ब्रिटिश जमाने से चल रही है मीटर गेज पर ट्रेन
सहरसा। कोसी के इलाके में मीटर गेज पर ट्रेन पिछले सवा सौ साल से चल रही है। वैसे छोटी र
सहरसा। कोसी के इलाके में मीटर गेज पर ट्रेन पिछले सवा सौ साल से चल रही है। वैसे छोटी रेल लाइन के इतिहास की जानकारी स्थानीय अधिकारियों को नहीं है। लोगों की मानें तो वर्ष 1898 के पहले से यहां छोटी रेल लाइन पर ट्रेन चलती थी। यही नहीं कोसी नदी पर भी रेल पुल बना हुआ था। जो 1934 के भूकंप में ध्वस्त हो गयी।
बुजुर्ग लक्ष्मी गुप्ता कहते है कि पहले सहरसा-सुपौल-भपटियाही-निर्मली-झंझारपुर-सकरी-दरभंगा होकर छोटी रेल लाइन की ट्रेन चलती थी। वर्ष 1902 में सर्वे के नक्शे में भी सहरसा के रेल का उल्लेख है। लेकिन यह तय है कि छोटी रेल की ट्रेन ब्रिटिश जमाने से ही चल रही है। 1934 के भूकंप के बाद और वर्ष 1938 में आयी बाढ़ ने सहरसा रेल को छिन्न-भिन्न कर दिया। आजादी के बाद रेल यातायात बहाल हो सका। लोगों की मानें तो वर्ष 1950 के बाद सहरसा से सुपौल के बीच रेल सेवा शुरू हुई। जिसका विस्तार राघोपुर और ललितग्राम तक किया गया। दो जनवरी 1975 को तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र के प्रयास से ललितग्राम से फारबिसगंज के बीच रेल सेवा बहाल हुई। इसके बाद कोसी क्षेत्र में रेल का जाल बिछ गया।
2005 में आया बदलाव
सहरसा-समस्तीपुर, सहरसा-मानसी व खगड़िया के बीच मीटर गेज पर ही ट्रेन चलती थी। परंतु वर्ष 2005 में सहरसा-मानसी के बीच आमान परिवर्तन हो गया। जिसके बाद सुपौल व मधेपुरा के लोगों को लंबी दूरी की ट्रेन पकड़ने के लिए यहां आना पड़ता था। बाद में मधेपुरा तक इसका विस्तार किया गया। वर्ष 2015 में बनमनखी व 2016 में पूर्णिया कोर्ट तक बड़ी रेल लाइन की सेवा बहाल हुई।
2008 से पहले ही टूटा था फारबिसगंज से संपर्क
सहरसा से फारबिसगंज के बीच आमान परिवर्तन को लेकर वर्ष 2007 में ही मेगा ब्लॉक ले लिया गया था। वर्ष 2012 में ललितग्राम से राघोपुर तक मेगा ब्लॉक लिया गया। 31 दिसंबर 2015 से आमान परिवर्तन कार्य को लेकर राघोपुर से थरबिटिया के बीच रेल सेवा बंद कर दी गयी। अब 25 दिसंबर 16 से थरबिटिया एवं सहरसा के बीच मेगा ब्लॉक लिया गया।
चलती थी कोसी एक्सप्रेस
वर्ष 1975 के बाद सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड में पहली बार कोसी एक्सप्रेस शुरू कराया गया। राजधानी पटना के लिए लोग हरिहरनाथ एक्सप्रेस पकड़ते थे। उसके बाद समस्तीपुर से फारबिसगंज भाया सहरसा होकर मिथिलांचल एक्सप्रेस चलती थी। इसके अलावे दिन में एक पैसेंटर ट्रेन सहरसा से फारबिसगंज तक अप-डाउन करती थी।
पड़ोसी देश नेपाल से है रोटी-बेटी का रिश्ता
पड़ोसी देश नेपाल सीमा सटे होने के कारण कोसी इलाके के लोगों का नाता-रिश्ता नेपाल से रहा है। फारबिसगंज से जोगबनी जाने के लिए रेल मार्ग अब भी है। जो नेपाल का बॉर्डर इलाका है। जिस कारण नेपाल से रोटी-बेटी का रिश्ता कोसी इलाके से कायम हो गया। नेपाल के कंचनपुर, विराटनगर, दुहबी, भंटावाड़ी, इटहरी, धरान आदि जगहों पर सैकड़ों जगह पर यहां के रिश्तेदार हैं। वहीं राघोपुर- फारबिसगंज से सब्जी भी सहरसा मंडी आती थी। लेकिन रेल सेवा बंद होने से छोटे-छोटे व्यापारियों का व्यापार बंद हो गया।
कोट
सहरसा से थरबिटिया के बीच आमान परिवर्तन कार्य शुरू कर दिया गया है। कार्य एजेंसी निर्माण विभाग को बनाया गया है। 31 मार्च 17 तक सहरसा से गढबरूआरी तक ट्रेन चलाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके बाद धीरे-धीरे आगे होते जाएगा।
-सुधांशु शर्मा, मंडल रेल प्रबंधक, समस्तीपुर, पूर्व मध्य रेल।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।