देश के 12 सूर्य मंदिरों में एक है कंदाहा का सूर्य मंदिर
सहरसा : जिला मुख्यालय से करीब 11 किमी दूरी पर महिषी प्रखंड के कंदाहा में स्थापित मार्कण्डेयार्क सूर्
सहरसा : जिला मुख्यालय से करीब 11 किमी दूरी पर महिषी प्रखंड के कंदाहा में स्थापित मार्कण्डेयार्क सूर्य मंदिर भारत के प्रसिद्ध 12 सूर्य मंदिरों में से एक है। कोणार्क व देवार्क में स्थापित सूर्य मंदिर की तुलना इस मंदिर से की जाती है। यहां आने वाले सभी लोगों की मनोकामना पूरी होती है। सूर्योपासना के महापर्व छठ में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
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श्राप से मुक्ति के लिए की थी मंदिर की स्थापना
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पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने आर्यावर्त के विभिन्न भागों में नक्षत्रों की 12 राशियों की अवधि में सूर्य मंदिर की स्थापना की। यह कार्य नारद मुनि द्वारा दिए गए श्राप से मुक्ति के लिए उन्होंने किया था। सूर्य मंदिर का पुर्ननिर्माण पाल वंशीय राजाओं ने कराया था। एक ताम्र अभिलेख में यह भी कहा गया है कि ओइनवार वंश के राजा नर¨सह देव के आदेश पर वंशधर नामक ब्राह्मण ने 1357 में इसका निर्माण कराया था।
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मंदिर का पौराणिक नाम है मार्कण्डेयार्क
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भारत के 12 सूर्य मंदिरों में से बिहार में ही छह सूर्य मंदिर स्थापित हैं। कंदाहा सूर्य मंदिर का नाम भावदित्य के रूप में भी जाना जाता हैए लेकिन पौराणिक नाम मार्कण्डेयार्क है। कंदाहा में ऊंचे टीले पर बने मंदिर में काली शिला पर सूर्य की प्रतिमा है। भगवान सूर्य सात घोड़े के रथ पर सवार हैं। सूर्य मंदिर के बगल में एक कूप भी है। कहा जाता है कि इसके पानी से स्नान करने से चर्म रोग संबंधी बीमारियां समाप्त हो जाती है। इस पानी को लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। यही नहीं इस कूप से छठ मैया की मूर्ति भी सफाई के दौरान मिली थी।
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अधिग्रहण के बाद नहीं हो पाया समुचित विकास
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वर्ष 1982 में पुरातत्व विभाग ने कंदाहा सूर्य मंदिर का अधिग्रहण सुरक्षित स्मारक के रूप में किया था। अधिग्रहण के बाद भी मंदिर का समुचित विकास नहीं हो पाया है। मंदिर के पुजारी बाबूकांत झा, हीरा झा, जवाहर झा कहते हैं कि मंदिर में आने वाले लोगों की मनोकामना पूरी होती है। उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में स्थापित कोणार्क व हरियाणा में स्थापित देवार्क मंदिर से इस मंदिर की महिमा कम नहीं है। कई पुस्तकों व धार्मिक ग्रंथों में भी मंदिर की चर्चा की गई है। मंदिर भले ही प्रशासनिक तौर पर उपेक्षित हो परंतु श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। छठ के मौके पर काफी संख्या में लोग पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।
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