नोटा न बिगाड़ दे पार्टियों का गणित, प्रत्याशियों को सता रही टेंशन
समस्तीपुर में नोटा (NOTA) प्रत्याशियों के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। पिछले चुनावों में नोटा ने कई सीटों पर परिणाम प्रभावित किए थे। मतदाताओं में जागरूकता बढ़ी है और वे अब अपना प्रतिनिधि चुनने में कई कारकों पर ध्यान दे रहे हैं। 2015 में नोटा का प्रयोग अधिक हुआ था, लेकिन 2020 में यह आंकड़ा कम हो गया। सरायरंजन विधानसभा में नोटा के वोटों ने राजद प्रत्याशी का समीकरण बिगाड़ दिया था।

नोटा न बिगाड़ दे पार्टियों का गणित
प्रकाश कुमार, समस्तीपुर। विगत विधानसभा चुनाव परिणाम की तरह नोटा इस बार भी बना-बनाया समीकरण न बिगाड़ दे, इसकी चिंता सभी दलों के प्रत्याशियों को सता रही। पिछला अनुभव भी यही बता रहा कि चुनाव में जब कांटे की टक्कर हो तो नोटा के वोट भी परिणाम को प्रभावित करते हैं।
उस चुनाव में समस्तीपुर विधानसभा की कई सीटों पर तो नोटा पर दबे बटन उम्मीदवारों को मिले वोट से अधिक निकल गए थे। उनकी जीत-हार के अंतर से अधिक वोट नोटा के खाते में गए थे।
समस्तीपुर शहर के काशीपुर निवासी अधिवक्ता प्रभात कुमार बताते हैं कि मतदाताओं ने इस मिथक को तोड़ दिया है कि शहरी क्षेत्र के मतदाता ही नोटा का इस्तेमाल करते हैं। मतदाता अब जागरूक हुए हैं, अपना जनप्रतिनिधि चुनने में कई फैक्टर देख रहे। अगर, पिछले बार की तरह इस बार भी कुछ ऐसा रहा तो दलीय दांव-पेच और सियासी समीकरण में नोटा अहम साबित हो जाएगा।
मुसरीघरारी के गंगापुर निवासी अमित कुमार का कहना है कि पिछली बार हर जगह वोटिंग प्रतिशत बेहतर रही। इस बार यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाताओं का रुझान क्या होगा। मतदाताओं की नाराजगी, मुद्दों को लेकर मुखरता ये सारी बातें वोटिंग के नेचर को प्रभावित करती हैं। नोटा के खाते में जाने वाला वोट भी इसी का हिस्सा है।
2015 में हसनपुर विधानसभा में ज्यादा पड़ा था नोटा
पहली बार जब बिहार में चुनाव आयोग द्वारा 2015 में नोटा का प्रयोग शुरू किया गया था तो इसको लेकर मतदाताओं में क्रेज दिखा। 2015 में जहां 52 हजार 610 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाकर किसी भी प्रत्याशी को न चुनने का विकल्प अपनाया था, वहीं 2020 के चुनाव में यह आंकड़ा घटकर लगभग 29 हजार 848 पर सिमट गया।
यह गिरावट मतदाताओं के राजनीतिक परिपक्वता और स्थिर सरकार की चाहत का स्पष्ट संकेत देती है। वर्ष 2015 के चुनाव में समस्तीपुर जिले में हसनपुर विधानसभा में सबसे ज्यादा नोटा का प्रयोग हो गया था। यहां पर सबसे अधिक 7471 मतदाता ने नोटा का बटन दबाया था।
नोटा ने बिगाड़ दिया था राजद प्रत्याशी का समीकरण
उस चुनाव में समस्तीपुर जिले की 10 सीटों में सबसे नजदीकी मुकाबला सरायरंजन विधानसभा में रहा था। राजद के टिकट पर उतरे अरविंद कुमार सहनी को जदयू के विजय कुमार चौधरी ने 3624 वोटों से परास्त कर दिया था। वहीं नोटा के खाते में 4200 वोट गए थे। यही वोट राजद प्रत्याशी की हार के कारण बन गए।
समस्तीपुर विधानसभा में भी 1837 ने नोटा को दिया था मत
समस्तीपुर विधानसभा सीट पर राजद के अख्तरुल इस्लाम शाहीन ने जदयू की अश्वमेघ देवी को 4714 वोटों से पराजित किया था। यहां नोटा पर 1837 वोट गिरे थे। इसके अलावा एनडीए गठबंधन से अलग रहकर लोजपा ने अपना प्रत्याशी उतारा था। जिसे 12 हजार 74 मत मिले थे।

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