सेवा परमो धर्म: को चरितार्थ करने वाला ही महामानव
युग-युगांतर से प्रचलित वाणी सेवा परमो धर्म: को आत्मसात कर चरितार्थ करने वालों को ही भविष्य में महामानव की उपाधि मिलती है।
समस्तीपुर। युग-युगांतर से प्रचलित वाणी सेवा परमो धर्म: को आत्मसात कर चरितार्थ करने वालों को ही भविष्य में महामानव की उपाधि मिलती है। राष्ट्र सेवा या माता-पिता संग मानव जाति या जीव-जंतुओं की सेवा हो सभी में धर्म की प्राप्ति के साथ-साथ लोगों को आत्म संतुष्टि के बीच जीवन भी सफल होता है। उक्त बातें रामेश्वर लक्ष्मी महतो टीचर्स कॉलेज के प्राचार्य डा. पुष्पा श्रीवास्तव ने कही। देश की सेवा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि केवल सीमा पर तैनात सैनिक ही देश सेवा के लिए संकल्पित नहीं है, बल्कि राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक का दायित्व है किसी न किसी रूप में अपनी मातृभूमि, जन्मभूमि एवं कर्मभूमि की सेवा करना। बाल्य काल से ही बच्चों के अंदर सेवा की भावना पैदा करना चाहिए। यह माता-पिता एवं शिक्षकों का दायित्व है। वहीं माता-पिता की सेवा परम सेवा है। जन्म देकर बच्चों के भविष्य के लिए कई प्रकार के कंटकाकीर्ण रास्तों से गुजरने वाले माता-पिता का सेवा नि:स्वार्थ भाव से होना चाहिए। जो भी व्यक्ति अपने इस कर्त्तव्य के प्रति उदासीन होकर उनका दुराभाव करता है, वह मानव कहलाने के लायक नहीं।
सुदृढ़ समाज के लिए सेवा भावना आवश्यक
सेवा के विभिन्न आयामों में समाजिक सेवा का भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। सेवा भावना से ही एक सफल समाज की स्थापना हो सकती है। लगातार सामजिक संरचनाओं में आ रहे गिरावट को रोकने के लिए लोगों को अपने अंदर सेवा की भावना उत्पन्न करना होगा। इससे एक सफल परिवार का सपना साकार होने के साथ-साथ व्यक्ति से व्यक्ति का हो रहे दुराव भी कम होगा। पूर्व में प्रत्येक मनुष्य के अंदर सेवा की अटूट भावना रहती थी। आज उसमें धीरे-धीरे गिरावट आ रही है। और यही कारण है कि परिवार तथा समाज लगातार टूटता जा रहा है। इसको अक्षुण्न तथा सार्थक व सफल रखने के लिए सेवा की भावना अत्यंत ही आवश्यक है।
सभी प्राणियों की सेवा को समझें धर्म
सेवा केवल मानवजाति की ही नहीं, बल्कि, संसार के सभी जीव-जंतुओं की सेवा आवश्यक है। सेवा के माध्यम से सभी प्राणियों के संरक्षण से ही विश्व में स्थिरता, पर्यावरण संतुलन के साथ-साथ सम्पूर्ण संसार की रक्षा संभव है। सांसारिक क्षेत्र में इस धरती माता के बचाव के लिए सभी प्राणियों को सुरक्षित रहना आवश्यक है। कई पशु-पक्षी धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं। जो पर्यावरण के साथ मानव जीवन क लिए भी अहितकर है। हमारा फर्ज है कि हर हाल में सेवा और प्रेम की भावना रखते हुए इनकी सुरक्षा का संकल्प लें। आज सम्पूर्ण विश्व में गौ सेवा का संकल्प दोहराया जा रहा है। गौ माता को संरक्षित रख उनसे कई तरह के फायदे लिए जा रहे हैं। दूध हो या गो मूत्र व उनके गोबर तक से कई प्रकार की मानव जीवन के उपयोगी दवाएं एवं खाद्य पदार्थ तैयार किया जा रहा है। सेवा भाव से ही इन महत्वपूर्ण चीजों को मानव ग्रहण करने में सक्षम है।
सेवा के बल पर कई बने महापुरुष
इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो सेवा भाव के बदौलत कई महापुरुषों का नाम अंकित हो चुका है। किसी ने राष्ट्र की सेवा कर अपना परचम लहराया, तो किसी ने मानव जाति तो कोई पशु-पक्षियों से प्रेम और सेवा कर अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज कराया। आज के नौनिहालों एवं किशोर युवाओं को उन महापुरूषों के आदर्श को अपना कर सेवा भाव से जुड़ने की आवश्यकता है। और इससे स्वयं के साथ-साथ परिवार, समाज एवं राष्ट्र का भी सर्वांगीण विकास निश्चित है। बच्चों के अंदर परोपकार की भावना उत्पन्न होना चाहिए। इससे आपसी प्रेम और भाईचारा मजबूत होता है। और समाज के विभाजित व बंटवारे की आशंका कम जाती है। आज भी जिन बच्चों के अंदर सेवा का भाव अंकुरित है, उनका संस्कार ही कुछ अलग झलकता है। जो प्रमाणित करता है कि सेवा और संस्कार में अन्योन्याश्रय संबंध है। इससे अपनी परम्पराओं और धरोहरों को भी संरक्षित रखने की भाव जगती है।
- डा. पुष्पा श्रीवास्तव, प्राचार्य, रामेश्वर लक्ष्मी महतो टीचर्स ट्रे¨नग कॉलेज, मिर्जापुर, रोसड़ा
सभी के अंदर हो परोपकार की भावना
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मनुष्य के अंदर यदि परोपकार की भावना नहीं है तो वह कहीं से मानव कहलाने का हकदार नहीं है। केवल अपने लिए जीने वालों का कभी भी सर्वांगीण विकास संभव नहीं है। परोपकार करने वाला व्यक्ति ही परिवार, समाज में पूजनीय होता है। साथ ही ऐसे लोग निश्चित रूप से अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। लोगों में परोपकार की भावना से प्रेम और निष्ठा दोनों जगता है। समाज परिवार एवं शिक्षकों का यह पुनीत कर्तव्य है कि बच्चों के अंदर शुरूआती दौर से ही परोपकार की भावना भरने का प्रयास निष्चित रूप से किया जाए। जिससे कि राष्ट्र का यह भविष्य आगे चलकर समाज और देश के लिए कुछ करने की तमन्ना रखे। परोपकार समाज को एक सूत्र में जोड़ने का भी काम करता है। आज भी यदि समाज के लोग अपने अंदर परोपकार की भावना रखें तो न ही कोई भ खमरी से मरेगा और न ही ईलाज के बिना किसी की जान जाएगी। परोपकार से कई प्रकार की पुण्य की प्राप्ति तथा पाप का नाश होता है।
- लक्ष्मी महतो, प्रखर शिक्षाविद्, सचिव बीएड कॉलेज, रोसड़ा
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सामाजिक संरचना को सु²ढ़ रखना हमारा पुनीत कर्त्तव्य है। इसके बिना मानव जीवन अधूरा है। हम सभी को समाज की मजबूती का संकल्प लेना चाहिए। इसके लिए हमारे अंदर परोपकार एवं सेवा भाव होना जरूरी है।
- संजय कुमार, शिक्षक
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सेवा और परोपकार मानव को उसका असली रूप दिखाता है। विद्यालय में बच्चों को इससे सम्बन्धित नैतिकता का पाठ पढ़ाना अत्यंत ही आवश्यक है। इस तरह के विषयों को किताबों में जगह देने की जरूरत है।
- दिव्या भारती, शिक्षिका
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मनुष्य का जीवन अपने और परिवार के साथ-साथ समाज और राष्ट्र क लिए भी समर्पित रहना चाहिए। यदि प्रत्येक व्यक्ति में यह सोच हो, तो निश्चित रूप से एक सु²ढ़ परिवार एवं समाज के साथ-साथ सपनों के भारत का निर्माण भी संभव है। इसको मूर्त रूप देने में माता-पिता के साथ शिक्षक भी जिम्मेवार हैं।
- बबीता देवी, शिक्षिका
फोटो फाइल नंबर : 13 एसएएम 35
विद्यालयों में नैतिक शिक्षा की पढ़ाई प्रारंभ होना आवश्यक है। इससे सामाजिक शिक्षा के साथ-साथ परोपकार एवं सेवा की भाव भी जगता है। शिक्षकों को भी समय-समय पर बच्चों को कथा-कविताओं के माध्यम से इस तरह की जानकारी देना आवश्यक है।
- जूही
फोटो फाइल नंबर : 13 एसएएम 36
माता-पिता के साथ-साथ परिजन एवं गुरूजन के सम्मान व सेवा के साथ-साथ पशु-पक्षियों के लिए भी अपने अंदर सेवा भावना रखना होगा। जिस तरह कई पशु-पक्षी मानव की सेवा करते हैं, वैसे ही मानव को भी उनकी सेवा पीछे नहीं हटना चाहिए।
- गगनदेव
फोटो फाइल नंबर : 13 एसएएम 37
परोपकार करने से आत्म संतुष्टि होती है। गरीबों को मदद करनी चाहिए। लगातार विघटित हो रहे समाज और परिवार का सीधा असर बच्चों पर पड़ रहा है और इस पर रोक लगाना परिवार समाज और राष्ट्र के लिए आवश्यक है।
- श्वेता
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