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    ऐतिहासिक स्थल को सरकारी मरहम की दरकार

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    Updated: Sat, 18 Apr 2015 01:42 AM (IST)

    जासं, समस्तीपुर : कई ऐतिहासिक स्थल इसके गौरवशाली अतीत के जीवंत प्रमाण है। दुर्भाग्यवश यहां के ऐति

    जासं, समस्तीपुर : कई ऐतिहासिक स्थल इसके गौरवशाली अतीत के जीवंत प्रमाण है। दुर्भाग्यवश यहां के ऐतिहासिक स्थलों व पर्यटक स्थल का विकास तो दूर की बात इसके रखरखाव व बचाने की दिशा में भी किसी स्तर पर पहल नहीं हुई है। यहां के उजियारपुर प्रखंड स्थित देखभाल के बारे में कहा जाता है कि यक्ष व युधिष्ठिर संवाद इसी जगह पर हुआ था। यह जगह पूरी तरह उपेक्षित है तथा इतिहास के गर्भ में विलीन है। पटोरी के धमौन में दरिया पंथियों को सबसे बड़ा स्थल संत दरिया आश्रम है जो उपेक्षित पड़ा हुआ है। पटोरी के ही शिउरा में निषादों का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल अमर ¨सह स्थान तथा यादवों को तीर्थ स्थल निरंजन स्थान है। मोहिउद्दीननगर में आयसा बीबी का किला खंडर बनता जा रहा है। मोरवा में सांप्रदायिक एकता का मिशाल खुदनेश्वर स्थान में ग्रामीणों ने मिलकर एक भव्य मंदिर बनवाया है। जिले को मिथिला का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है। यह पूर्व में राजाजनक के मिथिला प्रदेश का अंग रहा है। विदेह राज्य का अंत होने पर यह वैशाली गणराज्य का अंग बना। इसके पश्चात यह मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। ह्वेनसांग के विवरणों से यह पता चलता है कि यह प्रदेश हर्षवर्धन के साम्राज्य के अंतर्गत था। 13 वीं सदी में पश्चिम बंगाल के मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास के समय मिथिला एवं तिरहुत क्षेत्रों का बँटवारा हो गया। उत्तरी भाग सुगौना के ओईनवार राजा (1325-1525 ईस्वी) के कब्जे में था जबकि दक्षिणी एवं पश्चिमी भाग शम्सुद्दीन इलियास के अधीन रहा। समस्तीपुर का नाम भी हाजी शम्सुद्दीन के नाम पर पड़ा है।

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    जिले का पर्यटन स्थल

    विद्यापतिनगर: शिव के अनन्य भक्त एवं महान मैथिल कवि विद्यापति ने यहाँ गंगा तट पर अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए थे। ऐसी मान्यता है कि अपनी बिमारी के कारण विद्यापति जब गंगातट जाने में असमर्थ थे तो गंगा ने अपनी धारा बदल ली और उनके आश्रम के पास से बहने लगी। वह आश्रम लोगों की श्रद्धा का केंद्र है।

    मोरवा : यहां का खुदनेश्वर स्थान सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है। यहां एक ही गर्भ गृह में शिव¨लग तथा उनके अनन्य भक्त खुदनी बीबी का मजार है। शिव¨लग पर जलाभिषेक साथ-साथ खुदनी बीबी की मजार की लोग पूजा अर्चना करते हैं।

    मोहिउद्दीननगर : यहां आयसा बीबी का विशाल किला है। यह दर्शनीय स्थल है। देखरेख के अभाव में किले की दीवारें टूट रही है।

    उजियारपुर : यहां का देवखाल चौर उपेक्षित पड़ा है। ऐसी मान्यता है कि अज्ञात वास के दौरान यक्ष व युधिष्ठीर का संवाद इसी जगह हुआ था।

    दल¨सहसराय : यहां पांड में हुई खुदाई में पुरातात्विक चीजें मिली है।

    शिवाजीनगर : महामहिषी कुमारिलभट्ट के शिष्य महान दार्शनिक उदयनाचार्य का जन्म 984 ईस्वी में शिवाजीनगर प्रखंड के करियन गांव में हुआ था। उदयनाचार्य ने न्याय, दर्शन एवं तर्क के क्षेत्र में लक्षमणमाला, न्यायकुशमांजिली, आत्मतत्वविवेक, किरणावली आदि पुस्तकें लिखी जिनपर अनगिनत संस्थानों में शोध चल रहा है। यह महत्वपूर्ण स्थल उपेक्षित है।

    कल्याणपुर: यहां 1844 में बना शिवमंदिर है जहां प्रत्येक वर्ष रामनवमी को मेला लगता है। मालीनगर ¨हदी साहित्य के महान साहित्यकार बाबू देवकी नन्दन खत्री एवं शिक्षाविद राम सूरत ठाकुर की जन्म स्थली भी है।

    मंगलगढ: यह स्थान हसनपुर से 14 किलोमीटर दूर है जहां प्राचीन किले का अवशेष है। यहां के स्थानीय शासक मंगलदेव के निमंत्रण पर महात्मा बुद्ध संघ प्रचार के लिए आए थे। उन्होंने यहां रात्रि विश्राम भी किया था। जिस स्थान पर बुद्ध ने अपना उपदेश दिया था वह बुद्धपुरा कहलाता था जो अब अपभ्रंश होकर दुधपुरा हो गया है।

    विभूतिपुर : विभूतिपुर में जगेश्वरीदेवी का बनवाया शिव मंदिर जगेश्वरस्थान है। अंग्रेजों के समय में नरहन एक रजवाड़ा था जिसका भव्य महल विभूतिपुर में मौजूद है। जगेश्वरी देवी नरहन स्टेट के वैद्य भाव मिश्र की बेटी थी।

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    क्या है विश्व विरासत दिवस

    विश्व विरासत दिवस प्रत्येक वर्ष'18 अप्रैल'को मनाया जाता है।'संयुक्त राष्ट्र'की संस्था यूनेस्को ने हमारे पूर्वजों की दी हुई विरासत को अनमोल मानते हुए और लोगों में इन्हें सुरक्षित और सम्भाल कर रखने के उद्देश्य से ही इस दिवस को मनाने का निर्णय लिया था। पहला'विश्व विरासत दिवस'18 अप्रैल, 1982 को ट्यूनीशिया में'इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ मोनुमेंट्स एंड साइट्स'द्वारा मनाया गया था। एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने 1968 ई. में विश्व प्रसिद्ध इमारतों और प्राकृतिक स्थलों की रक्षा के लिए एक प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र के सामने 1972 ई. में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान रखा गया, जहां ये प्रस्ताव पारित हुआ। 18 अप्रैल, 1978 ई. में पहले विश्व के कुल 12 स्थलों को विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल किया गया। इस दिन को तब Þविश्व स्मारक और पुरातत्व स्थल दिवसÞ के रूप में मनाया जाता था। लेकिन यूनेस्को ने वर्ष 1983 ई. से इसे मान्यता प्रदान की और इस दिवस को Þविश्व विरासत दिवसÞ के रूप में बदल दिया। वर्ष 2011 तक सम्पूर्ण विश्व में कुल 911 विश्व विरासत स्थल थे, जिनमे 704 ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक, 180 प्राकृतिक और 27 मिश्रित स्थल हैं। वर्ष 1983 ई. में पहली बार भारत के चार ऐतिहासिक स्थलों को यूनेस्को ने Þविश्व विरासत स्थलÞ माना था। ये चार स्थल थे- ताजमहल, आगरा का क़लिा, अजंता और एलोरा की गुफाएं। आज पूरे भारत में कई विश्व विरासत के स्थल हैं, जो अलग-अलग राज्यों में स्थित हैं। यूनेस्को ने भारत के कई ऐतिहासिक स्थलों को विश्व विरासत सूची में शामिल किया है।