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    अपने आप पर विश्वास से बढ़ती है आंतरिक शक्ति

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    Updated: Tue, 18 Oct 2016 05:47 PM (IST)

    सासाराम : रोहतास । जब आपको यह प्रतीत होने लगे कि आप जो कर रहे हैं वह महत्वपूर्ण है तथ

    सासाराम : रोहतास । जब आपको यह प्रतीत होने लगे कि आप जो कर रहे हैं वह महत्वपूर्ण है तथा यदि आप अपने आप में विश्वास करें, तो आपको आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है। यह विश्वास करना कि आपका कार्य जितना भी छोटा हो, ¨कतु अर्थपूर्ण हो, आपके आत्म सम्मान को बढ़ावा देता है। ऐसा मनोबल आपके आत्म-विश्वास को प्रोत्साहित करता है और आत्म-विश्वास आपके लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु महत्वपूर्ण तत्व है, चाहे वे आध्यात्मिक प्रयत्न हों अथवा भौतिक लक्ष्य।

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    मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज से कटकर एक पल भी नहीं रह सकता। सच तो यह है कि हमारा समाज इंसानों से ही बनता है। यानी एक-एक का मेल ही अनेक में तब्दील होता है, और बस जाती है हंसती, खिलखिलाती सुंदर सी दुनिया। भगवान से इंसानों को शेर की तरह मजबूत जबड़े व ताकत से भरपूर पंजे नहीं मिले हैं, जिससे वह दहाड़ मारकर शिकार कर सके। उसे चीते व हिरण जैसी कुलांचे मारने की क्षमता भी नहीं मिली ताकि वह मिनटों में दूरियां तय कर सके। इतना ही नहीं पक्षियों की तरह स्वच्छंद उड़ने के लिए पंख भी नहीं मिले हैं कि वह नील गगन में उड़ान भर सकें। लेकिन इन सबके बावजूद उसे सोचने-समझने की शक्ति दी है, जो हमें इस काबिल बनाती है कि हम हर असंभव को भी संभव बना डालते हैं। यह तभी संभव है, जब हम अपने अंदर छिपी प्रतिभा की पहचान कर सकें।

    स्वयं की क्षमता, मेधा व कौशल का ज्ञान व्यक्ति में साहस व आत्मविश्वास भरता है। जिसके सहारे व्यक्ति जोखिम उठाकर जीवन की ऊंचाइयों को छू पाता है। स्वयं का महत्व नहीं समझने वाला व्यक्ति अपने फैसले खुद नहीं ले पाता। वह हमेशा अनिश्चय व अनिर्णय की स्थिति में रहता है। ऐसी स्थिति में उसकी आत्म निर्भरता भी खो जाती है। जिससे लोगों के बीच उसके प्रति बना-बनाया विश्वास भी चला जाता है। इतना ही नहीं स्वयं का महत्व नहीं समझने वाले कभी-कभार अवसाद के शिकार भी हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि वे समाज या परिवार में किसी काम के नहीं हैं। ऐसे लोगों को सबसे पहले अपने प्रति नकारात्मक विचारों को त्याग कर सकारात्मकता की ओर प्रवृत्त होना चाहिए। हमारे अंदर ईश्वर ने असीम उर्जा भरी है। कभी-कभी तो यह उर्जा चमत्कार सी भी लगती है, जो बिना ईश्वरीय शक्ति के संभव नहीं लगता। लेकिन सच तो यह है कि आत्मविश्वास से भरे लोग इतने हिम्मती हो जाते हैं कि मुश्किल परिस्थितियों को भी चुटकी में हल कर लेते हैं। हमारा देश ऋषि-मुनियों व पीर पैगंबरों का है। हम आत्म ¨चतन व आत्मशोधन की साधना में तत्पर रहने वाले पूर्वजों की संतान हैं। इसलिए अपने आप को परखने, पहचानने व तराशने की कला ही हमें महामानव का दर्जा देती है। जीवन में कुछ कर गुजरने की सोच रखने वाले विद्यार्थियों को सबसे पहले अपनी कमजोरियों को परख कर उन्हें दूर करना होगा। आत्मसम्मान के साथ जीने के लिए हमें खुद के महत्व को समझना होगा।

    ओमप्रकाश चौरसिया, एएमडी

    बाल विकास विद्यालय, सासाराम

    स्वयं को पहचानने से बढ़ता है मनोबल

    मानव शक्ति को तीन भागों में विभाजित किया जाता है, शारीरिक शक्ति, मानसिक शक्ति व आत्मिक शक्ति। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो दुनिया के सभी लोगों की शारीरिक शक्ति में थोड़े-बहुत का अंतर होता है। लेकिन मनोबल या मानसिक शक्ति में प्रत्येक व्यक्ति में काफी अंतर होता है। जब तन थक जाता है, तब मन उसे शक्ति देकर पुन: खड़ा कर देता है। जब हम महापुरुषों के चरित्र पढ़ते हैं तो आश्चर्य होता है कि इन व्यक्तियों में कौन सी असाधारण शक्ति थी, जिससे इन्होंने अकल्पनीय कार्य कर दिखाया। लेकिन हकीकत है कि इनका मनोबल बहुत उंचा था, और मनोबल राह में ढूंढ़ने से नहीं, स्वयं को पहचानने से प्राप्त होता है।

    चंद्रशेखर आजाद, शिक्षक

    बाल विकास विद्यालय, सासाराम

    अपने आप पर भरोसा से ही मिलेगी मंजिल

    हमारा जीवन ईश्वर का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ उपहार है। हमें कभी भी किसी से कुछ विशेष पाने की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। इससे हमारी खुद पर आत्मनिर्भरता कम होती है। यह जरूरी भी नहीं है कि हर कोई हमारी अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा। इससे अच्छा है कि हम अपने भीतर की उर्जा को पहचानें। अपने आप पर भरोसा कर ही पं. मदनमोहन मालवीय, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, पटेल आदि महापुरुषों ने जीवन सार्थक बनाया।

    सुनिल कुमार ¨सहा, शिक्षक

    बाल विकास विद्यालय, सासाराम

    कायनात का हर जर्रा है आफताब

    कहते हैं कि कुदरत के इस कायनात में हर जर्रा आफताब है। यानी प्रकृति की हर रचना महत्वपूर्ण है। ईश्वर ने हर चीज में उपयोगिता भरी है। फिर हम इंसान तो बेहद ¨चतनशील हैं। हमारे अंदर ईश्वर ने जो प्रतिभा भरी है, वह अद्भुत व विलक्षण है। लेकिन समस्या यह है कि हम अपने भीतर छिपी उस प्रतिभा से अंजान रहते हैं, जिससे उसका भरपूर उपयोग नहीं कर पाते। ऐसे में हम जीवन के मूल उद्देश्यों से भटक जाते हैं। इसलिए हमें किसी का देखा-देखी व पिछलग्गु नहीं बनकर अपनी क्षमता को पहचानते हुए नई राह बनानी चाहिए। ऐसे में मजरूह सुल्तानपुरी की ये पंक्ति याद आ जाती है कि मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग साथ आते गए, कारवां बनता गया।

    संजय कुमार चतुर्वेदी, शिक्षक

    बाल विकास विद्यालय, सासाराम

    खुद को पहचानने से बढ़ता है आत्मसम्मान

    यदि आप स्वयं को महत्वपूर्ण समझते हैं तो औरों को महत्वपूर्ण होने का अनुभव कराने में समर्थ होंगे। यदि आप स्वयं से प्रेम करते हैं, तो औरों को स्नेह देना सहज होगा। जो हमारे भीतर वास्तव में है हम उस की ही अनुभूति अन्य को कराते हैं। जिन्हें अपनी कमजोरियों की जानकारी हो जाती है, उनका आगे का रास्ता आसान हो जाता है।

    आर्यन, कक्षा- 9

    बाल विकास विद्यालय, सासाराम

    आंतरिक शक्तियों के बल पर ही होगा विकास

    यदि हम अपनी आंतरिक शक्ति का ज्ञान प्राप्त कर लें तो कोई भी कार्य कठिन नहीं है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों ने तपोबल से अपनी आंतरिक शक्तियों को जागृत कर ज्ञान का प्रकाश पूरी दुनिया में फैलाया। यह तभी संभव हो पाया जब वे स्वयं को पहचान पाए। महात्मा बुद्ध ने तप कर स्वयं के महत्व को समझा व पूरी दुनिया को सत्य व अ¨हसा का पाठ पढ़ाया। दूसरे के बल पर नहीं बल्कि हमारे स्वयं के संघर्ष से आजादी मिली है। इसलिए हमें स्वयं के महत्व को पहचानना चाहिए।

    वैभवराज गौतम, कक्षा- 10

    बाल विकास विद्यालय, सासाराम

    स्वयं की पहचान से ही आसान होगी मंजिल

    यदि हम अपने महत्व को समझते हुए योग्यता व क्षमता के अनुसार कार्य करें तो कोई कारण नहीं है कि हमें सफलता न मिले। यदि हम इस तरह की ¨जदगी जीएं, तो सही मायने में यही जीवन है। ओशो ने भी कहा है कि सबसे पहले यदि स्वयं को जान लें, तो ब्रह्मांड को जानना आसान हो जाएगा। इस तरह हम कह सकते हैं कि स्वयं के महत्व को जान लें तो जीवन की तमाम दुश्वारियां अपने आप समाप्त हो जाएंगी।

    जागृति कुमारी, कक्षा- 12

    बाल विकास विद्यालय, सासाराम।