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    मुनाफा डबल-खर्च आधा! बिहार में ड्रोन तकनीक से होगी डिजिटल खेती, किसानों को मिलेगा स्वरोजगार का नया प्लेटफॉर्म

    By Edited By: Rajat Mourya
    Updated: Sat, 21 Oct 2023 02:35 PM (IST)

    Bihar Drone Farming बिहार के किसान अब जल्द ही ड्रोन तकनीक के जरिए खेती करते नजर आएंगे। इस ओर डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विद्यालय ने कदम बढ़ा दिए हैं। किसानों को ट्रेनिंग दी जा रही है। कृषि विश्वविद्यालय के अभियंत्रण महाविद्यालय में ड्रोन संचालन कोर्स चल रहा है। अब तक कई किसान इसकी ट्रेनिंग ले चुके हैं।

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    बिहार में ड्रोन तकनीक से होगी डिजिटल खेती, किसानों को मिलेगा स्वरोजगार का नया प्लेटफॉर्म (जागरण फोटो)

    पूर्णेंदु कुमार, पूसा (समस्तीपुर)। Drone Technology For Agriculture कृषि उन्नयन में ड्रोन तकनीक की बढ़ती उपयोगिता के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार की राह भी खुल रही है। संस्थागत ड्रोन संचालन के प्रशिक्षण से राह और आसान हो रही है। पूसा स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय इसके लिए आगे आया है। 12 अक्टूबर से कृषि अभियंत्रण महाविद्यालय में शुरू पहले सत्र में नौ लोग प्रशिक्षण ले चुके हैं।

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    इनमें समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, वैशाली और बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया के कर्मी भी शामिल हैं। दूसरा प्रशिक्षण सत्र 25 अक्टूबर से शुरू होगा। इसके लिए 10 लोगों ने नामांकन कराया है। प्रशिक्षित युवा ड्रोन खरीदकर कृषि और बागवानी कार्य में ड्रोन तकनीक से कीटनाशी, खर-पतवारनाशी, नैनो यूरिया छिड़काव में सेवा प्रदाता के रूप में काम करेंगे।

    अभियंत्रण महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. अमरीश कुमार का कहना है कि पांच दिवसीय प्रशिक्षण कोर्स के लिए 45 हजार रुपये शुल्क है। पांच दिनों में दो दिन प्रायोगिक और तीन दिन सैद्धांतिक जानकारी दी जाएगी। ड्रोनियर एविगेशन प्राइवेट लिमिटेड, बक्सर द्वारा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कंपनी के प्रबंध निदेशक आरएस सिंह, प्रो. अजय कुमार यादव व सौरभ दुबे शामिल हो रहे हैं।

    20 से 25 प्रतिशत तक दवा की होगी बचत

    डॉ. अमरीश का कहना है कि कृषि कार्यों में ड्रोन की प्राथमिकता को देखते हुए केंद्र व राज्य सरकार इस तकनीक को बढ़ावा दे रही है। इससे किसान छिड़काव के साथ फसलों में तमाम तरह की बीमारी, कीटों का प्रभाव और पेड़ों पर मंजर आदि को ऑन स्क्रीन देखकर रिकॉर्ड तैयार कर सकते हैं।

    उन्होंने बताया कि प्रारंभिक तौर पर किसानों को कुछ अधिक खर्च दिखेगा, लेकिन जब किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) एवं कस्टम हायरिंग के माध्यम से अनुदान का लाभ लेंगे तो तकनीक सस्ती होगी। इसमें 20 से 25 प्रतिशत तक दवा की बचत हो सकेगी।

    'ड्रोन की कीमत सात से 10 लाख रुपये तक है'

    डॉ. अमरीश ने बताया कि विश्वविद्यालय में फिलहाल दो और कंपनी के पास एक ड्रोन हैं। इससे प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बाजार में वहन क्षमता के अनुसार ड्रोन की कीमत सात से 10 लाख रुपये तक है। यह एक बार चार्ज होने पर दो हेक्टेयर का छिड़काव करता है।

    कृषि में ड्रोन को लेकर अपार संभावनाएं हैं। आने वाले समय में कृषि का स्वरूप बदलने वाला है। विश्वविद्यालय डिजिटल एग्रीकल्चर के सभी स्वरूप पर विशेष ध्यान दे रहा है। -डॉ. पीएस पांडेय, कुलपति

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