पति की मौत के बाद भी नहीं हारी हिम्मत, बनी आत्मनिर्भर
सहरसा। जिले के सत्तरकटैया प्रखंड के बरहशेर पंचायत की रहने वाली राधा पति की मौत के ब

सहरसा। जिले के सत्तरकटैया प्रखंड के बरहशेर पंचायत की रहने वाली राधा पति की मौत के बाद भी हिम्मत नहीं हारी। सिलाई- कटाई कर खुद आत्मनिर्भर बनीं आज दूसरी महिलाओं को भी प्रेरणा भी दे रही है।
जानकारी के अनुसार, तीन बच्चों की मां राधा देवी गृहिणी थी। पति कुंदन ठाकुर की कमाई पर ही पूरा परिवार चलता था। कुंदन महाराष्ट्र के बुलडाना में पेपर मिल में काम करते थे। राधा गांव में रहकर अपनी सास और बच्चों की देखभाल करती थी। वर्ष 2017 में राधा देवी के पति की मौत हो गई। इसके बाद तो घर का खर्चा चलाना, मुश्किल हो गया। दो बेटी और एक बेटा समेत परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेवारी आ गई। राधा ने बताया कि जिस समय पति की मौत हुई बडी बेटी अंजली आठवीं कक्षा में पढ़ती थी। उसकी पढ़ाई छूट गई। बच्चों का स्कूल जाना बंद हो गया। ऐसे में कुछ दिनों तक बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, उससे 1500 की आमदनी होती थी। इतने कम पैसे में परिवार चलाना बड़ा ही मुश्किल हो रहा था। इसी बीच किसी ने उसे जीविका से जुड़ने की सलाह दी।
वर्ष 2018 में वह जीविका से जुड़कर घर में रहकर सिलाई करना शुरू कर दिया। पहले तो उसे गांव के लोग कपड़े सिलाई के लिए नहीं देते थे, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। इसके बाद दिनभर गांव की महिलाओं से संपर्क करने लगी और रात को कपड़े की सिलाई करती थी। इस तरह उनका व्यवसाय चल निकला। कुछ ही महीनों में घर की आर्थिक स्थिति संभलने लगी जिसके बाद सबसे पहले अपने बच्चों को स्कूलों में फिर से दाखिला दिलाया और आज बड़ी बेटी मैट्रिक में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्णता हासिल की है। वो कहती है कि पति की मौत के बाद वह टूट-सी गई थी लेकिन बच्चों और बूढ़ी सास की परवरिश के लिए वह खुद आत्मनिर्भर बनी।
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15 हजार बनाए मास्क
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जीविका से जुड़ने के बाद राधा देवी को जीविका से भी कई काम मिलने लगा। कोरोना काल में जीविका द्वारा इनके घर पर मास्क सेंटर बनाया गया। जीविका की प्रखंड समन्वयक नूतन सिंह कहती है कि पूरे सत्तरकटैया में 50 हजार मास्क बनाया गया जिसमें अकेले राधा देवी ने 15 हजार मास्क बनाई।
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कई महिलाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराया
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राधा देवी खुद तो आत्मनिर्भर बनकर समाज में दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हुई है। राधा ने समाज की कई गरीब महिलाओं को सिलाई की ट्रेनिग देकर उसे स्वरोजगार के प्रति ललक पैदा की जिसकी बदौलत आज कई महिलाएं स्वरोजगार से जुड़कर आर्थिक रूप से सबल हो रही है।
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घर-आंगन में करती है सब्जी की खेती
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वे कहती है कि अगर मुसीबत आने पर घर की चौखट लांघी तो समाज के सामने खड़े होने की हिम्मत भी बढ़ी। आत्मनिर्भरता आते ही हर चीज में बचत की भावना बढ़ने लगी। अपने छोटे से घर आंगन में ही सब्जी उत्पादन करने लगी और घर की जरूरत के हिसाब से आलू, गोभी, टमाटर, सीम, कद्दू, बैंगन आदि घर के छोटे से जमीन पर उगने लगा तो सब्जी बाजार से खरीदना छोड़ दिया। अब तो अपने घर में उगाई सब्जी से पूरा घर चलता है।
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