Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    रामेश्वर जूट मिल के 42 दिनों से लटका है ताला, श्रमिकों के सामने रोजगार का संकट

    By Manish Kumar Roy Edited By: Ajit kumar
    Updated: Sun, 14 Dec 2025 04:03 PM (IST)

    समस्तीपुर के कल्याणपुर स्थित रामेश्वर जूट मिल में 42 दिनों से ताला लटकने से 1700 श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। प्रबंधन और श्रमिक ...और पढ़ें

    Hero Image

    मशीनों की मरम्मत न होने से उत्पादन घट गया था। जागरण

    मनीष कुमार, समस्तीपुर। Samastipur News: समस्तीपुर के कल्याणपुर स्थित मुक्तापुर में अब सन्नाटा है। जिस रास्ते से गुजरते जूट मिल की मशीनों की आवाज सुनाई देती थी, अब वह शांत हैं। करीब 1700 श्रमिकों के सामने रोजी-रोजगार का संकट है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    रामेश्वर जूट मिल जिले में रोजगार का बड़ा केंद्र था। यहां के लोग पीढ़ियों से जूट की बेलें काटते, काम करते और होने वाली आय से घर-परिवार चलाते। बीते 42 दिनों से मिल में ताला लटकने के बाद करीब 800 से अधिक कार्यरत श्रमिकों के सामने दो वक्त की रोटी का सवाल खड़ा हो गया है।

    प्रबंधन और श्रमिकों के बीच लंबित मांगों में न्यूनतम मजदूरी लागू करने, पीएफ आनलाइन, ग्रेच्युटी का भुगतान आदि मांगों को लेकर खींचतान है। इनपर एक नवंबर को वार्ता तय थी, पर 31 अक्टूबर की आधी रात गेट पर नोटिस चिपका देने से किसी भी तरह की बात आगे नहीं बढ़ी। मजदूर यूनियन के अध्यक्ष नौशाद आलम के अनुसार, प्रबंधन ने बिना वार्ता के मिल बंद कर दिया।

    यह श्रमिकों के साथ धोखाधड़ी है। इधर, प्रबंधन का कहना है कि आपूर्ति ठप होने और मशीनों की मरम्मत न होने से उत्पादन घट गया था। आर्थिक रूप से असंभव हालात में कठिन निर्णय लेना पड़ा।

    हर रोज खुशहाली की आस में टूट रही उम्मीदें

    कभी इस मिल का सायरन बजते ही आसपास के गांवों में जीवन की रफ्तार तेज हो जाती थी। मजदूर काम पर निकलते थे और उनके परिवारों को भरोसा होता था कि चूल्हा जलेगा। आज वही परिवार खाली बैठकर आने वाले कल की चिंता में डूबे हैं।

    मिल बंद होने से मुक्तापुर और आसपास के दर्जनों गांवों में बेरोजगारी, कर्ज और भुखमरी का डर साफ नजर आने लगा है।रामेश्वर जूट मिल मजदूर यूनियन के अध्यक्ष नौशाद आलम ने कहा कि प्रबंधन उत्पादन में कमी का बहाना बना रहा है, जबकि असल समस्या वर्षों से लंबित भुगतान और श्रमिक अधिकारों की अनदेखी है।

    उन्होंने कहा कि यदि मिल को जल्द चालू नहीं किया गया तो श्रमिकों के पास आंदोलन के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। मिल बंद होने का असर सिर्फ श्रमिकों तक सीमित नहीं है। इस मिल पर निर्भर सैकड़ों किसान भी प्रभावित हो रहे हैं।

    समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, सहरसा और कटिहार जिलों में पटसन की खेती इसी मिल के भरोसे होती थी। अब किसान मजबूरी में अपना पटसन पश्चिम बंगाल और असम भेज रहे हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त खर्च और नुकसान झेलना पड़ रहा है।

    नियमित मेंटेनेंस को बता रहे कारण

     

    एक समय रामेश्वर जूट मिल में प्रतिदिन 5 से 6 हजार बेल जूट का उत्पादन होता था। बिहार राज्य खाद्य निगम की सालाना मांग ही करीब 60 हजार बेल थी। श्रमिकों का कहना है कि यदि समय पर भुगतान होता और मिल का नियमित मेंटेनेंस किया जाता, तो आज यह स्थिति पैदा नहीं होती।


    प्रशासनिक व राजनीतिक पहल पर शुरू हुआ था मिल

    रामेश्वर जूट मिल इसके पूर्व भी कई बार बंदी का शिकार हो चुका है। पहली बार 6 जुलाई 2017 को प्रबंधन ने मिल बंद कर दी थी, जो लंबे समय तक बंद रही। सितंबर-अक्टूबर 2020 में स्थानीय जनप्रतिनिधि के प्रयास से मिल फिर शुरू हुई, लेकिन कुछ ही महीनों बाद दोबारा बंद हो गई।

    नवंबर 2022 में श्रमिकों के आंदोलन के बाद भी मिल का संचालन रोक दिया गया था। 1 नवंबर 2025 को मिल बंद होने के समय 800 से अधिक श्रमिक काम कर रहे थे, जबकि कुल नामांकित श्रमिकों की संख्या 1700 से ज्यादा है। आज सभी के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा है।

    मिल को पुनः चालू कराने के लिए जिला प्रशासन ने पहल की है। मिल का निरीक्षण कर प्रबंधन और श्रमिक प्रतिनिधियों से बातचीत की गई है। उम्मीद है कि जल्द सकारात्मक परिणाम सामने आएगा।

    -

    दिलीप कुमार, एसडीओ