Bihar News: कोसी के सूप और डगरा से मनेगी दिल्ली-अमृतसर की छठ, खूब हो रही डिमांड
सहरसा में छठ पूजा की तैयारी शुरू हो गई है यहां से दिल्ली और पंजाब में सूप और डगरा भेजे जा रहे हैं। व्यवसायी रेल मार्ग से आपूर्ति कर रहे हैं। रामचंद्र साह के अनुसार छठ में सूप का विशेष महत्व है। महादलित समुदाय सूप बनाते हैं लेकिन बांस महंगा होने से उन्हें कठिनाई हो रही है। सहरसा से लगभग पंद्रह लाख का कारोबार होता है।

राजन कुमार, सहरसा। लोक आस्था का पर्व छठ की तैयारी अभी से इस इलाके में शुरू है। सहरसा से रेल मार्ग से दिल्ली व पंजाब के विभिन्न हिस्सों में सूप व डगरा भेजा जा रहा है। सहरसा रेल मार्ग से ही इन जगहों पर व्यवसायी सूप व डगरा डिमांड के अनुसार भेज रहे हैं।
रेल पार्सल कार्यालय से मिली जानकारी अनुसार सहरसा से हर सीजन में करीब पांच हजार सूप व डगरा दिल्ली-पंजाब सहित अन्य राज्यों में भेजे जा रहे हैं। अगस्त से ही सूप डगरा भेजने का सिलसिला रेल मार्ग से हो रहा है। इसके अलावा अन्य शहरों से भी बिहार के बाहर अन्य प्रांतों में इसकी आपूर्ति की जा रही है।
शहर के व्यवसायी रामचंद्र साह कहते हैं कि दिल्ली सहित अन्य प्रांतो में बिहार के हजारों परिवार रहते हैं जो नियमित रूप से छठ पूजा करते आ रहे हैं। छठ पूजा के लिए बांस से बने सूप व डगरा का विशेष महत्व है। इसी सूप व डगरा में छठव्रती पूजन सामग्री रखकर भगवान सूर्य को अर्घ देती हैं। इसीलिए हर साल डिमांंड के अनुसार सूप भेजी जा रही है।
अब तक एक महीने में दो हजार सूप व डगरा भेजा जा गया है। रेल मार्ग से ही सामग्री भेजी जा रही है वहीं, इनके अलावा शहर के सहरसा कचहरी के विद्यानंद, बरियाही के मुकुल ने बताया कि हमलोग अलग-अलग टोला व मोहल्ला में महादलित समुदाय के द्वारा बनाए गए सूप व डगरा की खरीदारी करते हैं।
उसे जमाकर उसे बिहार के बाहर अन्य प्रदेशों में भेजते हैं। सहरसा से हर सीजन में पंद्रह लाख रूपये से अधिक का कारोबार किया जाता है। इसके अलावा बनमनखी, पूणिया, मधेपुंरा आदि जगहों से भी सूप व डगरा हर जगह भेजी जा रही है।
महादलित समुदाय बनाते हैं सूप
शहर के अलावा ग्रामीण इलाकों में महादलित समुदाय ही बांस से सूप टोकरी सहित अन्य पूजन सामग्री बनाते हैं। सड़क हो या गली में हर जगह महादलित परिवार पूरी आस्था व तल्लीनता के साथ सूप बनाने में जुटे रहते हैं।
सहरसा कचहरी के रहेनवाले सुुरेश मल्लिक कहते हैं कि बांस भी महंगा हो गया है। दो सौ रुपये में बांस लाते हैं और दिन भर में करची बनाने में समय लगता है। इसके बाद सूप व अन्य सामान बनाने में समय लगता है। उस हिसाब से कमाई नहीं हाेती है।
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