शेरगढ़ किला : कब होगी हुक्मरानों की नजरें इनायत
रोहतास। अफगान शासक शेरशाह का किला जो शेरगढ़ के नाम से विख्यात है, संरक्षण के अभाव म
रोहतास। अफगान शासक शेरशाह का किला जो शेरगढ़ के नाम से विख्यात है, संरक्षण के अभाव में
अस्तित्व की जंग हार रहा है। जिन भूमिगत कमरों के लिये यह किला मध्यकालीन इतिहास लेखकों के लिए कौतुहल का केन्द्र रहा, जिसे इतिहासकारों ने जी भरकर सराहा है, उन कमरों के ऊपर उग आए पेड़ व झाड़ उन्हें दिन-प्रतिदिन ध्वस्त करते जा रहे हैं। जिससे अब सवाल यह उठने लगा है कि यह ऐतिहासिक और अनुपम कलाकृति क्या •ामींदोज होकर रह जाएगी?
पर्यटन की यहां है भरपूर संभावनाएं :
सासाराम से 20 मील दक्षिण-पश्चिम व चेनारी से लगभग 12 किमी दक्षिण में लगभग 800 फीट ऊंची कैमूर पर श्रृंखला की एक पहाड़ी पर स्थित है शेरगढ़ का किला। लगभग 6 वर्ग मील क्षेत्रफल में फैला शेरगढ़ किला को दुर्गावती नदी दक्षिण व पश्चिम से आ¨लगन करते हुए बहती है। इसके नीचे ही दुर्गावती जलाशय परियोजना का विशाल बांध बन चुका है। यहीं से गुप्ताधाम और सीताकुंड के लिए रास्ता भी है। पर्यटन की संभावनाएं यहां भरपूर हैं। फिर भी इस महत्वपूर्ण धरोहर के रखरखाव का जिम्मा न तो केंद्र सरकार के पुरातत्व विभाग के पास है, न ही राज्य सरकार के पास।
ध्वंसित हो रही किले की प्राचीर :
जब फ्रांसिस बुकानन 13 जनवरी 1813 को यहां आया था तो इस किले के ¨सहद्वार के ऊपर आठ बुर्जियां थीं, जिनमें से आज मात्र पांच बुर्जियां बची हैं। ¨सहद्वार से दक्षिण की ओर रास्ता मुख्य भवन की ओर जाता है। उबड़-खाबड़ रास्ता अब जंगल व कंटिली झाड़ियों से भरा पड़ा हैं। ¨सहद्वार से लगभग एक किमी दूर दक्षिण में दूसरी पहाड़ी है, जिसके रास्ते में ही एक तालाब बना हुआ है। यह रानी पोखरा के नाम से जाना जाता है। दूसरी पहाड़ी भी प्राचीर से घिरी है। इसके अंदर मुख्य महल है। प्राचीर के दरवा•ो तक जाने के लिए सीढि़यां बनी हैं। दरवा•ा अब गिरने की स्थिति में है। प्राचीर के भीतर दरवा•ो के दोनों ओर दो खुले दालान हैं। कुछ दूर जाने पर भूमिगत गोलाकार कुआं है। भूमिगत कुएं से पूरब में चार मेहराब बनाते खंभों पर टिका चौकोर तह़खाना है। इस तह़खाने से पश्चिम-उत्तर में एक विशाल महल के ध्वंसावशेष बिखरे हैं।
कहते हैं जानकार :
रोहतास के इतिहासकार डॉ.श्याम सुन्दर तिवारी भी मानते हैं कि वर्तमान शेरगढ़ का नाम पहले भुरकुड़ा का किला था। उसका उल्लेख मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकों तारी़ख-ए-शेरशाही और 'तबकात-ए-अक़बरी' में मिलता है। खरवार राजाओं ने अपने किले को रोहतासगढ़ की ही तरह अति प्राचीन काल में बनवाया था। लेकिन इस किले पर 1529-30 ई. में शेर ़खां ने अधिकार कर लिया। फ्रांसिस बुकानन के अनुसार यहां भारी नरसंहार हुआ था। इसी कारण यह किला अभिशप्त और परित्यक्त हो गया। लेकिन एक सवाल अब भी यहां उठ रही है कि क्या स्वतंत्र भारत में भी इसकी अभिशप्तता खत्म नहीं होगी? क्या किसी हुक्काम की नजरें अब भी इनायत नहीं होंगी?