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    कागज पर 40, जमीन पर 10 से 15 बच्चे; सहरसा में आंगनबाड़ी संचालन में बड़ा खेल

    Updated: Tue, 02 Dec 2025 03:20 AM (IST)

    विभागीय मानक 40 बच्चों की उपस्थिति का है, मगर जमीन पर ज्यादातर केन्द्र 10–15 बच्चों के भरोसे चल रहे हैं। कई केन्द्रों में तो एक ही परिवार के चार-पांच बच्चों को बैठाकर उपस्थिति पूरी कर ली जाती है, ताकि कागज मजबूत रहे और व्यवस्था चलती दिखाई दे।

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    सांकेतिक तस्वीर

    जागरण संवाददाता, सत्तरकटैया (सहरसा)। सरकारी कागजों में पोषण, शिक्षा और देखभाल से भरे आंगनबाड़ी केन्द्र, लेकिन सत्तरकटैया में जब हकीकत की परतें हटाई जाती हैं, तो तस्वीर बिल्कुल अलग निकलती है।

    विभागीय मानक 40 बच्चों की उपस्थिति का है, मगर जमीन पर ज्यादातर केन्द्र 10–15 बच्चों के भरोसे चल रहे हैं। कई केन्द्रों में तो एक ही परिवार के चार-पांच बच्चों को बैठाकर उपस्थिति पूरी कर ली जाती है, ताकि कागज मजबूत रहे और व्यवस्था चलती दिखाई दे।

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    185 केन्द्रों में व्यवस्था चरमराई, निगरानी बस नाम की

    प्रखंड में कुल 185 आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित हैं। देखने-सुनने में यह बड़ा नेटवर्क है, लेकिन निगरानी के नाम पर केवल कागजी कार्रवाई होती है। सीडीपीओ और चार महिला पर्यवेक्षिकाएं तैनात जरुर हैं, पर केन्द्रों की स्थिति से लगता नहीं कि निरीक्षण कभी गंभीरता से हुआ हो।
    स्थानीय लोगों का साफ कहना है कि यदि निरीक्षण होता, तो 40 बच्चों की जगह 10 नहीं मिलते।

    फिक्स नजराना का अघोषित सिस्टम, सेविकाएं खामोश

    सूत्रों के अनुसार सत्तरकटैया प्रखंड में संचालित आंगनबाड़ी केन्द्र फिक्स नजराना व्यवस्था पर चल रहे हैं। हर माह मिलने वाली राशि का 15–20 प्रतिशत हिस्सा ऊपर तक तय माना जाता है। कई सेविकाओं ने नाम नहीं छापने के शर्त पर इस बात को स्वीकार भी किया है।

    नजराना नहीं देने पर परेशान किये जाने की बात बताई जाती है। लेकिन अधिकारी के डर से कोई भी सेविका शिकायत दर्ज करने की हिम्मत नहीं कर पाती।
    स्थानीय लोगों का आरोप है कि शिकायतें कई बार दी गईं, पर विभागीय स्तर पर कार्रवाई न होने से यह स्पष्ट है कि मिलीभगत की जड़ें गहरी हैं। कम बच्चों की उपस्थिति के बावजूद पूरा पोषण सामग्री खर्च दिखा दिया जाता है।