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    खेती पर ग्लोबल वार्मिग का खतरा

    By Edited By:
    Updated: Sun, 04 Sep 2016 12:43 AM (IST)

    समस्तीपुर। ग्लोबल वार्मिंग आज सबके लिए जटिल समस्या बन गई है। वातावरण में कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा

    समस्तीपुर। ग्लोबल वार्मिंग आज सबके लिए जटिल समस्या बन गई है। वातावरण में कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। मौसम का मिजाज लगातार बदल रहा है। उचित तापमान नहीं मिलने से फसलें प्रभावित हो रही हैं। पेड़ पौधे सूख रहे हैं। लगातार बढ़ रही गर्मी से आदमी का सामान्य जन-जीवन भी प्रभावित हो रहा है। जलवायु एवं मौसम में अप्रत्याशित बदलाव हो रहा है कहीं अत्यधिक बाढ़, कहीं व्यापक सूखा, आंधी-तूफान से किसान तबाह हो रहे हैं। ये गतिविधियां जहां एक ओर पराबैंगनी किरणों से धरती को बचाने वाली ओजोन परत के छीजने का कारण बनी हुई हैं। वहीं दूसरी ओर धरती में मरुस्थलीकरण की राह को भी आसान कर रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग का असर अब लोगों को तेजी से महसूस हो रहा है। कभी शब्दों तक सिमटा ग्लोबल वार्मिंग का एहसास अब आम आदमी करने लगा है। वैज्ञानिक इसे बढ़तें ग्रीन हाउस गैस का भी प्रभाव बता रहे हैं। इसकी वजह से एक्ट्रीम वेदर इंवेंट की घटना भी तेजी से बढ़ रही। कृषि व्यवस्था को इससे सबसे ज्यादा खतरा है। आज किसानों की खेतों की फसल सुखाड़ व असमय आंधी पानी से बर्बाद होने लगी है। वर्षा की अनियमितता के कारण खेती के ताक पर पानी नहीं बरस रहा। लोगों को अब प्रत्यक्ष रूप से जल संकट से जूझना पड़ा रहा है।

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    इस खतरे को कैसे रोकें

    इसे रोकने के लिए सबसे पहले वृक्षारोपण जरूरी है। इसके साथ-साथ सीएफसी गैसों का ऊत्सर्जन रोकना होगा और इसके लिए फ्रिज, एयर कंडीशनर और दूसरे कू¨लग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिनसे सीएफसी गैसें कम निकलती हैं। यहां प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे। वाहनों में से निकलने वाले धुंए का प्रभाव कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का सख्ती से पालन करना होगा। पेड़ों की कटाई रोकनी होगी और जंगलों के संरक्षण पर बल देना होगा।

    -----------क्या कहते हैं विशेषज्ञ

    पिछले कई दशकों में तापमान में काफी वृद्धि हुई है। 1780 से लेकर अब तक पृथ्वी के तापमान में तकरीबन 0.9 सेल्सियस वृद्धि हो चुकी है। कुछ पौधे ऐसे होते हैं जिन्हें एक विशेष तापमान की आवश्यकता होती है, वायुमंडल का तापमान बढ़ने से उनके उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा उत्पादन में भारी कमी आती है। उदाहरण के लिए आज जहां गेहूं, जौ, सरसों और आलू की खेती हो रही है तापमान बढ़ने से इन फसलों की खेती न हो सकेगी, क्योंकि इन फसलों को ठंडक की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार जलवायु परिवर्तन होने से स्थानीय जैव विविधता में परिवर्तन उनके क्षरण का कारण हो सकता है। डा. अरुण कुमार चौधरी, प्राध्यापक वनपस्पित शास्त्र, आरएनएआर कॉलेज, समस्तीपुर।

    कहां-कहां से हो रहा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन

    पावर स्टेशन से - 21.3 प्रतिशत

    कल कारखानों से - 16.8 प्रतिशत

    वाहनों से - 14 प्रतिशत

    कृषि क्षेत्र से - 12.5 प्रतिशत

    जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से - 11.3 प्रतिशत

    शहरी क्षेत्रों से - 10.3 प्रतिशत

    बॉयोमॉस जलने से - 10 प्रतिशत

    कचरा जलाने से - 3.4 प्रतिशत