अभियान को अंजाम तक पहुंचा रहीं सविता
रोहतास । 'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो'
रोहतास । 'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो'.. यह पंक्ति पिछले ढ़ाई दशक से महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में कार्य कर रही सविता डे पर सटीक बैठती है। मूलत: पश्चिम बंगाल की रहने वाली सविता महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक रूप से अगली पंक्ति में लाने के लिए वर्षों से जद्दोजहद कर रही है। बहरहाल अभियान को अंजाम तक पहुंचाने में आज भी लगी हैं। जिसका सार्थक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। सविता फिलहाल जिले के नक्सल प्रभावित नौहट्टा व तिलौथू के अलावे सासाराम व करगहर प्रखंड में निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों को उनके अधिकार व कर्तव्य का बोध करा रही हैं। ताकि समाज में फैली बुराइयो व मिथकों को तोड़ा जा सके।
नौकरी की तरफ नहीं रहा झुकाव :
सविता को नौकरी के प्रति झुकाव नहीं था। पिता रेलवे में नौकरी करते थे। लेकिन वे समाज सेवा का रास्ता चुन आधी आबादी के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गई है। जिसका अनुसरण अब अन्य महिलाएं भी करने लगी है। एसएचजी सहित अन्य कार्यक्रमों का लाभ ले पांच से सात हजार महिला स्वावलंबी बन खुद अपनी तकदीर लिख रही हैं। न तो उन्हें खर्चा चलाने के लिए पति पर निर्भर रहना पड़ रहा है, न बेटे पर। स्वावलंबी व जागरूक बनने से घरेलू ¨हसा में भी कमी आने लगी है।
पहले थी अजनबी, अब हो गई अपनी :
80 के दशक में जब इस महिला ने जिले में अपना पांव रखा था, तो हर किसी के लिए अजनबी थी। लेकिन मेहनत व प्रयास ने उसे आज अपना बना लिया है। नारी सशक्तीकरण का पताका ले अकेले चलने वाली, इस महिला के पीछे हजारों महिलाओं का कारवां चल रहा है। दिन हो या रात जब महिलाओं को जरुरत होती है, तो वे उनके पास मौजूद रहती हैं।
नेता नहीं, बना रही नेतृत्व कर्ता :
सविता डे परिवर्तन संस्था के माध्यम से पंचायत स्तरीय महिला जनप्रतिनिधियों को नेता की बजाए इन दिनों नेतृत्वकर्ता बनाने का कार्य कर रही हैं। जिले के चार प्रखंडों के तीन सौ से अधिक महिला मुखिया व वार्ड सदस्यों को प्रशिक्षण व कार्यशाला के माध्यम से अधिकार व कर्तव्य के प्रति जागरूक की। गांवों व पंचायतों में होने वाली ग्रामसभा व आमसभा में पति या बेटे की जगह उनकी उपस्थिति दिखने लगी है।
कहती हैं सविता डे :
आधी आबादी को आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक रूप सशक्त बनाना उनका मुख्य उद्देश्य है। मुख्य रूप से महिलाएं इन तीनों क्षेत्रों में पिछड़ी है। जब तक महिलाएं अपने अधिकार व कर्तव्य को पूरी तरह नहीं जान पाएंगी, तब तक वे घरेलू ¨हसा व शोषण का शिकार होती रहेंगी।