अनदेखी के कारण ऐतिहासिक तालाबों का मिट रहा वजूद
तालाब सिर्फ पानी का स्रोत ही नहीं सामाजिक और संस्कृति का भी केंद्र है। प्राकृतिक संसाधनों पर जीने का एक जरिया है। लेकिन आज सरकार और प्रशासन की अनदेखी ...और पढ़ें

समस्तीपुर । तालाब सिर्फ पानी का स्रोत ही नहीं, सामाजिक और संस्कृति का भी केंद्र है। प्राकृतिक संसाधनों पर जीने का एक जरिया है। लेकिन, आज सरकार और प्रशासन की अनदेखी, लोगों की उपेक्षा के कारण प्राकृतिक जल स्रोतों का वजूद मिटने के कगार पर है। अधिकांश तालाब बदहाली का शिकार हो रहे हैं। जल स्रोतों की उपेक्षा का ही नतीजा है कि आसपास के कुएं गंदे हैं। पानी निस्तारण के लिए भी माकूल सुविधा नहीं है। इधर, जागरूकता के अभाव के साथ-साथ शहरों में निरंतर बढ़ती आबादी और भू माफिया के प्रभुत्व के कारण अधिकांश तालाब और कुएं अपना मूल रूप खो चुके हैं। बदहाली के शिकार प्राकृतिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिए कई बार प्रयास भी किए गए हैं। लेकिन, सही तरह से क्रियान्वयन नहीं होने के कारण उनका सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आ रहा है। सरकारी स्तर पर तालाबों में साफ-सफाई की कोई योजना नहीं है। जिसके कारण तालाब अतिक्रमण और प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं। जिले में 1190 सरकारी तथा 2569 निजी तालाब हैं। विगत वर्ष जिले के चार हेक्टेयर तालाब में जीर्णोद्धार का लक्ष्य मिला था। इसमें लक्ष्य के अनुरूप 3.92 हेक्टेयर तालाबों में दो फीट मिट्टी काटकर गहरा कर योजना की खानापूर्ति कर दी गई। प्राकृतिक जल स्रोतों के रखरखाव को लेकर सही कार्ययोजना नहीं होने के कारण तालाब और कुओं का अस्तित्व विलुप्त होने के कगार पर है। अतिक्रमण की चपेट में विलुप्त होता जा रहा तालाबों का दायरा
शहर के आसपास तालाबों की बात करें तो ज्यादातर तालाब या तो अतिक्रमण के शिकार हो चुके हैं या फिर प्रशासन की उपेक्षा में दम तोड़ रहे हैं। शहर के सटे काशीपुर, धर्मपुर, दुधपुरा में विभागीय उपेक्षा के कारण तालाब का वजूद मिटने के कगार पर है। मिट्टी, कूड़ा-कचरा डालकर तालाब भरे जा रहे हैं। बड़ी संख्या में तालाबों में जलकुंभी पसरी हुई है। उनके पानी आने के रास्ते अवरुद्ध कर दिए गए हैं। जिससे उनमें अधिकांश बारिश का पानी संग्रहित नहीं हो पा रहा है। मानसून का मौसम शुरू हो गया, लेकिन जल स्रोतों की साफ-सफाई, मेड़ बांधना, गहरीकरण व रखरखाव नहीं किया गया। इसके कारण तालाब सूखने के कगार पर है। वर्षा जल संचयन का नहीं दिख रहा ठोस प्रबंध
जल ही जीवन है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। पानी की कमी नहीं रहे, इसके लिए बारिश के पानी का संरक्षण और संग्रहण सबसे बेहतर उपाय है। यह लगातार गिरते भू-जलस्तर के लिहाज से न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे पानी की किल्लत को दूर किया जा सकता है। वर्षा जल संग्रहण की प्रक्रिया कई स्तरों पर अपनाई जाती है। मकान और सार्वजनिक जगहों से लेकर तालाब और कुआं जैसे प्राकृतिक स्रोत के माध्यम से वर्षा जल संग्रहण को लेकर सरकारी स्तर पर कई योजनाएं बनाई गई। लेकिन, लोगों में जागरुकता की कमी और सरकारी एजेंसियों की लापरवाह कार्यशैली की वजह से ये योजनाएं अब तक अपेक्षित मुकाम को हासिल नहीं कर सकीं। खेतों की सिचाई पर भी पर रहा असर, किसानों की बढ़ी चिता
पानी की समस्या सिर्फ खेतों तक ही सीमित नहीं रही। यहां सूखे का ऐसा प्रभाव हुआ कि पीने और घर की जरूरतों के लिए भी पानी मिलना बंद हो गया। सिचाई के लिए पानी की अलग आवश्यकता है। तालाबों के रखरखाव की जिम्मेदारी सभी की होती है। समय और शासन बदला तो खेती और सिचाई के तौर तरीके भी बदल गए। पानी की आपूर्ति बोरिग और सबमर्सिबल मोटर से होने लगी। जिले के अधिकांश तालाब और कुएं सूख गए। किसान भी नई व्यवस्था पर आश्रित हो गए। तालाब बीते जमाने की बात हो गई। प्राचीन काल में तालाब निर्माण को धर्म और संस्कृति से जोड़ कर रखा गया था। लेकिन, हाल के वर्षो में धार्मिक स्थान पर भी अतिक्रमण होते चले गए। सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
नदी, कुआं, पोखर, तालाब का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। ग्रामीण जीवन में तालाबों की अनिवार्यता प्रत्येक सामाजिक संस्कारों व दैनिक जीवन में अपरिहार्य है। तालाब अपने जीवन के लिए प्राकृतिक और मानसून पर निर्भर रहते हैं। वहीं समाज अपने अस्तित्व के लिए तालाब पर निर्भर रहता था। तालाबों के किनारे विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक क्रियाकलाप संचालित होते रहे हैं। पचास साल पहले तक तालाब ही जल के प्रमुख स्रोत होते थे। तब तालाबों का रखरखाव एक देवता मानकर किया जाता था। तालाब और जलाशयों की देखरेख का काम पूरा समाज करता था। तालाब निर्माण से लेकर उसकी रक्षा लोग अपनी जिम्मेदारी समझते थे। नल, ट्यूबवेल आदि आने से पानी के परंपरागत स्रोत की उपेक्षा हुई। लोग वर्षा जल संरक्षण का पुराना तरीका भूल गए। जिससे नए-नए खतरे हमारे सामने आने लगे। जलस्तर गिरते ही लोग पेयजल समस्या से जूझ रहे हैं। क्या कहते हैं लोग
पानी की समस्या को सभी लोग समझ रहे हैं और चर्चा भी होती है, लेकिन जल संरक्षण को लेकर कोई ठोस पहल दिखाई नहीं दे रही है।
विद्यानंद तिवारी।
तालाबों के बिना पानी के स्तर को बचा पाना बेहद मुश्किल है। पानी की समस्या सभी को है। लेकिन, पानी बचाने का काम कोई नहीं कर रहा है।
कुंदन तिवारी। किसी भी क्षेत्र में चले जाएं, तालाब की हालत एक जैसी मिलेगी। बारिश के पानी से तालाब भरते हैं। लेकिन, कुछ ही महीनों में पानी सूख जाता है।
स्वास्तिक।
तालाबों को बचाना है तो एकजुट होकर प्रयास करने होंगे। किसी एक व्यक्ति या सिर्फ सरकार के चाहने से यह संभव नहीं है। इसलिए सभी को आगे आना होगा।
राहुल कुमार।
जल संरक्षण और प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाने के लिए विभाग पूरी तरह प्रयासरत है। अभी इसके लिए कई योजनाएं तैयार की जा रही है। आने वाले दिनों में काम शुरू किया जाएगा।
संजीव कांत,
कनीय अभियंता,
जिला मत्स्य कार्यालय।

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