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    संगीत के माध्यम से सहेज रहे लोककला

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 30 Jun 2018 05:50 PM (IST)

    सहरसा। पाश्चात्य संगीत के बढ़ते दौर में युवा गायक संगीत के माध्यम से लोककला को सहेज रहे है

    संगीत के माध्यम से सहेज रहे लोककला

    सहरसा। पाश्चात्य संगीत के बढ़ते दौर में युवा गायक संगीत के माध्यम से लोककला को सहेज रहे हैं। शहर के शिवपुरी निवासी हरिकिशोर पोद्दार एवं माता पावित्री देवी के पुत्र प्रमोद कुमार को बचपन से ही संगीत से लगाव था। आगे चलकर इसे अपने जीने का माध्यम बना लिया। लोक गायन में उन्होंने विशिष्टता हासिल की है। फिलहाल बच्चों व युवाओं को लोक संगीत का प्रशिक्षण देने में जुटे हुए हैं। पिछले 15-20 वर्षों से शहर मुख्यालय में लोक संगीत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही अपने घर पर आसपास के बच्चों को संगीत का ककहरा सिखाने में लगे हैं।

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    वह संगीत शिक्षक के रूप में वर्ष 2015 से ही सुपौल जिले के बिहारी गुरमैता उच्च माध्यमिक स्कूल, भपटियाही में कार्यरत हैं। वर्ष 1985 में गुरु रामचंद्र प्रसाद साह एवं विजय वर्मा से संगीत की शिक्षा प्राप्त करने वाले इस युवा ने बताया कि आजकल युवा पीढ़ी अपनी लोक कला-संस्कृति से विमुख होती जा रही है। युवाओं का पाश्चात्य संगीत की ओर झुकाव हो रहा है। जबकि भारतीय लोक कला व संस्कृति पूरी दुनिया में बेमिसाल है। लोक कला से ही क्षेत्र की पहचान होती है। लोक कला हमलोगों के अस्तित्व से जुड़ा है। कला जीवित नहीं रही तो संस्कृति का विनाश हो जाएगा। इसीलिए लोक कलाओं को जीवित व समृद्ध करना हरेक भारतीय का कर्तव्य है।

    कई नाटकों में दे चुके हैं संगीत

    शहर में सांस्कृतिक गतिविधि के दौरान शहर की नाट्य संस्थाओं के नाट्य मंचन में नियमित रूप से संगीत पर प्रमोद आनंद काम करते रहे। नाटक अमली, बकरी, सैंया भये कोतवाल, पंच परमेश्वर, कफन सहित अन्य कई नाटकों में संगीत दिया है। आकाशवाणी दरभंगा से लोकगीत का कार्यक्रम नियमित रूप् से पांच साल तक प्रसारण होता रहा। वहीं रेडियो पर कांतिपुर नेपाल हैलो मिथिला से भी इनके गीत- कोना पजरल शहर छैय ..का प्रसारण हुआ है। कई महोत्सवों में लिया भाग

    अपनी गायकी एवं संगीत को लेकर प्रमोद कुमार ने कई राष्ट्रीय मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है। जिसमें मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्तर के नेशनल प्रोग्राम में तीन बार भाग लिया। 2004 में भारत विकास परिषद द्वारा चंडीगढ़ पंजाब में, 2005 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में एवं 2013 में गुजरात के अहमदाबाद में आयोजित राष्ट्रीय संगीत समारोह में शामिल होने का अवसर मिला। इसके अलावा कोशी महोत्सव, छपरा महोत्सव, कोसी सांस्कृतिक महोत्सव, राजकमल नाटय महोत्सव, रेणु नाट्य महोत्सव में भाग लिया। सैकड़ों बच्चों को दी संगीत की शिक्षा

    वर्ष 1991 से ही लोक गायन को आगे बढ़ाने के लिए बच्चों को निश्शुल्क संगीत सिखाना शुरू कर दिया। जो निरंतर अभी भी चल रहा है। करीब 500-700 बच्चों को संगीत की शिक्षा दे चुका है। कई शिष्य आज भी संगीत की शिक्षा लेकर ही सरकारी सेवा में कार्यरत है और अपनी गायिकी व प्रतिभा से क्षेत्र की पहचान बन चुके है। जिसमें मनोज राजा, चंदन मिश्रा, ¨पकी ¨सह, हरि कुमार, रवीश आदि शामिल है। स्वर संगम संगीतालय की स्थापना कर गरीब तबके के बच्चों को संगीत की विधिवत शिक्षा दी जा रही है। संगीत परम्परा को आगे बढ़ाने में मेरे दोनों बच्चे कीर्ति एवं शुभम संगीत की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

    गानों के कई एलबम हैं बाजार में

    युवा गायक प्रमोद कुमार द्वारा गाए गए कई गानों का एलबम बाजार में है। जिसमें मैथिली एलबम- गीत गाबैय एछ गाम..सहित गुरू जी की शताब्दी, होली आयी रे.., बाबा के नगरिया.. आदि प्रमुख हैं।