कौआ की कमी से दूषित हो रहा है वातावरण
नवहट्टा (सहरसा),निप्र : प्रकृति के साथ छेड़छाड़, प्रदूषण, वृक्षों की कटाई, मोबाइल टावरों की बढ़ती संख्या से कौआ की प्रजाति भी विलुप्त होने के कगार पर है। पारिस्थितिकी तंत्र में मौजूद कौआ की घटती संख्या गंदगी को भी बढ़ा रही है।
बर्ड लाइफ इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया में मुख्य रूप से ढ़ाई हजार से अधिक पक्षियों की प्रजातिया पायी जाती है। इनमें से सवा तीन सौ प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है। भारत में 73 विलुप्त हो रहे पक्षियों में कौआ भी शामिल है। शिक्षक एसएन राय के अनुसार विकास की परिभाषा में कौआ की घटती संख्या विनाश की आहट है। कौआ गंदगी साफ करने वाला पक्षी है। इसका समाप्त होना मनुष्य के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है। जीव विज्ञान की शिक्षिका नीलू कुमारी के अनुसार कौआ कोरडेटा संघ के वर्ग एब्ज के गमपेशरी फार्मिश से आता है। हमारे यहां दो प्रजातियां पायी जाती है। एक कोर्वस स्प्लाोंडेंस जो धूसरा रंग का होता है उसे देशी कौआ मानते है। दूसरा कोर्वस मेंक्रोरिहकोज कहलाता है।जो काला होता है तथा जंगली माना जाता है। शितली के किसान जय कुमार भारती, डरहार के महेसर यादव, नवहट्टा के मो.कासीम, के अनुसार कौआ किसानों का सच्चा मित्र है। खेत के जोत के समय कीटें टिडडियों के बाहर आते ही वह चट कर जाता है। इन दिनों खेतों पर उनकी संख्या ना के बराबर होती है। घर के आस पास फैली गंदगी सड़े गले फल अनाज, मृत पशु, भोज आदि आयोजन में फेंकें गये खाद्य सामग्री को कौआ अपना भोजन बना कर गंदगी को निपटाते रहे है। आज कौआ के कमी के कारण वातावरण दूषित हो रहा है। बराही के पंडित जीवकांत चौधरी के महाभारत एंव पंचतंत्र के कथा में ही कौआ का उल्लेख है। पशुपालक भी कौआ को अपना मित्र समझते है। यदि समय रहते इनके संरक्षण के लिए कदम नही उठाया गया तो गिद्ध व चिल्ह की तरह यह भी विलुप्त हो जायेगा तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है।
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