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    रेलवे में काम कर रहे इन कर्मचारियों की चमक जाएगी किस्मत, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विभाग तक पहुंचा लेटर

    Updated: Mon, 26 May 2025 01:39 PM (IST)

    Railway News समस्तीपुर रेल मंडल के चार अर्द्धसरकारी संस्थानों के कर्मचारियों को स्थायीकरण की उम्मीद जगी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवे ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को पत्र लिखा है। न्यायालय ने सक्षम पदाधिकारी को स्वयं निर्णय लेने को कहा है। 1998 में नियुक्त कर्मियों को 2017 में नौकरी से निकाल दिया गया था।

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

    जागरण संवाददाता, समस्तीपुर। समस्तीपुर रेल मंडल के चार अर्द्धसरकारी संस्थानों में कार्यरत कर्मियों को एक बार फिर अपने स्थायीकरण की आस जगी है।

    सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में उमा देवी के मामले में दिये गए महत्वपूर्ण फैसले के आलोक में नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवे ने बोर्ड के चेयरमैन को पत्र लिखकर इस दिशा में कार्रवाई की मांग की है।

    यह भी कहा है कि न्यायालय ने इस आदेश का हवाला देते हुए कोर्ट पर अनावश्यक बोझ से वंचित करते हुए सक्षम पदाधिकारी को स्वयं के स्तर से निर्णय लेने को कहा है।

    बता दें कि समस्तीपुर रेलमंडल मुख्यालय की ओर से 1998 में हस्त शिल्प कला केंद्र के लिए चार कर्मियों की नियुक्ति की गई। 1999 में इस नियुक्ति को लेकर मंडल रेल प्रबंधक की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई।

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    कमेटी के सदस्यों ने पूरी नियुक्ति प्रक्रिया को वैद्य ठहराते हुए इन सभी की स्थायी नियुक्ति की अनुशंसा की गई। लगभग 20 वर्षों के कार्यकाल में करीब 400 माहवारी, रेलवे पास एवं पीटीओ की सुविधा भी उपलब्ध करायी गई।

    वर्ष 2017 में एक बार फिर नियुक्ति को लेकर डीपीओ के नेतृत्व में एक दो सदस्यीय कमेटी गठित की गई। इस कमेटी ने इन कर्मियों की नियुक्ति को ही नियमसंगत नहीं बताया गया।

    हस्त शिल्प कला केंद्र के बंद होने के कारण नौकरी से निकाले गए चार कर्मचारियों में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से एक बार फिर उम्मीद की किरण जागी है।

    गौरतलब है कि वर्ष 1998 में स्थापित समस्तीपुर हस्त कला केंद्र में सात कर्मचारी कार्यरत थे। अब चार कर्मी ही बचे हैं।

    केंद्र के बंद होने और कर्मचारियों को नौकरी से हटाए जाने के बाद यह मुद्दा लंबे समय तक उपेक्षित रहा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में कहा कि ऐसे कर्मचारी जो विधिवत स्वीकृत पदों पर कार्यरत थे और दस वर्षों से अधिक समय तक सेवा कर चुके हैं, उन्हें नियमितीकरण के लिए गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।

    कर्मचारियों की उम्मीदें पुनर्जीवित

    बचे चार कर्मचारी अर्चना कुमारी, ललिता देवी, संजय कारबिन और पैट्रिक जॉन हेनरी को भीतर न्याय की उम्मीद जगी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यह स्पष्ट किया है कि अस्थायी नियुक्तियों को नियमित करने के लिए उचित प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए, खासकर उन मामलों में जहां नियुक्ति अवैध नहीं थी बल्कि केवल प्रक्रियात्मक औपचारिकताओं की कमी थी।

    फेडरेशन की ओर से यह भी बताया गया है कि ये कर्मचारी रेलवे के विशेषाधिकार पास और चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उठा रहे थे। इसके आधार पर रेलवे में लेवल-1 के रिक्त पदों पर इन कर्मचारियों के समायोजन की सिफारिश की गई है।

    रेलवे फेडरेशन ने रेलवे बोर्ड से अपील की है कि इन अर्द्ध कर्मचारियों के मामले की समीक्षा की जाए और उन्हें समाहृत करने के लिए उचित निर्देश जारी किए जाएं। कर्मचारियों का कहना है हमें विश्वास है कि न्यायालय के इस फैसले से हमारा हक हमें मिलेगा और हमारा जीवन पुनः पटरी पर आएगा।

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