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    निर्माण के देवता भगवान विश्वकर्मा की आज होगी पूजा

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 17 Sep 2019 01:08 AM (IST)

    स्वर्ग लोक से लेकर द्वारिका तक का रचयिता भगवान विश्वकर्मा को माना जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा के पूजन से व्यापार में तरक्की होती है। ि

    निर्माण के देवता भगवान विश्वकर्मा की आज होगी पूजा

    समस्तीपुर । स्वर्ग लोक से लेकर द्वारिका तक का रचयिता भगवान विश्वकर्मा को माना जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा के पूजन से व्यापार में तरक्की होती है। विश्वकर्मा पूजा को लेकर शहर का बाजार पूजन सामग्री से सज गया है। उनके श्रृंगार के लिए एक से एक खूबसूरत मालाएं उतारी गई हैं। जो रंग-बिरंगी है। खासकर लाल और पीले रंग के फूलों से इन मालाओं को पिरोया गया है। वहीं मंडप सजाने के लिए भी एक से एक सुंदर सामग्री उपलब्ध है। इसके अलावा लाल-पीली डोरियों की भी बेहद मांग है। इसके अलावा बिजली का झालर भी उपलब्ध है। जिसमें मोटी और पतली झालर उपलब्ध है। जिन्हें श्रद्धालु अपने बजट के अनुरूप खरीद सकते हैं। वहीं, जगमगाती रोशनी फैलाने वाले बल्ब भी उपलब्ध है। वहीं मिट्टी के घर इत्यादि को खरीदने में श्रद्धालु व्यस्त दिखे। इसके अलावा डाब इत्यादि से भी बाजार सजा हुआ नजर आ रहा है। इसके अलावा रोली, मोली की भी बेहद मांग हैं। पूजा को लेकर श्रद्धालुओं का उत्साह देखने लायक है। उनका कहना है कि वे बहुत ही श्रद्धा भाव से बाबा की आराधना करते हैं। जिसकी तैयारी शुरू हो गई हैं। वहीं बाबा की प्रतिमा से भी बाजार सजा हुआ है। जिसमें छोटी और बड़ी सभी प्रकार की प्रतिमाएं उतारी गई हैं।

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    ये है कथा : सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मापंडित हरिश्चंद्र झा कहते हैं कि भगवान विश्वकर्मा निर्माण एवं सृजन के देवता कहे जाते हैं। माना जाता है कि उन्होंने ही इंद्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, लंका आदि का निर्माण किया था। इस दौरान औद्योगिक कंपनियों व दुकानों में विशेष रूप से सभी औजार व मशीनों की पूजा की जाती है। वास्तु पुत्र हैं विश्वकर्मा कथा के अनुसार सृष्टि रचना के दौरान भगवान विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्मा जी प्रगट हुए। ब्रह्मा के पुत्र धर्म का विवाह 'वस्तु' से हुआ। धर्म के सात पुत्र हुए। सातवें पुत्र का नाम'वास्तु'रखा गया, जो शील्पशास्त्र की कला में निपुण थे। वास्तु के विवाह के बाद उनका एक पुत्र हुआ, जिसका नाम विश्वकर्मा रखा गया। वे वास्तुकला के अद्वितीय गुरु बने। मान्यता है कि विश्वकर्मा पूजा करने वाले व्यक्ति के घर धन-धान्य तथा सुख-समृद्धि की कभी कोई कमी नहीं रहती है। पूजा की महिमा से व्यक्ति के व्यापार में वृद्धि व सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।भगवान विश्वकर्मा का आगमनवास्तु कला व शिल्प के देवता भगवान विश्वकर्मा की आराधना के लिए पूरी तरह तैयार हो चुकी है। शहर के अलग-अलग औद्योगिक संस्थानों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना होगी। विश्वकर्मा जयंती बडे़ धूमधाम से मनाई जाती है। खासकर औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे की दुकान, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर आदि में पूजा अर्चना होती है। इस मौके पर मशीनों, औजारों की सफाई एवं रंगरोगन किया जाता है। ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं। मालती प्रिटिग प्रेस बहादुरपुर, लक्ष्मी टॉकिज, रेलवे कारखाना, विद्युत विभाग आदि कार्यालयों में पूजा की तैयारी जोरों पर है।

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    पूजा के सामान से सजा बाजार

    विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर रविवार को पूरा बाजार पूजा के सामनों से सजा रहा। खरीदारों का आना-जाना लगा है। हालांकि दुकानदार इस बार कम बिक्री की बात कह रहे थे। फल-फूल से लेकर मिठाई दुकानों पर भी भीड़ दिखी। दुकानदारों का कहना है कि जीएसटी कारण मंहगाई बढ़ने से ग्राहकों की संख्या में कमी आयी है।

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    सामानों की कीमत पर एक नजर

    बेसन का लड्डू - 140 से 150 रुपये किलोबुंदिया का लड्डू- 140-200 रुपये किलो छेना की मिठाई- 200 से 250 रुपये किलो काश्मीरी सेब - 80-100 रुपये किलो काश्मीरी डेल सास सेब- 100-120 रुपये किलो, मिट्टी का दीपक छोटा- दो रुपये पीस, मिट्टी का कलश- 20 रुपये, धूपदानी- 20 रुपये फूलों की लड़ी- 15 से 20 रुपये प्रति पीस बिक्री कम होने से मूर्तिकार उदास इस बार मूर्ति कम बिकने से मूर्तिकार उदास हैं। मूर्तिकार रोशन कुमार, रामसागर ने बताया कि जीएसटी के कारण मंहगाई चरम पर है। पिछली बार जिस माला की कीमत 50 रुपये थी इस उसकी कीमत 70 रुपये है। वहीं, 60 रुपये वाली मुकुट का दाम 110 रुपये हो गया है। कपड़ा जो पहले 65 रुपये में मिलता था उसकी कीमत 110 रुपये हो गई है। 30 रुपये वाली धोती की कीमत 45 रुपये हो गई है। इसके कारण मूर्ति की कीमत भी बढ़ा दी गई है। जिससे ग्राहकों की संख्या काफी कम हो गई है। कम कीमत रेडिमेड मूर्ति लेकर काम चला रहे हैं। उनलोगों का रोजगार मंदा हो गया है। रेडिमेड मूर्ति 50 रुपये 200 रुपये मिल जा रही है। मूर्तिकार द्वारा गई मिट्टी की प्रतिमा की कीमत 50 रुपये से लेकर पांच हजार रुपये तक है।

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