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    शक्ति और भक्ति का अद्भूत संगम है सिहौल की मां वन दुर्गा

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 06 Apr 2022 04:47 PM (IST)

    संसू सत्तरकटैया (सहरसा) सिहौल पंचायत स्थित गांव से दक्षिण दिशा में करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर घने जंगल में मां वन दुर्गा का मंदिर है जो शक्ति और भक्ति का अद्भूत संगम है।

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    शक्ति और भक्ति का अद्भूत संगम है सिहौल की मां वन दुर्गा

    संसू, सत्तरकटैया (सहरसा) : सिहौल पंचायत स्थित गांव से दक्षिण दिशा में करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर घने जंगल में मां वन दुर्गा का मंदिर है जो शक्ति और भक्ति का अद्भूत संगम है।

    इस मंदिर में सच्चे मन से आराधना करने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। मां वन दुर्गा की शक्ति और महिमा की चर्चा यहां से कोसों दूर तक है। इसके चलते बिहार के कोने-कोने से श्रद्धालु और भक्तजन सालोंभर पूजा पाठ के लिए यहां आते रहते हैं। ग्रामीणों के द्वारा मंदिर निर्माण का प्रयास कई बार किया गया, मगर हर बार नेतृत्वकर्ता के साथ कोई न कोई घटना घटित होने के कारण मंदिर निर्माण कार्य अवरुद्ध होता रहा। हालांकि वर्तमान में ज्योतिषाचार्य और प्रकांड पंडितों के मार्गदर्शन के अनुसार बिना बाधा का मंदिर निर्माण कार्य जारी है।

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    मंदिर का इतिहास

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    सिहौल पंचायत स्थित गांव से दक्षिण घने जंगल में लगभग 15 सौ वर्ष पूर्व जजुआरे वंशज द्वारा मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई थी।

    पूर्व पुजारी लड्डू लाल मिश्र के अनुसार, औरंगजेब के शासन काल में प्रतिमा को तोड़ कई टुकड़ों में विभक्त कर दिया गया। पूर्वजों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार मां दुर्गा के भक्त सागर बाबा ने बताया कि गर्भगृह के अंदर स्थापित मां दुर्गा से सटे लगभग पांच फुट की दूरी पर एक पिडी स्थापित है जिसकी पूजा भी मां की पूजा के बाद की जाती है। बिना पिडी का पूजा किए मां की पूजा का फल नहीं मिलता है। ग्रामीण बुजुर्गों के अनुसार मां के एक परम भक्त व पुजारी ने गलतफहमी में मंदिर परिसर में ही एक मुस्लिम चुड़ी व्यवसायी का सिर काटकर हत्या कर दी गई थी। उसी समय स्वयं मां दुर्गा ने प्रकट हो मुस्लिम को अपने बगल में दफनाने की बात कह उसकी पूजा करने के बाद ही मां दुर्गा की पूजा सफल होने की बात पुजारी को कही थी। उसी समय से मां दुर्गा की पूजा के साथ-साथ पिडी की पूजा भी आरंभ हो गई।

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    गर्भगृह के अंदर स्थापित मां दुर्गा से सटे लगभग पांच फुट की दूरी पर एक पिडी स्थापित है। जिसकी पूजा भी मां की पूजा के बाद की जाती है। दुर्गा पूजा के दौरान नौवीं के दिन यहां सैंकड़ों छाग एवं पाड़ा की बलि चढ़ती है। सच्चे मन से आराधना करने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूर्ण होती है।

    बैद्यनाथ मिश्र, मुख्य पुजारी, मां वन दुर्गा मंदिर सिहौल।

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    गांव से दक्षिण घने जंगल में लगभग 15 सो वर्ष पूर्व जजुआरे वंशज द्वारा मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई थी। सच्चे मन से आराधना करने वाले भक्तों के हर मनोकामनाएं पूर्ण होती है। बिहार के कोने-कोने से श्रद्धालुओं और भक्तों के यहां आने की सिलसिला सालोंभर जारी रहता है।

    धीरेन्द्र कुंवर, अध्यक्ष, मंदिर

    ेिनर्माण समिति सिहौल

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