मंडन धाम में तोते भी करते थे संस्कृत में बातें
सहरसा। महिषी का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है। यह भूमि उछ्वट विद्वान मंडन मिश्र की जन्मभूमि है। उनके विच
सहरसा। महिषी का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है। यह भूमि उछ्वट विद्वान मंडन मिश्र की जन्मभूमि है। उनके विचारों पर आज शोध हो रह है। उस काल में यहां का तोता भी संस्कृत में शास्त्र की बातें करता था। आज जहां इस इलाके में संस्कृत उपेक्षित है वहीं मंडन धाम का विकास नहीं हो पाया है।
शंकरचार्य पहुंचे थे महिषी
कहा जाता है कि निरंतर शास्त्रार्थ के कारण यहां के तोते और अन्य पक्षी भी शास्त्र की बातें संस्कृत में करते थे। आठवीं-नौवीं सदी में जगतगुरु शंकराचार्य अद्वैतवेदांत पर मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ के लिए महिषी आए थे। इस शास्त्रार्थ को लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं। एक तो यह कि इस शास्त्रार्थ में शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को जब पराजित कर दिया तो उनकी पत्नी भारती ने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ की चुनौती दी और पराजित किया। दूसरी यह कि अद्वैत वेदांत पर शास्त्रार्थ के लिए शंकराचार्य के महिषी पहुंचते ही भारती ने पहले उनसे ही शास्त्रार्थ कर लेने की चुनौती दी और पराजित किया।
मंडन के दर्शन में नहीं हुआ शोध
सैकड़ों साल बीत जाने के बाद भी मंडन मिश्र के दर्शन पर शोध नहीं हो सका है। उनके ग्रंथों का प्रकाशन नहीं हो पाया था। एलन थ्रेसर ने 1972 में हॉरवर्ड यूनिवर्सिटी से मंडन मिश्र की कृति ब्रहसिद्धि पर पीएचडी की जो बाद में मोतीलाल बनारसी दास प्रकाशन से प्रकाशित हुई। इसके बाद उनके छह ग्रंथ स्फोटसिद्धि, विधि-विवेक, भावना-विवेक, विभ्रम-विवेक और मीमांसानुक्रमिका प्रकाशित हुए। महिषी में एक टीले की शक्ल के ध्वंशावशेष को पुरातत्व विभाग ने कागजी तौर पर अपने संरक्षण ले रखा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां कभी वह विद्यापीठ स्थित थी जिसके कुलपति मंडन मिश्र थे। यहां ज्ञान की सभी प्रचलित धारणाओं का अध्ययन-अध्यापन होता था। ग्रामीण अमित आनंद बताते हैं कि प्रकाशित पुस्तकों का अनुवाद नहीं होना चिंताजनक है। वैसे हाल में केन्द्रीय पर्यटन टीम सांसद पप्पू यादव के साथ यहां पहुंची थी और इस धाम की विकास की बातें कही थी।
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