्होंने बताया कि आलू और मक्का का संयोजन किसानों के लिए जोखिम कम करने वाला विकल्प है। यदि किसी कारण से एक फसल प्रभावित होती है, तो दूसरी फसल से लागत की भरपाई संभव हो जाती है।

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    वैज्ञानिक डॉ. कौशल किशोर ने मक्का की खेती से जुड़ी तकनीकी जानकारियां साझा कीं। उन्होंने कहा कि मक्का की बुवाई के समय कतारों के बीच संतुलित दूरी रखना जरूरी है, ताकि आलू की फसल को पर्याप्त धूप और जगह मिल सके। साथ ही उन्होंने उन्नत बीज चयन और खरपतवार नियंत्रण के वैज्ञानिक तरीकों पर भी प्रकाश डाला।

    उद्यानिकी विशेषज्ञ डॉ. धीरु कुमार तिवारी ने आलू की खेती के तकनीकी पहलुओं पर चर्चा करते हुए बताया कि मक्का के साथ आलू उगाने से मिट्टी की नमी बनी रहती है। उन्होंने झुलसा रोग से बचाव, संतुलित उर्वरक प्रबंधन और सिंचाई तकनीक पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दोनों फसलें कम पानी में अच्छी पैदावार देती हैं, इसलिए हल्की लेकिन नियमित सिंचाई अधिक प्रभावी रहती है।

    प्रशिक्षण के दौरान प्रसार कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया गया कि वे किसानों को उन्नत किस्मों और वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें, ताकि सीमित भूमि में भी अधिक उत्पादन और बेहतर आय सुनिश्चित की जा सके।